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मध्यप्रदेश में क्या होगा जल संकट का हल !

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जल पृथ्वी पर जीवन का आधार है। एक कहावत है कि जल है तो कल है। यह कहावत दशकों से हमारे अंदर समायी है। मगर, वाकई जल है तो हमारा आज है। अगर जल नहीं होगा, तब हमारे कल का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होगा। हमारी पृथ्वी पर पानी की कमीं नहीं है, लेकिन पीने योग्य पानी केवल 1 प्रतिशत है। 97 प्रतिशत पानी खारा है, जो समुद्र में है। वहीं, 2 प्रतिशत पानी ग्लेशियर्स में है, जिसे कृत्रिम रूप से पिघलाना संभव नहीं है। प्रत्येक जीवित प्राणी को पानी अत्यंत जरूरी है। हमारे शरीर में ही 65 प्रतिशत पानी है। देश का हदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्यप्रदेश जल संकट से जूझ रहा है। प्रदेश में बुन्देलखंड क्षेत्र की पहचान अब सूखे के रूप में रही है। 

सतीश भारतीय

आज पीने योग्य पानी की कमीं होने से, हम पानी को उसी तरह तरसने लगे हैं जैसे मछली तरसती है। जल संकट आज दुनिया का एक विकराल सवाल बना गया। जिसका हल समूची दुनिया तलाश रही है।

ऐसे ही हमारे देश भारत के कई राज्यों में जल संकट के हालात दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। देश का हदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्यप्रदेश जल संकट से जूझ रहा है। प्रदेश में बुन्देलखंड क्षेत्र की पहचान अब सूखे के रूप में रही है। बुन्देलखंड का अहम हिस्सा सागर जिला पहाड़ी इलाके के रूप में विद्यमान है।

सागर जिले में पानी का संकट बहुत तेजी से बढ़ रहा है। सागर के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों की नदियां, कुएं और तालाब सूखते जा रहे हैं। जिससे जिले के कई गांव में पानी की समस्या गंभीर रूप से मंडरा रही है।

बुन्देलखंड में पानी का संकट कितना भयंकर है? यह जाने के लिए हमने सागर जिले के कुछ गांव में पड़ताल की। पहले हम पहुंचे बेलई माफी गांव। इस गांव की जनसंख्या करीब 1000 है। गांव के कुछ लोगों से जब हाम पानी के संकट पर चर्चा करते हैं, तब सतोष कुर्मी बताते हैं कि ‘पानी की स्थिति बहुत खराब है। पानी लेने एक किलोमीटर दूर खेत में जाना पड़ता है। मुझे सुबह शाम पानी भरने के लिए ही घर वालों ने रखा है।’  

आगे हल्ले कहते हैं कि, ‘पानी भरने को लेकर हमारा तीन घंटे समय लगता है। पानी भरने के चलते मैं दूसरा काम नहीं कर पा रहा हूं। लगभग पांच माह से हमारे यहां पानी पाइप की छोटी लाइन बिछी हुई हैं, लेकिन, पानी अब तक आया नहीं है। हमारे गाँव में पानी की बड़ी टंकी भी नहीं हैं। हमें 60 फुट गहरे कुआं से पानी खीचना पड़ता हैं। कुएं से पानी खीचने के लिए करीब 2 किलोग्राम की रस्सी लग जाती है। इतने गहरे कुएं से 50 लीटर पानी ही खीचने में हाथ लाल होते हुए दर्द करने लगते हैं।,

आगे कुछ लोग कहते हैं कि, ‘पानी की समस्या हमने कई बार सरपंच से लेकर विधायक तक सामने रखी है। मगर, हुआ कुछ भी नहीं। आज गांव में छोटे बच्चे से लेकर महिलाओं और पुरुषों सब को पानी भरना पड़ता है।’

55 वर्षीय लक्ष्मण अहिरवार कहते हैं कि, ‘मैंने जब से होश संभाला है, तब से गांव में पानी की समस्या देखता आ रहा हूं। सोचता था कभी हमारे दिन बदलेगें। पानी हमारे घर आने लगेगा। मगर पानी की समस्या बढ़ती जा रही हैं। गर्मी में तो पानी की समस्या होती ही है मगर जब बरसात आती है, तब खेत में पानी लेने जाते हैं, तो पैर मिट्टी में धंस जाते हैं। पानी से भीगते और मिट्टी में धंसते पैरों में जख्म हो जाते हैं। यह जख्म पानी लाने का संघर्ष और बढ़ा देते हैं।’

