नग़्मा कुमारी अंसारी
पाप एक प्रकार की अग्नि है, जो जहाँ रहती है, उसी स्थान को जलाती है। कोई किसी की चोरी करता है,जिस आदमी की चोरी की गई थी, उसे अपना धन जाने का दु:ख हुआ पर थोड़े समय बाद वह और धन कमा लेता है, एवं चोरी के दु:ख को भूल जाता है, किन्तु जिस आदमी ने चोरी की थी, उसके मन पर एक प्रकार का भार जमा हो गया और आत्म ग्लानि की चिनगारी का प्रवेश हो गया।
अन्तरात्मा हर घड़ी भीतर ही भीतर उस बुरे काम के लिये धिक्कारता है। यह ‘आत्म-धिक्कार’ दुनियाँ में सब से बड़ी पीड़ा है। फोड़े का दर्द कुछ समय बाद अच्छा हो जाता है, किन्तु ‘आत्म-धिक्कार’ से जो अशान्ति, उद्विग्नता, बेचैनी भीतर ही भीतर उठती रहती है, वह बड़ी ही दुखदायी होती है। पापी मनुष्य मदिरा आदि नशीली चीजों का इसलिए सेवन करते हैं, कि आत्म -धिक्कार के दर्द को भुलाया जा सके।
उस आवाज को न सुनने के लिए बेहोश पड़े रहें, परन्तु इससे कुछ भाग लाभ ही होता । दु:खती हुई आँख में अफीम डाल देने से दर्द बेशक बन्द हो जाता है। पर उस दर्द से शरीर को जो हानि होती है, उससे बचाव नहीं हो सकता । नशे पीकर या नाच, सिनेमा आदि मनोरंजन के स्थानों में जाकर थोड़ी देर मन बहलाता है, परन्तु शान्ति नहीं।
मन ही मन आत्म धिक्कार का दर्द उसे कचोटता रहता है। फलस्वरूप उसके चेहरे पर डरावने भाव उड़ने लगते हैं शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है।
जो एक बार पाप कर चुके है, उन्हें उसके दर्द से छुटकारा नहीं मिल सकता ? ऐसी बात नहीं है। पश्चाताप द्वारा छुटकारा मिल सकता है। पश्चात्ताप का सबसे श्रेष्ठ मार्ग यह है, कि जिस आदमी का अपराध किया हो उसी से क्षमा माँगनी चाहिए और जो कुछ बन सके उसका मुआवज़ा अदा करना चाहिए।
केवल बातों से पश्चाताप नहीं हो जाता । जिसने चोरी की है, उसे चाहिए जिसकी चोरी की है, उसके सामने अपराधी की भाँति जाकर खड़ा हो और दोष स्वीकार करते हुए उससे दण्ड देने की प्रार्थना करे। वह जो दण्ड दे उसे स्वीकार करे यदि वह उदारतावश बिलकुल माफ करदे तो भी यों ही न बैठ जाना चाहिए।
जितना धन लिया हो उतना या परिस्थिति वश ज्यादा कम हो तो उतना उस व्यक्ति को लौटाना चाहिये। यदि वह न ले तो अधिकारी पात्रों को दान कर देना चाहिये।
इतने दिनों तक वह पाप मन में छिपा रहा इसलिये मन भी गन्दा हो गया, जिस स्थान पर मृतक शरीर पड़ा रहता है, वह अपवित्र समझा जाता है, उसे शुद्ध करने की आवश्यकता होती है। मन शरीर का अङ्ग है, इसलिये शारीरिक शुद्धि के लिए उपवास करना चाहिये।
सच्चा प्रायश्चित्त पाप की पुनरावृत्ति न करना है। परमात्मा को साक्षी देकर दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि भविष्य में ऐसा पाप फिर कभी न करूँगा।
अपने पूर्व को प्रकट कर देना भी अच्छा प्रायश्चित्त है। गौ हत्या करने पर गौ की पूँछ हाथ में लेकर जगह-जगह अपने अपराध की घोषणा करते फिरने का हिन्दू धर्म शास्त्रों में विधान है। कारण यह है कि जिस प्रकार का पाप एक बार किया था वैसा ही फिर भी बन पड़ने का बहुत अन्देशा रहता है। पाप को प्रकट करने पर।
सर्व-साधारण को मालूम हो जाता है कि इसने अमुक कार्य ऐसा किया था, अतएव वे सावधान रहते हैं और उस व्यक्ति को फिर पास करने का मौका ही नहीं मिलता ।
यदि सच्चे हृदय से पाप का पश्चात्ताप किया जाय तो उसके भयानक परिणाम से छुटकारा मिल सकता है और पाप नष्ट हो सकता है।