मनीष सिंह
मैं तो एक आइलैंड खरीदूंगा, एक बढ़िया रिजॉर्ट टाइप बंगला बनाऊंगा। मने प्राइवेट बीच, पूल, कॉटेज, गार्डन। फिर एक ठो हवाई पट्टी और एक छोटुक से 8 सीटर प्लेन। इसके बाद भी हजार पन्द्रह सौ करोड़ बच जाएंगे। उसमे से सौ करोड़ रख के, बाकी इस पोस्ट को पढ़ने वालों में बांट दूंगा।
छोटा आदमी, छोटी सोच।
अल्फ्रेड नोबेल को इत्ते पैसे मिलते, तो वो एक इंटरनेशनल प्राइज रखते। मने सारे पैसे एक फंड बनाकर एक ट्रस्ट के मैनेजमेंट में छोड़ देते। एंडोमेंट फंड, याने मूल कभी नही छुवा जाएगा। लेकिन ब्याज की इफरात राशि से पूरी दुनिया मे साइंस, टेक्नॉलजी, इकनामिक्स और शांति के लिए काम करने वालो को प्रोत्साहित पुरुस्कृत और सम्मानित किया जाए।
आने वाले सौ से ज्यादा साल दुनिया के टॉप ब्रेन का सिर्फ एक सपना हो, एल्फ्रेड नोबल की शक्ल लगा वो पदक पाना। अमर स्मृति, मानव जाति के हर बेस्ट टैलेंट पर नोबल का ठप्पा, उंसके बेस्ट होने का सबूत।
बड़ा आदमी, बड़ी सोच।
मगर किसी मानसिक रूप बीमार, प्रदर्शनप्रिय, हाही आदमी को इतना पैसा मिल जाये तो क्या करेगा। अजी, तंग गली के बाजू में 4000 स्क्वेयर फुट जमीन लेगा।
उसके ऊपर ऐड़ेंग बेड़ेग डिजाइन का मकान बनाएगा। जिसमे 26 मंजिल हो, लेकिन हाइट 40 मंजिल बराबर हो। जिसमे चार मंजिल में तो 100 ठो कार रखने का स्पेस हो। छत पे तीन हैलीपेड हों,
सिनेमा हॉल हो,गेस्ट रूम हो, अपना एयर ट्राफिक कंट्रोल हो। ओपन टेरेस गार्डन हो, और एक स्विमिंग पूल हो। जिसमे एक दाढ़ी वाला, और एक मोटा गुज्जू रोज सुबह छप छप खेलने आते हों। (उनको बुलाकर नहलाने की कास्ट एक्स्ट्रा है)
सबै चीज घर मे है। मने पिक्चर देखने जाना नही। पार्क में घूमने जाना नही। सब घरे में बनाए हो ससुर। सामान ,राशन, कपड़े, लत्ते, सब तुम्हारे घर मे दुकानदार दे जाते होंगे। कंजस्टेड शहर है, तो फरारी दौड़ा सकते नही।तो कहां जाओगे बे … 70 ठो कार लेकर।
और कहाँ उड़ोगे एक साथ तीन हेलीकॉप्टर में, मने अजय देवगन की तरह एक एक चोपर पे एक एक टांग रखके उड़ोगे तो भी एक चौपर एक्स्ट्रा बच जाएगा। कित्ता बड़ा बैडरूम होगा, कित्ती बड़ी बेड होगी, की लोट लोट के दौड़ दौड़ के सब तरफ सोते होंगे। मने ई का बवासीर बनाये हो बे?
पर इसमे एक कमी है।
प्राइवेट श्मशान नही है।
फिर भी, दुनिया मे सबसे बड़े पगलैटि अगर कहीं है, तो यही है, यहीं है यहीं है।
नकली आदमी, नकली सोच..