आगे गौतम कहते हैं कि ‘गांव में 7-8 पानी के गड्ढे हैं। मगर, पानी किसी में नहीं हैं। गांव में पानी की लाइन जब डाली गई थी, तब दो हौदी जैसी छोटी टंकी बनाई गईं थी, मगर वह सूखी पड़ी हैं।’

आगे गौतम सहित कुछ लोग दावा करते हुए कहते हैं कि, ‘नहाने-धोने और मवेशियों को पिलाने के लिए हम तालाब से पानी लाते हैं। तालाब इतनी दूर है कि, 500 से ज्यादा पाइप के गिनडे लग जाते हैं।’

इसके आगे लाल सिंह कहते हैं कि, ‘गांव में पानी कि स्थिति यह है कि, कई पानी के गड्डे  250-600 फुट तक गहरे करवाए गए, लेकिन इन गड्डों में पानी नहीं निकला। गांव वालों के साथ स्कूल के बच्चों तक तक के लिए पानी की परेशानी है। सरकार ने तो पानी की सुविधा के लिए प्रयास किए है, सरकार ने पानी के लाइन भी डलवाई है। 6 गड्डे भी कराए हैं। लेकिन यहां सूखा की स्थिति है। यदि दूसरे क्षेत्र से पानी लाया जाए तब यहां सूखा के हालत ठीक हो सकते हैं।’

बेलई माफी गांव को पीछे छोड़ते हुए हम आगे निकलते हैं, तब पहुंचते हैं पिपरई गांव। यह गांव पठारी से सटा हुआ है। गांव में बहुत से कच्चे घर बने हुए हैं। गांव की जनसंख्या अनुमानित: 800 होगी।

इस गांव में गोपाल गली से हम प्रवेश करते हैं, तब एक दुकान के पास कुछ लोग हमें बैठे दिखाई देते हैं। जब हम पास पहुंचकर गांव में पानी की स्थिति पर चर्चा करते हैं, तब डमरूशंकर कुर्मी कहते हैं कि, ‘पानी इस गांव में कई वर्षों से नहीं है। गांव के एक नल में थोड़ा पाने निकलता उस पानी के लिए लोग दिन भर नल के पास बैठे रहते हैं। गांव में 9-10 सरकरी गड्डा हो चुके हैं, तब भी पानी नहीं मिला। पानी से हम लोग सबसे ज्यादा त्रस्त हैं।’  

आगे अवधेश बोलते हैं कि, ‘गांव में करीब 20 कुएं होंगे। लेकिन, कुएं खाली पड़े हैं। पीने का पानी करीब 2 किलोमीटर दूर से लाते है। पानी लाते-लाते दोपहर हो जाती है। ऐसे में घर के जरूरी काम भी छूट जाते हैं। पानी की मुख्य वजह यह जल स्तर का कम होना है।’   

द्वारका कुर्मी अपना दर्द ऐसे रखते हैं कि, ‘आस-पास के गांव में पानी की पाइप लाइन भी डाल दी गई है, मगर हमारे गांव में अभी तक पाइप लाइन नहीं डाली गई है। पानी की समस्या का मामला हमने गांव के सरपंच, सचिव से लेकर अधिकारियों तक रखा है। मैंने सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत भी की है। मगर, पानी की समस्या का समाधान नहीं हुआ है। हां हमको आश्वासन दिया गया है कि, पानी के संकट से मुक्ति मिलेगी। लेकिन, कब मिलेगी कुछ पता नहीं।’

आगे हमारी बात साहिल से होती है। साहिल फाइनेन्स के क्षेत्र में नौकरी करते हैं। उनका मानना है कि, ‘यदि गांव में एक-दो घंटे के लिए भी पानी की व्यवस्था कर दी जाए, तो ढंग से गांव वालों की प्यास बुझ जाए। पानी के बिना जीवन सूना-सूना लगता है।’

