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पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के दरवाजे पर मोदी, सीजेआई चंद्रचूड़, शाह और भागवत की दस्तक का आखिर क्या है राज?

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महेंद्र मिश्र

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का एक बयान आया है जिसमें उन्होंने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के पक्ष में ढेर सारे तर्क दिए हैं। रायबरेली में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने इसके कितने फायदे हो सकते हैं, उनको बताने की कोशिश की हैं। मसलन सरकार का पैसा कम खर्च होगा। और उस पैसे को जन कल्याण के मद में खर्च किया जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि इस विषय पर विचार करने के लिए उनके नेतृत्व में सरकार ने एक कमेटी गठित की है। जिसमें सत्ता से जुड़े लोगों के अलावा तमाम दूसरे लोग शामिल हैं। लेकिन अभी तक इस कमेटी की रिपोर्ट नहीं आयी है। बावजूद इसके कोविंद इसके पक्ष में अभी से माहौल बनाना शुरू कर दिए हैं।

कोविंद का यह बयान कमेटी की पवित्रता को भंग करता है। जिस कमेटी के वह अध्यक्ष हैं और जिसकी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है। उस मसले पर भला वह अपनी सार्वजनिक राय कैसे रख सकते हैं? और अध्यक्ष होने के नाते तो उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। लेकिन यह बीजेपी-आरएसएस का अमृत काल है। इसमें न तो कोई नियम लागू होता है और न ही कानून। न किसी नैतिकता की जरूरत है। मोदी और बीजेपी के पक्ष में जो है वही बात सही है। यही एक लाइन का सत्य है। जिसको बीजेपी चाहती है कि पूरा देश स्वीकार कर ले।

दरअसल रामनाथ कोविंद का इस काम के लिए चुनाव ही सवालों के घेरे है। अभी तक की भारतीय राजनीति में राष्ट्रपति के पद को राजनीति से ऊपर माना जाता रहा है। और रिटायर होने के बाद भी वह अपनी उसी स्थिति को बरकरार रखता है। मतलब वह किसी खास पार्टी के पक्ष या विपक्ष में अपनी राय जाहिर नहीं करता है। लेकिन राम नाथ कोविंद न केवल इस परंपरा को तोड़ रहे हैं बल्कि बेहद निर्लज्ज तरीके से उसके एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इस समय बीजेपी को ‘एक देश, एक चुनाव’ के जरिये देश में न केवल अपने राजनीतिक एजेंडे को स्थापित करना है बल्कि आने वाले चुनावों में इसका कैसे अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाए उसकी रणनीति बनाने में जुट गयी है। उसको लग रहा है कि राज्यों में बीजेपी के घटते प्रभाव की इसके जरिये भरपाई की जा सकती है। वैसे भी बीजेपी-आरएसएस लोकतंत्र को सीमित करना चाहते हैं। वह न केवल राज्यों की स्वायत्तता खत्म करना चाहते हैं बल्कि देश में कैसे एकाधिकारवादी केंद्रीकृत सत्ता स्थापित हो इसको हर तरीके से वो सुनिश्चित करना चाहते हैं।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसने देश के पूर्व राष्ट्रपति तक का इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं किया। लेकिन मसला लगता है केवल ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ तक ही सीमित नहीं है। जिस तरह से पूर्व राष्ट्रपति के दरवाजे पर बीजेपी-आरएसएस के बड़े नेता दस्तक दे रहे हैं उससे लग रहा है कि दक्षिणपंथियों की यह जमात कोविंद को लेकर कोई नई खिचड़ी पका रही है। और दस्तक देने वालों में केवल बीजेपी-आरएसएस के नेता ही नहीं बल्कि तमाम संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी शामिल हैं। 26 जून को पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के चहेते कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र यादव ने उनसे मुलाकात की।

इसको पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने अपने ट्विटर  टाइमलाइन पर औपचारिक मुलाकात की बात कह कर शेयर भी किया है। उसके बाद अचानक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड उनके घर पर नमूदार होते हैं। किसी को लग सकता है कि भला सीजेआई का इस दौर में पूर्व राष्ट्रपति से क्या लेना देना। प्रोटोकॉल में भी वह ऐसी पोजीशन में नहीं हैं कि पूर्व राष्ट्रपति उन्हें मिलने के लिए मजबूर कर सकें। सीजेआई को भी कम से कम अभी अपने किसी मामले में कोविंद की जरूरत नहीं है।

