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*कैसा भविष्य दिखा रही है वायुमंडल से घटती ऑक्सीजन*

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          पुष्पा गुप्ता

      पर्यावरणविदों और भूगोलवेताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है। बढते तापमान के कारण समुद्र के साथ झीलों में तेज गति से ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है। जिसके कारण झीलों में जैव विविधता क्षीण होती जा रही है।

      भूगोलवेत्ताओं के अनुसार आज से लगभग साढे चार अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी का आविर्भाव हुआ। सौरमण्डल के समस्त ग्रहों में सूर्य से उत्तम दूरी पर स्थित पृथ्वी पर ही केवल जीवन पाया जाता है। सौरमण्डल के सभी ग्रहों में केवल पृथ्वी पर जीवन पाए जाने का सबसे बड़ा कारण समुचित और संतुलित मात्रा में प्राण वायु ऑक्सीजन की उपलब्धता हैं।

     संगठनात्मक दृष्टि से वायुमंडल में नाइट्रोजन के उपरांत सबसे अधिक मात्रा में ( लगभग 21प्रतिशत) ऑक्सीजन की उपलब्धता हैं। प्राचीन और अर्वाचीन वैज्ञानिकों के अनुसार ऑक्सीजन का वायुमंडल में अस्तित्व आज से ढाई अरब वर्ष पहले माना जाता है और तभी से लगभग जल में जीवन की उत्पत्ति का आरम्भ भी माना जाता हैं।

 यह सर्वविदित तथ्य है कि-मनुष्य सहित समस्त जीवो की सांसों और धड़कनो का सारा कारोबार इसी ऑक्सीजन पर निर्भर हैं। सांसों और धड़कनो का कारोबार खत्म होते ही जीवन लीला समाप्त हो जाती हैं। प्रकारांतर से ऑक्सीजन और जीवन एक दूसरे पर्यायवाची है।

     वैसे तो ऑक्सीजन पृथ्वी के लगभग हर पदार्थ में थोड़ी-बहुत मात्रा में पाया जाता हैं परन्तु सर्वाधिक मात्रा में यह पानी में पाया जाता हैं। वायुमंडल में यह स्वतंत्र रूप से पाया जाता है और वायुमंडल में इसकी उपलब्धता लगभग इक्कीस प्रतिशत हैं परन्तु भूपर्पटी पर इसकी उपलब्धता लगभग  46 प्रतिशत होती हैं।

     यह मनुष्य सहित समस्त जीव जंतुओं के लिए जीवनप्रदायिनी गैस तो है ही इसके साथ अपने बहुआयामी गुणधर्मिता के कारण ऑक्सीजन की उपयोगिता और मांग विविध क्षेत्रों में निरंतर बढती जा रही हैं। पानी की तरह रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन ऑक्सीजन को सामान्यतः प्राणवायु और जारक इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।

     प्राणवायु के साथ जारक नाम इसलिए दिया जाता हैं क्योंकि ऑक्सीजन के कारण ही कोई वस्तु जलती हुई नजर आती हैं। ज्वलनशीलता के गुण के आधार पर ही ऑक्सीजन को पहचाना जाता हैं तथा इसी गुण के कारण इसकी व्यवसायिक और औद्योगिक महत्ता बढती जा रही हैं। एक स्पष्ट रासायनिक तत्व के रूप में ऑक्सीजन की पहचान अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हूई।

पन्द्रहवीं शताब्दी में पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलन ने रोमन साम्राज्य के पतन  के उपरांत अंधकार में डूबें यूरोपीय समाज को जागृत कर दिया। इन दोनों आन्दोलनों के फलस्वरूप यूरोपीय महाद्वीप में तर्क, बुद्धि, विवेक तथा आधुनिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जागरण हुआ।

      वैसे तो इन दोनों आन्दोलनों का आरम्भ इटली और जर्ममी में हुआ परन्तु इसका सर्वाधिक गहरा असर इंग्लैंड पर हुआ। यूरोपीय महाद्वीप के सर्वाधिक वैज्ञानिक चमत्कार करने वाले तथा सबसे अधिक वैज्ञानिक पैदा करने वाले इंग्लैंड के पादरी और वैज्ञानिक जोसेफ प्रिस्टले और सी डब्ल्यू शीले ने ऑक्सीजन की खोज, प्राप्ति और प्रारम्भिक अध्ययन पर महत्वपूर्ण एवं सराहनीय कार्य किया।

