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सबका साथ सबका विकास में कहां है मजदूर किसान और युवा 

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,मुनेश त्यागी 

        भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि स्थाई सरकार से ही आर्थिक विकास हो सकता है और भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र होगा जिसमें सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार और जातिवाद का नाम ओ निशान मिट जाएगा। उन्होंने यह भी कहा है कि अर्थव्यवस्था, शिक्षा, वित्तीय क्षेत्र, बैंक, डिजीटीकरण, समावेशन और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित इन सुधारों ने एक मजबूत बुनियाद रखी है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि हुई है और सरकार की इन नीतियों की वजह से भारत पांच पायदान की छलांग लगाकर दसवीं से पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने यह भी कहा है कि अब भारत दो अरब कुशल हाथों वाला देश बन गया है।

       मगर जब हम प्रधानमंत्री मोदी की इन सारी बातों पर नजर दौड़ आते हैं और इसका एक आकलन करते हैं तो हम पाते हैं कि उनकी ये तमाम घोषणाएं सच्चाई से एकदम परे हैं। उनकी इन बातों का धरती पर मौजूद असमानता, धर्मांता, अंधविश्वास, जातिवाद और सांप्रदायिकता को खत्म करने से कोई लेना-देना नहीं है। हम यहां पर जानना चाहेंगे कि भारत की सरकार ने इस देश के अधिकांश किसानों, मजदूरों, नौजवानों के लिए क्या किया है? शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने सबको आधुनिक शिक्षा देने और सबको मुफ्त इलाज देने और सबका विकास करने के लिए सरकार ने क्या किया है? 

         जनता को, करोड़ों करोड़ लोगों को, करोड़ों बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए, हमारे देश में बढ़ रहे आर्थिक असंतुलन और आर्थिक असमानता को पाटने के लिए उसने क्या किया है? किसानों मजदूरों और एससी एसटी और ओबीसी समुदाय के करोड़ों गरीब लोगों के कल्याण के लिए उसने क्या किया है? इसका कोई ब्यौरा उन्होंने नहीं दिया है। यहीं पर कुछ मुद्दों पर सरकार की स्थिति को जानना बहुत जरूरी है।

          किसान*****हमारे देश में खेती सबसे बड़ा उद्योग है जिसे किसान और खेती और मजदूर मिलकर करते हैं। भारत के किसान पिछले कई सालों से अपनी समस्याओं को लेकर आंदोलन करते चले आ रहे हैं, मगर सरकार के वादों के बावजूद भी उन्हें आज तक फसलों का वाजिब दाम नहीं मिला है। कृषि में लगने वाली लागत को सरकार ने कम नहीं किया है। बीजों, दवाइयां, डीजल, पेट्रोल और बिजली के दाम कम नहीं किए हैं, बल्कि उन पर टैक्स की दरों को और बढ़ा दिया है।

          मजदूर *****हमारे देश को किसानों और मजदूरों ने मिलकर सजाया और संवारा है। मजदूरों के शोषण को रोकने के लिए 60-70 साल पहले कुछ मजदूर कानून बनाए गए थे जिनकी वजह से कुछ मजदूरों को कुछ हद तक पूंजीपतियों के शोषण से मुक्ति मिली। मगर पिछले 25-30 सालों से हम देख रहे हैं कि सरकार की नाकामी की वजह से पूरे पूंजीपति वर्ग और कारखानेदारों ने इन श्रम कानून को मिट्टी में मिला दिया है, उनको लागू करना लगभग बंद कर दिया है। आज मजदूरों को अपनी यूनियन बनाना, संगठित संघर्ष करना और अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन चलाना लगभग असंभव हो गया है। हक़ मांगने वालों को ही सबसे पहले नौकरी से निकाल दिया जाता है। आज भी हमारे देश के 85 परसेंट मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है आखिर उनके लिए सरकार ने क्या किया है?

         शिक्षा***** भारत की शिक्षा व्यवस्था को सरकार द्वारा सबसे ज्यादा आघात पहुंचाया गया है। शिक्षा के बजट को लगातार कम किया गया है। आज तो हालत यह हैं की रिपोर्टों के अनुसार अधिकांश सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है, अधिकांश सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षित शिक्षक नहीं है, शिक्षकों के नाम पर सांप्रदायिक तत्वों को शिक्षा में प्रवेश कराया जा रहा है और जनता को शिक्षा का प्राइवेटाइजेशन करके लुटने पिटने के लिए छोड़ दिया गया है। भारत के तमाम गरीबों को जैसे शिक्षा से बाहर ही कर दिया गया है। शिक्षा को बदहाली और बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया गया है। शिक्षा को सही रास्ते पर लाने के लिए मोदी सरकार के पास क्या रोड मैप है?

