नीतीश कुमार से झगड़े में उपेंद्र कुशवाहा इतने आगे निकल चुके हैं कि उनके लिए पीछे लौटना अब मुश्किल दिख रहा है। कम से कम हाल-फिलहाल में ऐसी स्थिति बनते तो नहीं दिख रही है। पहली नजर में ये दिख रहा है कि कुशवाहा को बीजेपी से ऑफर है। पहले भी वो बीजेपी के साथ सरकार में रहे हैं। मगर तब की स्थिति कुछ और थी और आज की कुछ और है। वैसे भी उपेंद्र कुशवाहा की लॉयल्टी सवालों के घेरे में रही है। चाहे वो नीतीश के साथ रहे तब या फिर बीजेपी के साथ रहे तब भी। वैसे, बिहार की राजनीति जो भी नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के खिलाफ बोलता है, उसकी पीठ को बीजेपी के नेता ठोकते हैं। आरसीपी सिंह (RCP Singh) से लेकर अजय आलोक तक कई उदाहरण भरे पड़े हैं। मगर, बीजेपी ने किसी को भी पार्टी में शामिल नहीं किया। सभी के सभी वेट एंड वॉच लिस्ट में हैं। अनुमान लगाया गया कि दिल्ली से हरी झंडी नहीं मिली। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को जेडीयू छोड़ना ही पड़ा तो उनके पास आगे क्या ऑप्शन है?
कुशवाहा के पास विकल्प क्या है?
उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ पहले तो सिर्फ नीतीश कुमार ही बयान दिया करते थे, अब तो जेडीयू और आरजेडी के छोटे नेता भी बोलने लगे हैं। देर-सबेर उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी तो छोड़नी ही पड़ेगी। जितने दिन का नीतीश कुमार का साथ था, उसे वो पूरा कर चुके हैं। दिल्ली एम्स में बीजेपी नेताओं से मुलाकात आखिरी कील साबित हुई। आज नहीं तो कल उपेंद्र कुशवाहा की जेडीयू से विदाई तय है। वैसे, उपेंद्र कुशवाहा हिस्सेदारी की बात जरूर कर रहे हैं। मगर इतिहास गवाह है, राजनीति में हिस्सेदारी कहां मिलती है? खुद के लिए सबकुछ खुद ही जमा करना होता है। फिर नेता उसका सुख खुद ही भोगते हैं। और ये सबकुछ एक दिन में नहीं होता है। ऐसे में कुशवाहा के पास राजनीतिक विकल्प क्या है?
BJP में एडजस्ट हो जाएंगे कुशवाहा?
वैसे तकनीकी तौर उपेंद्र कुशवाहा आज भी एमएलसी के साथ-साथ जेडीयू पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष हैं। मगर, ये दोनों ही ओहदे खतरे में है क्योंकि नीतीश कुमार के खिलाफ बिगुल फूंक चुके हैं। वैसे भी, उपेंद्र कुशवाहा को चले जाने के लिए नीतीश कुमार कह चुके हैं। पत्रकारों के जरिए बीजेपी के नेता कुशवाहा को ऑफर कर चुके हैं। नीतीश कुमार भी चाह रहे हैं कि कुशवाहा अपने आप चले जाएं ताकि उन्हें कुछ न करना पड़े। बीजेपी भी इसी ताक में है कि कब कुशवाहा को नीतीश कुमार जेडीयू से निकालते हैं। मगर, बीजेपी में उपेंद्र कुशवाहा किन शर्तों पर जाएंगे या फिर बीजेपी उन्हें किन शर्तों पर स्वीकार करेगी, फिलहाल कहना मुश्किल है। चूंकि उपेंद्र कुशवाहा अति महात्वाकांक्षी व्यक्ति हैं, उनकी नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हमेशा से रही है। वो खुद को बिहार के बड़े नेताओं में शुमार मानते हैं। नीतीश कुमार के बराबरी का समझते हैं। ऐसे में बीजेपी में भी कुछ नेता हैं जो नहीं चाहेंगे उपेंद्र कुशवाहा पार्टी में आएं। तो फिर उपेंद्र कुशवाहा क्या करेंगे?
