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आम आदमी के मुद्दों पर कहां खो जाती है कांग्रेस ?

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अमित शुक्‍ला

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय के सामने पेश हुए। देशभर में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राहुल के समर्थन में मार्च निकालने के साथ प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस ने कई नेताओं और समर्थकों को हिरासत में ले लिया। राजधानी दिल्‍ली में तो तस्‍वीर बिल्‍कुल फिल्‍मी सरीखी दिखाई दी। राहुल गांधी कांग्रेस मुख्यालय से ईडी हेडक्‍वार्टर तक जाने के लिए पैदल निकले। ईडी हेडक्‍वार्टर एपीजे अब्‍दुल कलाम रोड पर बना है। इस दौरान कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं का पूरा दल निकला। इनमें राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित पार्टी के कई अन्‍य नेता शामिल थे। उनके पीछे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हुजूम चल पड़ा। मार्च शुरू होने के कुछ देर बाद ही पुलिस ने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को रोक लिया। उन्हें हिरासत में लिया गया। बाद में राहुल गांधी गाड़ी में सवार होकर ईडी मुख्यालय पहुंचे। राहुल की पेशी पर कांग्रेसियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। दिल्‍ली के अलावा मुंबई, अहमदाबाद, बेंगलुरु, लखनऊ, बनारस और कई अन्‍य शहरों में भी कांग्रेसियों ने जमकर हंगामा किया। यह और बात है कि आम आदमी के मुद्दों पर यही फुर्ती पता नहीं कहां खो जाती है।

बहुत समय बाद देखने को मिले कांग्रेस के ऐसे तेवर…
सड़कों पर कांग्रेस का इस तरह का प्रदर्शन शायद बहुत समय बाद दिखा है। राहुल गांधी के समर्थन में वो पुलिस के सामने पूरी ताकत के साथ खड़े हो गए। उन्‍हें काबू करने में पुलिस के पसीने छूट गए। बड़ी संख्‍या में इस मार्च में महिलाओं ने भी हिस्‍सा लिया। पार्टी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी की ईडी के सामने पेशी पर पार्टी के ‘सत्याग्रह’ को रोकने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नई दिल्ली इलाके में अघोषित आपातकाल लगा दिया। कांग्रेस के मार्च और ‘सत्याग्रह’ को देखते हुए पुलिस ने 24 अकबर रोड (कांग्रेस मुख्यालय) जाने वाले कई रास्तों पर अवरोधक लगाए थे। इलाके में धारा 144 लागू थी। हालांकि, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इसकी परवाह नहीं की। वो अपने नेता के लिए एकजुट खड़े दिखाई दिए।

आम आदमी के मुद्दों पर कहां खो जाती है फुर्ती?
इसने एक सवाल भी खड़ा किया। सवाल यह है कि गांधी परिवार के लिए सिर पर आसमान उठाने वाली कांग्रेस की फुर्ती आम आदमी के मुद्दों पर कहां खो जाती है। क्‍यों आम आदमी के मुद्दों पर वह इतनी ही आक्रामक और जोश में नहीं दिखती है। पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस सिलेंडर के साथ बढ़ती महंगाई का मुद्दा हो या बेरोजगारी, भ्रष्‍टाचार और सुरक्षा जैसे अन्‍य मुद्दे, कांग्रेस का रुख ठंड रहा है। बीजेपी को चुनौती देने में वह ढुलमुल दिखाई दी है। जिस तरह के तेवर उसने गांधी परिवार के लिए दिखाए हैं, वो ऐसे मुद्दों पर नहीं दिखे। सरकार को घेरने की उसकी कोशिश सिर्फ टीवी डिबेट और इक्‍का-दुक्‍का ट्विटर तक सीमित रही। यह जमीन पर नहीं दिखाई दी।