            रोजगार*****आज भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा बेरोजगार नौजवान मौजूद है। सरकार वर्षों से खाली पड़े हुए करोड़ों पदों को नहीं भर रही है। हमारा यह विकास रोजगार विहीन विकास हो गया है और बेरोजगारों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लगातार प्रयास करने के बावजूद भी सरकार इन बेरोजगार नौजवानों को काम नहीं दे रही है। नौकरी नहीं दे रही है, जिस वजह से इन नौजवानों का भविष्य विनाश के कगार पर पहुंच गया है। सरकार के पास आज भी इन करोड़ों बेरोजगारों को रोजगार देने का कोई रोड मैप नहीं है।

          स्वास्थ्य*****आजादी के बाद हमारे देश में सरकारी अस्पतालों का जिला और ब्लॉक लेवल पर ताना-बाना बुना गया था। हजारों साल से स्वास्थ्य से वंचित गरीब लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध कराई गईं। मगर पिछले 15-20 सालों से स्वास्थ्य का बजट लगातार घटाया जा रहा है। हमारे अधिकांश सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, नर्स, वार्ड बॉय और कर्मचारी नहीं हैं, आधुनिक स्वास्थ्य मशीनें नहीं हैं। जबकि प्राइवेट क्षेत्र में ये सारी मशीनें उपलब्ध हैं। आखिर सरकारी अस्पतालों में इन आधुनिक स्वास्थ्य मशीनों को उपलब्ध क्यों नहीं कराया गया? सरकार ने भारत की अधिकांश जनता को प्राइवेट अस्पतालों के द्वारा लुटने पिटने के लिए छोड़ दिया गया है और आज अधिकांश गरीब लोग शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित कर दिये हैं। सरकार के पास आज भी इन करोड़ों करोड़ों गरीब लोगों को सस्ता और मुफ्त इलाज देने का कोई रोड मैप नहीं है।

          सस्ता और सुलभ न्याय*****भारत के आजादी के बाद भारत के संविधान में प्रावधान किया गया था कि जनता को सस्ता और सुलभ न्याय उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए जिला स्तर पर अदालतों की स्थापना की गई और भारत की जनता को कुछ न्याय मिला। मगर पिछले 25-30 सालों से हम देख रहे हैं कि सरकार का जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने का कोई इरादा नहीं है। हमारे देश में आज 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित है। पर्याप्त संख्या में जज, स्टेनो, चपरासी, पेशकार और बाबू नहीं हैं। लगातार मांग करने के बाद भी सरकार इन पदों को नहीं भर रही है और इस प्रकार संविधान के प्रावधानों का लगातार उल्लंघन कर रही है और जनता के साथ लगातार अन्याय कर रही है। जनता को न्याय देने का उसके पास कोई रोड मैप नहीं है।

          बैंकिंग सिस्टम****यही हाल बैंक व्यवस्था का है भारत के धनवान और पूंजीपति वर्ग को, कारखानेदारों को, बहुत बड़ी संख्या में बैंकों से ऋण उपलब्ध कराए गए। मगर आज हालात यह है कि सरकार इन पूंजीपतियों और धनी वर्ग के लोगों को दिए गए ऋणों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है और उसने अब इन ऋणों को माफ कर दिया गया है और सरकार ने पिछले दिनों, पूंजीपतियों को दिए गए लोन के 11 लाख करोड रुपए माफ कर दिए।

          धर्मांधता और अंधविश्वास की आंधी***** भारत के संविधान में हजारों साल से फैली धर्मांता और अंधविश्वास को खत्म करके, वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान का साम्राज्य स्थापना करने की बात की गई है। इस बारे में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा कुछ पहल भी की गई। इसी उद्देश्य के लिए सैकड़ो आईआईटी आईआईएम, इसरो और दूसरे सरकारी संस्थान काम किए गए। मगर आज हालात बदल गए हैं। आज सरकार और सारी धर्मांता और अंधविश्वास फैलाने वाली ताकतें, ज्ञान विज्ञान की संस्कृति और विरासत को धता बता रही हैं, वे खुलकर लोगों में धर्मांता, पाखंड, गपोड़ और अंधविश्वास फैला रही हैं। सरकार द्वारा इन पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई जा रही है। बल्कि इन्हें प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

         आर्थिक असमानता की बढ़ती आंधी***** जब आजादी के बाद भारत का संविधान लागू किया गया तो उसे समय अमीरों और गरीबों के बीच की दूरी को काम करने की बात की गई थी और अमीरी के अनाप-शनाप बढ़ने पर रोकथाम की बात की गई थी। मगर मुख्य रूप से पिछले 10 साल का इतिहास बता रहा है कि भारत में अमीर और गरीबों के बीच की आर्थिक असमानता की खाई दुनिया में सबसे बड़ी और गहरी हो गई है। आज भारत में एक प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 53 परसेंट है और 80% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का सिर्फ 6% है। प्रधानमंत्री मोदी किस आर्थिक समानता की बात कर रहे हैं?