ऑप्शन नंबर 1- सिर्फ बीजेपी
उपेंद्र कुशवाहा के पास सीधा और सपाट विकल्प है कि वो बीजेपी में शामिल हो जाएं। बिहार में जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस सहित सात पार्टियों के महागठहबंधन की सरकार है। कुशवाहा के पास सिर्फ और सिर्फ बीजेपी ही बचती है। अगर किसी पार्टी में जाने के बारे कुशवाहा सोचते हैं तो बीजेपी के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। मगर ये सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा के चाहने से नहीं होगा। इसके लिए बीजेपी भी देखेगी कि उपेंद्र कुशवाहा के आने से पार्टी को क्या फायदा होगा? इनके आने से कहीं पार्टी के बड़े नेताओं को दिक्कत नहीं होगी? पार्टी के लिए उपेंद्र कुशवाहा कितने सीटों पर जीत दिला सकते हैं? उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक महात्वाकांक्षा क्या है?
ऑप्शन नंबर 2- अपनी RLSP
वैसे, उपेंद्र कुशवाहा के पास अपनी एक पार्टी भी है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के बदौलत वो 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन कर पाए थे। जीतने पर मोदी कैबिनेट में मंत्री भी रहे। लेकिन पटना की कुर्सी के चक्कर में उपेंद्र कुशवाहा ने दिल्ली की गद्दी छोड़ दी। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ओवैसी की AIMIM और मायावती की BSP के साथ ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट बनाया और उसके सीएम उम्मीदवार खुद बने। ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट में कुशवाहा की RLSP, ओवैसी की AIMIM, मायावती की BSP के अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक और जनतांत्रिक पार्टी (समाजवादी) शामिल थी। रिजल्ट में AIMIM को पांच BSP को एक सीट मिली। कुशवाहा की RLSP का खाता नहीं खुला और वो खुद भी चुनाव हार गए। इतना नेट प्रैक्टिस करने के बाद कुशवाहा ने खुद को नीतीश के सुपुर्द कर दिया। ऐसे में उनके पास अपनी पार्टी को फिर से जिंदा करने का भी एक विकल्प है। मगर ये इतना आसान नहीं है। क्रेडिबिलिटी नाम की भी कोई चीज होती है।
ऑप्शन नंबर 3- नई पार्टी
उपेंद्र कुशवाहा अगर अपनी पार्टी RLSP को फिर से जिंदा करने की सोचेंगे तो अब राजनीतिक हालात काफी बदल गए हैं। वैसे भी, अरुण कुमार के साथ RLSP पर कब्जे को लेकर कानूनी लड़ाई चल रही है। कानूनी दांवपेच में उलझने के बजाय कुशवाहा अपनी नई पार्टी भी लॉन्च कर सकते हैं। उपेंद्र कुशवाहा खुद को कुशवाहा समुदाय का बड़ा नेता मानते हैं। ओबीसी में आनेवाले इस वोट बैंक का लाभ फिलहाल नीतीश कुमार को मिल रहा है। इसी के बदौलत कुशवाहा हिस्सेदारी की मांग नीतीश कुमार से कर रहे हैं। इस समुदाय के कुछ वैसै लोगों को तोड़कर कुशवाहा अपनी नई पार्टी की नींव रख सकते हैं। वैसे, 2005 में उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई, फिर उसका विलय जेडीयू में करा दिया। 2013 में कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई, फिर उसका भी विलय जेडीयू में करा दिया। अगर फिर नई पार्टी बनाए तो ये तीसरा मौका होगा। मगर फिर यहां भी सवाल भरोसे का है। पार्टी के चलाने के लिए लॉयल लोगों की जरूरत पड़ती है। इतना इधर-उधर कर चुके हैं कि कुशवाहा के साथ ये सबसे बड़ी संकट है।