गांधी परिवार के लिए झोंक दी पूरी ताकत
दूसरी तरफ गांधी परिवार के लिए पूरी कांग्रेस पार्टी सिर के बल खड़ी हो गई। गहलोत, पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, राष्‍ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, वरिष्ठ नेता हरीश रावत, जयराम रमेश और कई दूसरे नेता सड़कों पर साथ निकल पड़े। इन्‍हें हिरासत में लिया गया। प्रियंका गांधी ने तुगलक रोड थाने पहुंच हिरासत में लिए गए पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से बाद में मुलाकात की। मुंबई, बेंगलुरु, लखनऊ, बनारस और अहमदाबाद जैसे शहरों में भी कांग्रेसियों ने जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया। गिरफ्तारियां देने से भी कतई नहीं घबराए।

नेशनल हेराल्‍ड केस में गांधी परिवार के लिए कांग्रेसी बने ढाल
नेशनल हेराल्‍ड केस में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के खिलाफ लगे आरोपों को कांग्रेस ने सिरे से खारिज किया है। सुरजेवाला ने कहा है कि कांग्रेस एक राजनीतिक दल है। एक राजनीतिक दल किसी कंपनी में हिस्सेदारी नहीं खरीद सकता। लिहाजा, ‘यंग इंडियन’ के नाम से एक नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी को ‘नेशनल हेराल्ड’ और एसोसिएटेड जर्नल्स (एजेएल) के शेयर दिए गए। इसका मकसद 90 करोड़ का कर्ज खत्म करना था। इस 90 करोड़ रुपये में से 67 करोड़ रुपये कर्मचारियों के वेतन और वीआरएस के लिए दिए गए थे। बाकी सरकार का बकाया, बिजली के बिल और भवन के लिए भुगतान हुआ। यह अपराध कैसे हो सकता है? नेशनल हेराल्ड का मालिकाना हक आज भी एसोसिएटेड जर्नल्स के पास है। सारी संपत्ति सुरक्षित है।

क्‍या है नेशनल हेराल्‍ड केस से गांधी परिवार का नाता?
यह केस नेशनल हेराल्ड अखबार से जुड़ा है। देश के पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू ने 1938 में इसकी स्थापना की थी। अखबार का मालिकाना हक एजेएल के पास था जो दो और अखबार छापा करती थी। ये थे- हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज। 1956 में एजेएल को नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी के तौर पर बनाया। इसे कंपनी एक्ट की धारा 25 से टैक्‍स मुक्त कर दिया गया। कंपनी धीरे-धीरे घाटे में चली गई। 90 करोड़ का कर्ज भी चढ़ गया। इस बीच 2010 में यंग इंडियन के नाम से एक अन्य कंपनी बनाई गई। इसके 76 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी और बाकी के शेयर मोतीलाल बोरा और आस्कर फर्नांडिस के पास थे। आरोप है कि कांग्रेस ने अपना 90 करोड़ का कर्ज नई कंपनी यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिया। लोन चुकाने में पूरी तरह असमर्थ एजेएल ने सारे शेयर यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिए। इसके बदले में यंग इंडियन ने महज 50 लाख रुपये एजेएल को दिए। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि यंग इंडियन प्राइवेट ने सिर्फ 50 लाख रुपये में 90 करोड़ वसूलने का उपाय निकाला जो नियमों के खिलाफ है।

अपनी उलझनों को सुलझाने में नाकाम रही कांग्रेस
बीते कुछ सालों में कांग्रेस ने अपनी जमीन गंवाई है। बीजेपी के कांग्रेस मुक्‍त भारत के दावों को बल मिलने लगा है। वह बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रही है। 2014 के बाद से एक के बाद एक हार ने कांग्रेसियों का मनोबल तोड़ दिया है। इसके लिए कुछ हद तक आलाकमान ही जिम्‍मेदार है। उसने पार्टी की समस्‍याओं को सुलझाने में वह गंभीरता नहीं दिखाई जिसकी अपेक्षा थी। कांग्रेस के अंदर ही कई खेमे बंट गए। इसने पार्टी को कमजोर करने का काम किया। नौबत यहां तक आ गई कि विपक्ष का नेतृत्‍व करने की भी दावेदारी पर सवाल खड़े होने लगे। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इसकी दावेदार बनकर उभर आईं। इन पार्टियों ने अपने स्‍तर पर कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी को ज्‍यादा प्रभावी तरीके से टक्‍कर दी।

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