पिपरई गांव से हम अपने पैरों की दिशा मोड़ते हुए, हिलगन गांव (आबादी करीब 3000) की ओर निकल पड़ते हैं। गांव पहुंचने पर हमारी मुलाकात कुछ महिलाओं से होती है। जिनमें कमला पानी की परेशानी पर कहती हैं कि, ‘गांव में बांध तो है। बांध से नहाने-धोने के पानी की परेशानी नहीं है। लेकिन, गांव पीने के पानी की समस्या बहुत बिकट है। यहां 2 से 2.5 किलोमीटर दूर पानी लेने जाना पड़ता है। सुबह से पीने का पानी भरते-भरते 12 बज जाते हैं। कभी-कभी पीने का पानी हमारी मजदूरी छूटा देता है।’

आगे कुसमरानी बोलती हैं कि, ‘पानी कि समस्या हमें सोने नहीं देती है। हमें केवल पानी के लिए रात 3-4 बजे से उठना पड़ता है। गांव में पहले सड़क के किनारे कई नल हुआ करते थे, जिनसे थोड़ा बहुत पानी मिलता था। अब टू लाइन रोड बनने से बहुत से नल उखाड़ दिए गए हैं। अब हमें दूर-दराज के कुओं से पानी सिर पर ढो कर लाना पड़ता है। जब पानी एक कुएं में नहीं मिलता, तब हम दूसरे कुएं को जाते हैं। पता नहीं कब पानी की परेशानी मिटेगी या यूं ही पानी के लिए तड़पते रहेगें।’  

आगे गांव में अंदर की ओर हम जाते हैं तब हमें एक चबूतरे पर नरेन्द्र बैठे दिखाई देते हैं। जब हम उनसे पानी के मुद्दे पर गुफ्तगू करते हैं तब वह कहते हैं कि, ‘एक समय पानी गांव के पास हुआ करता था। मगर, अब पानी गांव से कोशों दूर चल गया है। आज शहरों के मुकाबले गांव में पानी की समस्या गहराती जा रही है। गर्मी के दिनों में मवेशियों को पानी पिलाने, नहलाने के लिए भयाभय संकट आ जाता है। वहीं, गर्मियों के दिनों में पेड़-पौधों को भी पानी नहीं दे पाते। यहाँ तक की शौच के लिए भी पानी की दिक्कत होती है। एक उम्मीद हमें गाँव में पानी की बड़ी टंकी से थी, लेकिन, पानी की टंकी सालों से सूखी पड़ी है।’

गांव की मुख्य सड़क पर जब हम आते हैं, तब हमें भगवान सिंह का घर दिखता है। घर पहुंचने पर हम देखते हैं कि, भगवान सिंह के घर पर एक कुआं खुदा है। कुआँ का पानी इतना गंदा कि, पीने का तो छोड़िए नहाने योग्य भी नहीं है। भगवान सिंह कहते हैं कि, ‘गांव में पीने के पानी की बहुत किल्लत है। आज पीने के पानी की समस्या ये समझिए जीवन जीने की समस्या बनती जा रही है।’

हिलगन गांव की मुख्य सड़क हमें दुधोनियां गांव की ओर ले जाती है। गांव पहुंचने पर कुछ लोगों से हमारी बातचीत होती है। लोग पूंछने पर बताते हैं कि, दुधोनियां गांव की आबादी करीब 1500 है।

इस गांव में तब एक शख्स अपना नाम नहीं बताते है, मगर वह पाने के विषय में यह बताते हैं कि, ‘गांव में वैसे तो नदी भरी हुई है। इसलिए नहाने धोने के पानी की समस्या नहीं है। लेकिन, पीने के पानी लोग काफी परेशान हैं।’

मुलायम जो की मजदूरी करके परिवार का पेट पालते हैं। वह बताते हैं कि, ‘गांव में दो छोटी टंकी है पानी की। मगर, इन टंकी में पानी नहीं है। गांव से 3 किलोमीटर दूर नदी है। नदी से खर्च के लिए पानी लेकर आते हैं।’

नथ्थु अपनी चाय-पान की दुकान चलाते हैं। वह बयां करते हैं कि, ‘गांव में लोगों को नदी का पानी पीना पड़ता है। नदी में लोग के साथ-साथ मवेशी भी नहाते हैं। वहीं, मुर्दा की राख भी नदी में डाली जाती है। नदी में ही लोग कपड़े धोते हैं। नदी में मवेशियों का मल-मूत्र भी जा रहा है। इस सब के बाद भी हम नदी का पानी पीने के लिए विवश है। गांव में पानी की व्यवस्थाएं चौपट हैं।’   