       जोसेफ प्रिस्टले ने अपनी प्रयोगशाला में 1774 ईसवीं में मरक्यूरिक ऑक्साइड को गर्म करके ऑक्सीजन गैस तैयार किया था। हालांकि इसके पहले कार्ल शीले ने 1772 में पोटैशियम नाइट्रेट को गर्म करके ऑक्सीजन गैस तैयार किया था परन्तु उनका यह प्रयोगात्मक शोध 1777 ईसवीं में प्रकाशित हुआ और इसीलिए जोसेफ प्रिस्टले को ऑक्सीजन गैस का खोजकर्ता माना जाता है।

      इसके उपरांत ऑक्सीजन के गुण-धर्म के अध्ययन का सिलसिला शुरू हो गया। एन्टोनी लैवोइजियर ने इसके रासायनिक गुणों का गहनता से अध्ययन करते हुए इसके गुणों का वर्णन किया और इसे “ऑक्सीजन” नाम दिया जिसका अर्थ होता है “अम्ल उत्पादक “।जैसे -जैसे ऑक्सीजन के गुण-धर्म पर अध्ययन बढता गया वैसे-वैसे इसकी उपयोगिता भी बढती गई।

हमें समवेत स्वर से उन समस्त वैज्ञानिकों को बधाई देना चाहिए जिन्होंने ऑक्सीजन को स्पष्ट पहचान दिया और चिकित्सकीय ऑक्सीजन तैयार करने सफलता प्राप्त की। वैसे तो चिकित्सकीय सुविधाओं से सुसज्जित और संसाधनों से परिपूर्ण अस्पतालों के आपातकालीन कक्षाओं में गम्भीर मरीज़ो के चेहरो पर ऑक्सीजन माॅस्क से जरूर हम परिचित थे परन्तु कोरोना संकट काल में ऑक्सीजन की किल्लत सर्वाधिक चर्चा का विषय रही।

      वह आम आदमी भी जिसे रसायन विज्ञान का ककहरा भी नहीं मालूम वह ऑक्सीजन और ऑक्सीजन के महत्व से भलीभाँति परिचित हो गया । कोरोना की दूसरी लहर में जिंदगी बचाने की जद्दोजहद ने अपनी तरक्की की बुलंदियों पर गुमान करने वाले इंसान को ऑक्सीजन की महत्ता से ढंग से रूबरू करा दिया।

      अप्रैल और मई के महीने में ऑक्सीजन के लिए सारे देश में हाहाकार मचा हुआ था। देश के चर्चित नामी-गिरामी अस्पतालो से लेकर सरकारे भी हलकान परेशान नजर आई। वर्तमान समय में ऑक्सीजन का चिकित्सकीय महत्व के साथ साथ व्यवसायिक महत्व भी है। 

       असंतुलित विकास और पोषणीय विकास की चेतना के अभाव के कारण हमने औद्योगिक और व्यवसायिक ऑक्सीजन पर ध्यान दिया परन्तु चिकित्सकीय ऑक्सीजन पर उतना ध्यान नहीं दिया। लौह इस्पात उद्योग में ऑक्सीजन का उपयोग सर्वाधिक होता हैं।

द्रव ऑक्सीजन को कार्बन और पेट्रोलियम के साथ मिला दिया जाए तो यह अत्यंत विस्फोटक हो जाता हैं। अति विस्फोटन की गुणधर्मिता के कारण ही ऑक्सीजन का प्रयोग कठोर चट्टानों को तोडने और लोहे की चादरों को काटने में किया जाता है। औद्योगिक दृष्टि से ऑक्सीजन पर अत्यधिक ध्यान के कारण ही कोरोना संकट में ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ा।

     इसलिए कोरोना जैसे संकटों से निपटने के लिए हमें अधिक से अधिक चिकित्सकीय दृष्टि से भी ऑक्सीजन प्लांट लगाने पर विचार करना होगा। चिकित्सकीय दृष्टि से ऑक्सीजन वायुमंडल में विद्यमान हवा से तैयार किया जाता हैं। एयर सेपरेशन विधि का प्रयोग करते हुए ऑक्सीजन को हवा में विद्यमान धूल नमी और अन्य अशुद्धियों को दूर किया जाता हैं और संपीडित रूप में ऑक्सीजन सिलेन्डर में सुरक्षित कर ली जाती हैं।