तब इस मुलाकात के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है? न तो इसमें से किसी का जन्मदिन या फिर कोई ऐसा दिन था जिसको सेलीब्रेट करने के लिए दोनों इकट्ठा हुए हों। क्या माना जाए कि यह बुलावा पूर्व राष्ट्रपति की तरफ से था? जिसमें वह किसी तरह की कानूनी या फिर संवैधानिक सलाह लेना चाहते हैं। ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह मुलाकात 19 जुलाई को हुई थी। उसके बाद 23 जुलाई को स्पीकर ओम बिरला पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के घर जाते हैं और उनसे औपचारिक मुलाकात करते हैं।

इसकी फोटो भी कोविंद ने अपने ट्विटर टाइमलाइन पर शेयर की है। उसके बाद देश की सत्ता के दूसरे सबसे ताकतवर व्यक्ति अमित शाह से पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुलाकात होती है। कोविंद के टाइमलाइन पर प्रकाशित इस फोटो को देखकर कोई भी कह सकता है कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है। अमित शाह की प्रफुल्लता और कोविंद की रहस्यमय मुस्कान के बीच बहुत कुछ ऐसा है जिसको कोई भी पढ़ सकता है। इसके बाद 29 अगस्त को आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत कोविंद के घर पहुंच जाते हैं।

आम तौर पर इस तरह के व्यक्तिगत रिश्तों से दूर रहने वाले मोहन भागवत की कोविंद, उनकी पत्नी और बेटी के साथ आयी तस्वीर बहुत कुछ कहती है। अपने ट्विटर पोस्ट में कोविंद ने लिखा कि आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ ढेर सारे राष्ट्रीय मुद्दों पर बातचीत हुई। और फिर इसी मुलाकात के बाद 31 अगस्त को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लिए बनी कमेटी और उसके अध्यक्ष के तौर पर रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान हो जाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस कमेटी में शामिल ज्यादातर सदस्य ऐसे हैं जो या तो सीधे बीजेपी से जुड़े हैं या फिर उसके करीब हैं या उसकी विचारधारा से जुड़ते हैं। अमित शाह गृहमंत्री ही हैं। गुलाम नबी आजाद की मौजूदा राजनीतिक स्थिति से भला कौन नहीं परिचित है। अर्जुनराम मेघवाल केंद्रीय मंत्री हैं। एनके सिंह फाइनेंस कमीशन के चेयरमैन हैं। उनके रुख से भला कौन नहीं परिचित है। सुभाष कश्यप मौजूदा सत्ता के कितने करीब हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है।

हरीश साल्वे मोदी सत्ता के संवैधानिक संकटों के सबसे बड़े संकटमोचक साबित हुए हैं। संजय कोठारी विजिलेंस के पूर्व प्रमुख हैं। अब कोई पूछ सकता है कि देश के लिए होने वाले इतने बड़े फैसले में क्या विपक्ष की कोई भूमिका नहीं है? क्या दूसरी विचारधारा से जुड़े लोगों का कोई स्थान नहीं है? स्वतंत्र और निष्पक्ष बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों की देश को अब कोई जरूरत नहीं है?  इन सब नामों को देखने के बाद कोई भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि चीजें पहले से ही तय कर ली गयी हैं और अब केवल और केवल औपचारिकता बाकी है। इस घोषणा के कुछ दिनों बाद पीएम मोदी से कोविंद की मुलाकात होती है। आम तौर पर ट्विटर पर जन्मदिन की बधाई देकर औपचारिकता निभाने वाले मोदी ने इस बार उनके घर पर जाकर उन्हें बधाई देने का फैसला किया। और 17 सितंबर को उनके आवास पर दस्तक दे दी।

इस बीच कोविंद न केवल देश के अलग-अलग राज्यों में गए और राजभवनों की शोभा बढ़ाए बल्कि बहरीन से लेकर वाशिंगटन तक की उनकी कई विदेशी यात्राएं हुईं। और दिवाली के मौके पर वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ से उनके आवासों पर जाकर परिवार समेत मुलाकात करते हैं। और फिर 12 नवंबर को पीएम मोदी दिवाली के मौके पर एक बार फिर उनके आवास पर जाकर उन्हें दीवाली की शुभकामनाएं देते हैं। पीएम मोदी की यह यात्रा बताती है कि कोविंद को लेकर सत्ता के गलियारे में कोई खिचड़ी का बड़ा हंडा रखा हुआ है। और उसमें अभी मुलाकातों की सामग्री डाली जा रही है। यह कब चूल्हे पर चढ़ेगी और कब पकेगी और खाने के लिए कब परोसी जाएगी इसका पूरे देश को इंतजार करना होगा।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के फाउंडर एडिटर हैं।)

जनचौक से साभार

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