दुधोनियां गांव से जब हम मोटर साइकिल के सहारे चलते हैं, तब लगभग 20 मिनिट में चांदबर गांव पहुंचते हैं। इस गांव में एक नल पर हमें पानी भरती दिखती हैं एक महिला। महिला हमें देखकर घूंघट सिर से नीचे कर लेती है। हमने जब पुंछ आपका नाम क्या है? तब महिला हमें नाम बताने से कतराती है। मगर, महिला पानी की स्थिति पर कहती है कि, ‘गांव में एक ही नल है, जिससे पानी निकल रहा है। यदि यह नल बंद हो जाता है, तब पानी का अकाल आ जाता है। इस नल पर दिन-रात भीड़ पड़ी रहती है। लोग सुबह 4 बजे से रात के 2 बजे तक पानी भरते हैं।’

भागवत चौधरी एक छात्र हैं, उन्होंने इस वर्ष 10 कक्षा की परीक्षा दी है। वह बताते हैं कि, ‘गांव की आबादी 1200 है। गांव की प्यास बुझाने वाल एकमात्र नल जब बंद हो जाता है, तब गांव वालों को 2 किलोमीटर दूर खेतों में पानी लेने जाना पड़ता है।,

आगे आशिक चौधरी कहते हैं कि, ‘हम खेतों के आलवा दूसरे गांव ग्वारी भी पानी लेने जाते हैं। जब हम ग्वारी गांव पर पानी के लिए निर्भर होते हैं, तब हमें शर्मिंदगी का शिकार होना पड़ता है। दूसरे गांव में हमें सबसे बाद में पानी भरने मिलता है। कभी-कभी तो ग्वारी गांव के लोग हमें खाली बर्तन लिए बिना पानी के ही लौटा देते हैं।’

गांव के एक अन्य व्यक्ति बताते हैं कि, ‘गांव में एक कुआं हैं, जो सूखा पड़ा रहता है। हमारा गांव पानी पीने के लिए जिस नल पर निर्भर है, जब वह नल बिगड़ जाता है, तब गांव वाले चन्दा जुटाकर नल सुधरवाते हैं। अब समझ नहीं आता कि, पानी की समस्या के समाधान हेतु हम किससे उम्मीद करें।’

मध्यप्रदेश में जल संकट से संबंधित जब हम आंकड़े देखते हैं, तब मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय के डेटा के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में नल से पेयजल की स्थिति गुजरात में 55 प्रतिशतमहाराष्ट्र में 50 प्रतिशत और राजस्थान में 27 प्रतिशत है। तो वहीं मध्यप्रदेश में 9.9 प्रतिशत है। जो की सोचनीय है। देश में करीब 33 करोड़ लोग आज भी स्वच्छ जल से वंचित हैं। करीब 47 फीसदी घरों में ही नल कनेक्शन हैं।

मध्यप्रदेश में वर्ष 2014 तक 531217 कुल शासकीय स्थापित हैंडपंप थे। इन हैंडपंप में चालू  हैंडपंप 509825 थे। कुल बंद हैंडपंप 21392 थे। जल स्तर काम होने से बंद हैंडपंप 9570 थे। वहीं असुधार योग्य हैंडपंप 6995 थे। गुणवत्ता और अन्य कारणों से बंद हैंडपंप 1027 थे। जबकि, साधारण खराबी से बंद हैंडपंप 3800 थे।

प्रदेश में वर्ष 2013-14 में पेयजल व्यवस्था हेतु 60567.26 लाख रूपए उपलब्ध कराए गए। वहीं, वर्ष 2014-15 में पेयजल की व्यवस्था के लिए 50351.14 लाख रूपए उपलब्ध कराए गए।   

हमें यूनाइटेड नेशन वाटर का डेटा बताता है कि 2.3 अरब लोग जल-तनावग्रस्त देशों मे निवास करते हैं। जिनमें 733 मिलियन लोग अत्यधिक और गंभीर रूप से जल-तनावग्रस्त देशों में रह रहे हैं। 3.2 अरब लोग उच्च से लेकर बहुत अधिक पानी की कमी वाले कृषि क्षेत्रों में रहते हैं।