           ढहता हुआ चौथा स्तंभ*******भारत में मीडिया, प्रेस और संचार माध्यमों को जनतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। मगर आज चौथा स्तंभ अपनी आजादी को चुका है। वह इस देश के धनी लोगों और चंद पूंजीपतियों का मातहत और दलाल बन गया है। अब उसे जनता की कठिनाइयां, परेशानियां और दुख दर्द दिखाई नहीं देते हैं। सरकार की जन विरोधी नीतियों पर वह मौन धारण किए रहता है। इस प्रकार भारत की वर्तमान पूंजीवादी शासन प्रणाली ने भारत के अधिकांश मीडिया की आजादी को पूरी तरह से छीन लिया है।

             बेलगाम मंहगाई******भारत में  बेलगाम महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़कर रख दी है। महंगाई पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। मंहगाई बढ़ने वालों के खिलाफ सरकार ने कोई भी कार्यवाही नहीं की है और आम जनता को महंगाई बढ़ने वालों के हाथों खुलेआम लुटने पिटने के लिए छोड़ दिया है। बढ़ती हुई महंगाई के खिलाफ अधिकांश जनता का जीना मुहाल हो गया है।

            बढता हुआ जातिवाद और वर्णवाद****** भारतीय संविधान में जातिवाद को बढ़ने से रोकने की बात की गई है। मगर हमारे यहां जातिवाद घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। आज जनता का बहुत बड़ा हिस्सा जातिवाद की महामारी से पीड़ित है, ग्रसित है और यह महामारी लगातार बढ़ती ही जा रही है। जातिवाद से मुक्ति पाने का सरकार के पास कोई एजेंडा नहीं है। भारत में जातिवाद का खात्मा सब को शिक्षा, सबको कम्पल्सरी रोजगार देकर और धन और धरती में सबकी हिस्सेदारी करके ही किया जा सकता है। मगर सरकार की ऐसी कोई योजना या मंशा नहीं है।

        गम्भीर खतरे में साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारा*******हमारा संविधान सामाजिक सौहार्द और भाईचारे को निरंतर कायम रखने की बात करता है। वह भारत की साझी संस्कृति और साझी विरासत को बरकरार बरकरार रखने की मान्यता में विश्वास करने की बात करता है। मगर हमारे देश की जन विरोधी, मजदूर विरोधी और किसान विरोधी ताकतें सत्ता में बने रहने के लिए लगातार हिंदू मुस्लिम विवाद पैदा करके, समाज की शांति और सौहार्द को खत्म करने पर तुली हुई हैं। बहुत सारी सांप्रदायिकता ताकतें हिंदू मुसलमान की नफरत का ध्रुवीकरण करके समाज में हिंदू मुसलमान हिंसा, अपराध और नफरत के बीज बो रही हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की लगातार हिदायतों के बाद भी इन सांप्रदायिक सद्भाव के हथियारों के खिलाफ सरकार कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर रही है, जिस वजह से ये सांप्रदायिक ताकतें हमारे सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भाव को लगातार नुकसान पहुंचती जा रही हैं।

         उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि जनता को गुमराह करने के लिए और बहलाने के लिए और उन्हें धोखा देने के लिए, एक बार फिर से केवल और केवल जुमलेबाजी का सहारा लिया जा रहा है। सरकार ने पिछले नौ साल से ज्यादा समय में अगर कुछ किया है तो वह सिर्फ और सिर्फ देश और दुनिया के धनपतियों पूंजीपतियों और अमीरों के धन का साम्राज्य बढाने के लिए किया है। बाकी उसने अधिकांश जनता के लिए लगभग कुछ भी नहीं किया है।

      किसानों और मजदूरों की बेहतरी करने के लिए, उनकी दुर्दशा सुधारने के लिए, सरकार के पास न तो कोई एजेंडा है, ना ही उसकी ऐसी मनसा है और ना ही उसके पास ऐसा कोई रोड मैप है और उसके सबके, सबका साथ सबका विकास अभियान में, एक अरब से ज्यादा किसानों, मजदूरों और नौजवान युवक युवतियों के  दुःख दर्द शामिल नहीं हैं। अब जनता को बहकाने और भरमाने के लिए ही ऐसे बयान दिए जा रहे हैं जो हकीकत से कोसों कोसों दूर हैं।

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