नई दिल्ली । आपातकाल के दौरान जब देश के बड़े विपक्षी नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजस्थान के एक किले में खजाना खोजने के लिए सेना की टुकड़ी उतार दी। यह खजाना आज भी रहस्य बना हुआ है। आज तक पता नहीं चला कि अगर किले से खजाना निकला तब कहां चला गया। वैसे इंदिरा सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि पांच महीने चले अभियान में कोई खजाना हाथ नहीं लगा है।
यह किस्सा 1975-76 का है जब देश में आपातकाल लगा हुआ था. इस दौरान आयकर विभाग ने जयपुर राजघराने के महलों पर डेरा डाला. गायत्री देवी और उनके बड़े बेटे ब्रिगेडियर भवानी सिंह को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था. आपातकाल के समय ही सेना ने जयगढ़ किले में खोजी अभियान चलाया था. खुद संजय गांधी जयपुर पहुंचे थे. इस किले में पूरे पांच माह इंदिरा सरकार ने खुदाई करवाई थी. फिर एक दिन के लिए जयपुर-दिल्ली हाईवे को बंद कर दिया गया था. लोगों ने खूब चर्चा रही थी कि इंदिरा सरकार ने लोगों को धोखे में रखकर खजाना हाईवे से ट्रक भरकर दिल्ली पहुंचाया है. हालांकि, सरकार ने किले से कोई खजाना नहीं मिलने की बात कही थी.
आपातकाल के दौरान स्वर्गीय संजय गांधी के नाम का बड़ा खौफ था. जब सेना ने जयगढ़ किले में डेरा डाला तो लोगों में यह बात आम हो चली थी कि पूरी कार्रवाई संजय गांधी की निगरानी में हो रही है. दरअसल, एक दिन संजय गांधी अचानक अपना विमान से सांगानेर हवाई अड्डे पहुंचे. फिर सेना के बड़े अधिकारी एक-दो बार निरीक्षण के लिए जयगढ़ आए. तभी से यह अफवाह फैलने लगी जयगढ़ में दौलत मिल गई है. पांच माह तक खुदाई के बाद इंदिरा सरकार की ओर से बताया गया कि कोई खजाना नहीं मिला है. महज 230 किलो चांदी और कुछ सामान मिला है. यह भी दावा किया गया कि सेना ने सामानों की सूची राजपरिवार के प्रतिनिधि को दिखाई और उसके हस्ताक्षर लिए. फिर सामान सील कर दिल्ली ले गई. हालांकि ट्रकों का काफिला जब दिल्ली लौटने लगा तो एक बार फिर से अफवाह फैल गई कि जयपुर-दिल्ली का राजमार्ग पूरे दिन बंद कर दिया गया और जयगढ़ का माल छुपाकर सेना के ट्रकों में ले जाया गया है.
कहां से आई खजाने वाली बात
अरबी पुस्तक ‘तिलिस्मात-ए-अम्बेरी’ के मुताबिक, जयगढ़ में सात टांकों के बीच दौलत छुपाई गई थी. अकबर के दरबार में सेनापति जयपुर के राजा मानसिंह (प्रथम) ने अफगानिस्तान पर हमला किया था. इस हमले में राजा मानसिंह को काफी धन-दौलत मिली. उन्होंने इसे दिल्ली दरबार में सौंपने की बजाय अपने पास ही रख लिया था. जयगढ़ किले के निर्माण के बाद कहा जाने लगा कि इसमें पानी के संरक्षण के लिए जो विशालकाय टांके बने हैं, उसमें सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात छिपाकर रखे गए हैं.
खुदाई के दौरान अक्सर किले के ऊपर हेलिकॉप्टर देखे जाते थे। इससे इस बात को और बढ़ावा मिला कि किले में जरूर खजाना है। वहीं बीच में इंदिरा गांधी अपने सुपुत्र संजय गांधी को साथ लेकर किले में गई। खुदाई पूरी होने के बाद इंदिरा गांधी ने कहा कि जयगढ़ में 230 किलो चांदी के अलावा और कोई खजाना नहीं मिला है।
जयगढ़ का यह कथित खजाना तब से रहस्य ही बना हुआ है। कई बार कोशिश आरटीआई डालकर जानकारी हासिल करने की की गई। इसके बावजूद कोई जानकारी नहीं मिली। यह भी कहा जाता है कि खुदाई के दौरान कई दिनों तक जयपुर-दिल्ली हाइवे को बंद कर दिया गया था। इस दौरान किले से 50 से 60 ट्रक दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। हालांकि यह कभी पता नहीं चल पाया कि ट्रकों में क्या था।
जब भुट्टो ने मांगा था पाकिस्तान का हिस्सा
1975 में रूस के एक वीकली न्यूजपेपर सेंट पीटर्सबर्ग ने जयगढ़ के किले पर हुई कार्रवाई को लेकर एक स्टोरी छापी. गायत्री देवी की गिरफ्तारी और सर्च अभियान में क्या मिला, यह भी इस स्टोरी में बताया गया था. इस न्यूज के आधार पर ही पाकितान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने अगस्त 11, 1976 को इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखकर खजाने में अपना हिस्सा मांगा था. भुट्टो ने पत्र में कहा था कि आपकी सरकार जयगढ़ में खजाने की खोज कर रही है. इस बाबत विभाजन के पूर्व के समझौते के अनुसार, जयगढ़ की दौलत पर पाकिस्तान का हिस्सा बनता है.
भुट्टो ने यह भी लिखा था कि ‘पाकिस्तान को यह पूरी उम्मीद है कि खुदाई के बाद मिली दौलत पर पाकिस्तान का जो हिस्सा बनता है, उसे बिना किसी शर्त के दिया जाएगा.’ हालांकि इंदिरा गांधी ने भुट्टो की चिट्ठी का तत्काल कोई जवाब नहीं दिया. जब जयगढ़ से सेना लौट आई, तब इंदिरा गांधी ने 31 दिसंबर 1976 को भुट्टो को पत्र लिखा. अपने जवाब में उन्होंने कहा कि उन्होंने विधि-विशेषज्ञों को पाकिस्तान के दावे का औचित्य जांचने के लिए कहा था. विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्तान का कोई दावा ही नहीं बनता. इंदिरा गांधी ने जयगढ़ में खजाने नाम की कोई चीज नहीं मिली की बात पत्र में लिखी थी.
गायत्री देवी से था इंदिर गांधी का टकराव
देश को आजादी मिलने के बाद जयगढ़ किले में खजाने की बात की अक्सर चर्चा होती थी. जयपुर राजघराने के प्रतिनिधि राजा सवाई मान सिंह (द्वितीय) और उनकी पत्नी गायत्री देवी लोग कांग्रेस के धुर विरोधी थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी उनके रिश्ते अच्छे नहीं थे. 1962 में चक्रवर्ती राजगोपालचारी की स्वतंत्र पार्टी से गायत्री देवी ने तीन बार लोकसभा चुनाव भी जीत चुकी थीं. इस टकराव को भी किले में कार्रवाई की वजह माना जाता है.