वहीं, यूनिसेफ के अनुसार, 4 अरब लोग हर साल कम से कम एक महीने के लिए गंभीर पानी की कमी का अनुभव करते हैं। दुनिया की आधी आबादी 2025 तक पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में रह रही होगी। 2030 तक भीषण जल संकट के कारण लगभग 700 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं। वहीं, वर्ष 2040 तक, दुनिया भर में लगभग में से बच्चा अत्यधिक उच्च जल तनाव वाले क्षेत्रों में रह रहा होगा। 

वर्ल्ड विज़न का डेटा जब हम देखते हैं तब ज्ञात होता है कि, वैश्विक स्तर पर 785 मिलियन लोग की स्वच्छ पेयजल तक पहुंच नहीं है। दुनिया भर में हर दिन गंदे पानी से होने वाले दस्त के कारण 800 बच्चे मौत का शिकार हो जाते हैं।  

साल 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। आने वाले समय में 2050 तक जल संकट की वजह से देश की जीडीपी को 6 प्रतिशत का नुक़सान होगा।

भारत गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, जिससे सालाना लगभग 200,000 मौतें होती हैं। येल विश्वविद्यालय के 2022 असुरक्षित पेयजल सूचकांक में भारत को 180 देशों में से 141वां स्थान दिया गया है। भारत का लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है। 2030 तक, भारत की पानी की मांग उपलब्ध मात्रा से दोगुनी होने का अनुमान है भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत है लेकिन जल संसाधन केवल 4 प्रतिशत है, जो इसे सबसे अधिक जल संकट वाले देशों में से एक बनाता है। 2031 के लिए प्रति व्यक्ति औसत जल उपलब्धता 1367 घन मीटर आंकी गई है।  

दिल्ली के पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ से जब हमने बुंदेलखंड में जल संकट को लेकर चर्चा की, तब विक्रांत बताते हैं कि, ‘बुन्देलखंड के जल संकट को लेकर संवाद होता रहता है। सरकार भी जल संकट के समाधान को लेकर प्रयासरत रहती है, मगर जल संबंधी योजनाओं से कोई ठोस परिवर्तन नहीं आ पाया है। बुन्देलखंड के पानी की समस्या आज सबके सामने है। इसलिए केन-बेतवा लिंक परियोजना स्थापित की जा रही है। बुन्देलखंड में जल संकट की वजह जलवायु परिवर्तन भी रही है। जल संकट से बुन्देलखंड में पलायन भी बढ़ रहा है। जल संकट में बुंदेलखंड से भी खराब हालत इज़राइल और सिंगापुर जैसे देशों के हैं। मगर, जल का सही उपयोग करके ये देश विकसित होते जा रहे हैं। दुनिया में अपनी पहचान बनाए हुए हैं।’

विक्रांत तोंगड़ आगे सुझाव देते हुए कहते हैं कि, ‘बुन्देलखंड में चेक डेम बनाकर, ऐसी फैक्ट्री लगाकर जिनमें पानी का कम उपयोग हो, कम पानी वाली फसलें लगा कर और अन्य तरीकों से पानी बचाया जा सकता है। जिससे आने वाले दिनों में बुन्देलखंड भी समृद्ध होगा।’   

आगे हमने जल संकट के समाधान को लेकर घरों में सब्जियां उगाने को लेकर प्रोत्साहित करने वाली कंपनी ‘वेज रूफ़’ के संस्थापक मिथलेश कुमार सिंह से भी संवाद किया। इस संवाद में वह बताते हैं कि, ‘पानी की समस्या वैश्विक है। जिस देश ने पानी की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया है उसने उसका परिणाम भुगता है। पानी बचाने से ज्यादा जरूरी है पानी का सही इस्तमाल करना। जैसे उदाहरण के तौर पर जैसे हम छतों और वालकनी पर जो सब्जियां उगाते हैं, उसमें ड्रिप ईरिगेशन (पनि बचाने वाली विधि) का उपयोग करते हैं। इस विधि से जहां 100 प्रतिशत पानी लगना है, वहाँ 25 प्रतिशत पानी लगता है। जिससे 75 प्रतिशत पानी की बचत हो जाती है।’

मिथलेश आगे सुझाव देते हैं कि, ‘पानी के बचाव और संरक्षण के लिए हमें अपनी जीवन शैली बदलने और जागरूक होने की जरूरत है। पानी जैसे प्राकृतिक संसाधन के उपयोग के बारे में विशेष रूप से स्कूल में पढ़ाया जाना जरूरी है।’