       इस ब्रह्माण्ड के सर्वाधिक अद्भुत प्राणी मनुष्य सहित समस्त जीव जंतुओं के शरीर में ऑक्सीजन की समुचित मात्रा का होना आवश्यक है। मनुष्य को होने वाली कई बिमारियों विशेषकर हृदय और फेफड़े संबंधी बिमारियों में ऑक्सीजन थेरेपी देनी पडती हैं। कोरोना संकट के दौरान आक्सीजन लेवल और आक्सीजन लेवल को नापने वाला नपना आक्सीमीटर भी खूब चर्चा का विषय रहा।

 यह सर्वविदित तथ्य है कि- कोरोना महामारी के दौर में ऑक्सीजन की किल्लत सर्वत्र देखने-सुनने को मिली और ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते हुए लोगों का नजारा सारे हिन्दूस्तान ने देखा। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि-ऑक्सीजन के अभाव को लेकर राजनीतिक दलों में परस्पर होने वाले झगड़े को देश की जनता ने देखा।

     लगभग सभी टीवी चैनलो पर ऑक्सीजन को लेकर प्राइम टाइम भी चलाया गया। कोरोना संकट ने चिकित्सकीय ऑक्सीजन की उपलब्धता के साथ-साथ हमारी लचर स्वास्थ्य सुविधाओं की भी कलई खोलकर दी। एक तरफ ऑक्सीजन के अभाव में लोग दम तोड़ते रहे दूसरी तरफ ऑक्सीजन को लेकर सियासी ड्रामा भी खूब चलता रहा।

     भारत के नीति निर्माताओं को कोरोना संकट से अनुभव लेते हुए ऑक्सीजन की उपलब्धता और स्वास्थ्य सुविधाओं पर गम्भीरता से कार्य करना होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21मे कहा गया है कि- “प्रत्येक भारतीय को जिंदा रहने का अधिकार है।”

       परन्तु जिन्दा रहने का अधिकार तभी कारगर हो सकता है जब जीवन जीने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन उपलब्ध हो।    इसलिए वायुमंडल में इसकी उपलब्धता निरंतर बनी रहे इसके लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर  हमको सामूहिक प्रयास करना होगा।  

ऑक्सीजन को लेकर कोई सियासी खेल नहीं होना चाहिए। वर्तमान संसद के सत्र में भारत के स्वास्थ्य मंत्री यह वक्तव्य कि-ऑक्सीजन के अभाव में कोई मौत नहीं हुई निश्चित रूप अगम्भीर और राजनीति से प्रेरित वक्तव्य हैं तथा अपनी स्वास्थ्य संबंधी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना के समान हैं।

      बयानों और वक्तव्यो के माध्यम से महज लीपा-पोती कर सकते हैं जनता ने जो दुख दर्द झेला उसको नहीं कम सकते हैं। कई राज्यों और कई राज्यों के अस्पताल में ऑक्सीजन की किल्लत साफ-साफ देखने को मिलीं। कोरोना संकट के दौर में ऑक्सीजन की किल्लत को देखते हुए हमें वायुमंडल में ऑक्सीजन की समुचित उपलब्धता पर गम्भीरता से विचार करना होगा।

      वायुमंडल में इसकी पर्याप्त उपलब्धता से ही चिकित्सकीय और व्यवसायिक ऑक्सीजन हमें प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो सकती हैं। इसलिए वायुमंडल में इसकी उपलब्धता के लिए ऑक्सीजन उत्सर्जित करने वाले पेड़ पौधों को लगाने पर बल देना होगा ।भारतीय जनमानस में यह धारणा प्रचलित है कि-पीपल के वृक्ष में सर्वाधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करने की क्षमता होती हैं।

       इसलिए ऑक्सीजन को लेकर सियासी खेल करने वालों को ऑक्सीजन उत्सर्जित करने वाले पेड़ पौधों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। कुदरत ने निःशुल्क रूप से पर्याप्त रूप से ऑक्सीजन उपलब्ध किया था परन्तु विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य ने पर्यावरण का संतुलन बिगड़ दिया। आज फिर से पर्यावरण संतुलन पर सामूहिक रूप से विचार करना होगा।

       हर जिदंगी हंसती खिलखिलाती और मुस्कराती रहे इसके लिए अपनी लालच और  हबस पर नियंत्रण करना होगा तथा भावी पीढ़ियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए विकास की रूपरेखा तैयार करनी होगी।

     अगर हम सचेत नहीं  हुए तो जिस तरह हम पानी की बोतल खरीद कर साथ लेकर चल रहे हैं उसी तरह हमें ऑक्सीजन की बोतल या सिलेन्डर लेकर चलना पडेगा।

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