जब हम जल संकट के विभिन्न कारणों की तरफ ध्यान देते हैं, तब जल संकट कई कारण समझ आते हैं, जैसे, जनसंख्या वृद्धि, शहरी जल-उपचार में अपर्याप्त और विलंबित निवेश से खराब पानी की गुणवत्ता है। किसानों द्वारा अत्यधिक दोहन के कारण भूजल आपूर्ति में कमी है। मानसूनी बारिश की क्षमता घटना। पारिस्थितिकी तंत्र का नष्ट होना। जलवायु परिवर्तन होना। जल का एकत्रीकरण ना करना। मृदा अपरदन। जैसे विभिन्न जल संकट के कारण हमारे सामने आते हैं।

वहीं, जब हम जल संकट के समाधान की ओर नजर डालते हैं। तब यदि इन बिन्दुओं की ओर  ध्यान दिया जाए तब जल संकट का समाधान किया जा सकता हैं, जैसे कि, पानी की बचत, उपयोगिता और संरक्षण की ओर ध्यान देना। खेती में पानी का सही उपयोग करना। नदी, झरनों और तालाबों के पानी के संरक्षण और गुणवत्ता पर बल पूर्वक ध्यान  देना। पेड़ पौधों को लगाना। खारे पानी को पीने योग्य बनाना। नदी जोड़ो अभियान पर बल देना। जल प्रदूषण को कम करना  जैसे जल संरक्षित करने के विभिन्न पहलू हैं। जो जल संकट के समाधान का रास्ता सुझा सकते हैं और जल जरिए हमारा जीवन समृद्ध करने में सहायक हो सकते हैं।

 प्यास मिटाने के लिए 2KM पैदल चल नदी से लाते हैं पानी

 मध्य प्रदेश सरकार राज्य के अलग-अलग जिलों में शुद्ध पेयजल पहुंचाने को लेकर प्रयासरत है. हर घर नल का जल योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की पाइप लाइन पहुंचाई जा रही है. सरकार के मंत्री और अधिकारी दावा करते हैं कि राज्य में लोगों को पेयजल संकट से लगभग मुक्ति मिल गई है. लेकिन इन दावों से इतर, अब भी कुछ ऐसे गांव हैं, जहां पर शुद्ध पेयजल लोगों के पहुंच से बाहर है.उन्हीं में से एक गांव है बसाली, जो कि बुरहानपुर में स्थित है.

बसाली गांव में रहने वाले लोग हर दिन पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं. ग्रामीण पीने के लिए नदी के पानी को इस्तेमाल में लाते हैं. लेकिन, पानी के लिए भी उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. ग्रामीणों को नदी तक पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. वहां पहुंचकर महिलाएं या पुरूष बर्तन में पानी भरते हैं. फिर सिर या बैलगाड़ी के जरिए इसे गांव तक लाते हैं. बताया जा रहा है कि यह गांव आदिवासी बहुल है.

गांव में सालों से पेयजल संकट

ग्रामीण बताते हैं कि सालों से गांव में पानी की समस्या बनी हुई है. गांव में न तो हैंडपंप की व्यवस्था है और न ही कोई कुआं-बावड़ी है. इसी वजह से हमें 2 किलोमीटर दूर से पानी लाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. जिला कलेक्टर भाव्या मित्तल के मुताबिक, वे लोग वन क्षेत्रों में निवास करते हैं.ये लोग लगातार वन अधिकार पट्टे की डिमांड कर रहे हैं. पर उनके दावे अभी तक स्वीकार नहीं हुए हैं.

जिला कलेक्टर के मुताबिक,वन अतिक्रमण कर रहने वालों को किसी भी तरीके की सुविधा नहीं दी जा सकती. यह केवल एक गांव की समस्या नहीं है. ऐसे कई गांव हैं. इसको लेकर सीईओ जिला पंचायत वेरिफिकेशन करने भी गए थे. वहीं, कांग्रेस के पूर्व जिला उपाध्यक्ष हेमंत पाटिल का आरोप है कि बीजेपी सरकार नल जल योजना में पूरी तरह से फेल हो चुकी है. इसी वजह से ग्रामीणों को नदी में गड्ढा खोदकर पानी लाना पड़ रहा है.

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