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कहां है भारत में संविधान का राज?

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मुनेश त्यागी

      भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ था इसीलिए इस दिन को संविधान दिवस के नाम से पुकारा गया। जब 75 साल पहले भारत के संविधान को लागू किया गया तो उसकी प्रस्तावना में कहा गया था,,,,

   हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी संवैधानिक सभा में इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्म समर्पित करते हैं।

     भारत का संविधान समता, समानता, स्वतंत्रता और समान अवसर की बात करता है, छुआछूत के खात्मे की बात करता है, शासन-प्रशासन के कानून सम्मत होने की बात करता है, धर्म की आजादी की बात करता है, सस्ते और सुलभ न्याय की बात करता है, आर्थिक असमानता के खात्मे की बात करता है, धन के कुछ व्यक्तियों के हाथों में संकेंद्रित होने की मनाही करता है।

     जब 75 साल पहले भारत का संविधान लागू किया गया तो भारत की जनता को यह विश्वास दिलाया गया था कि भारत में समता, समानता, आजादी, न्याय और भाईचारे का निर्माण किया जाएगा, सबको सस्ता और सुलभ न्याय दिया जाएगा, हजारों साल पुराने शोषण, दमन, भेदभाव, अत्याचार, गरीबी, भुखमरी, वंचना और पिछड़ेपन को दूर किया जाएगा, सबको शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार की गारंटी दी जायेगी।

       मगर आज हम देख रहे हैं कि उदारीकरण निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों को लागू करने वाली, पिछले 30 साल की सरकारों ने भारत के संविधान के उपरोक्त आवश्यक मूल्यों  और प्रावधानों को तिलांजलि दे दी है। हमारे देश में बढ़ते अंधविश्वास, धर्मांधता और पाखंड की आंधी आई हुई है और  सस्ता और सुलभ न्याय जनता की पहुंच से बाहर हो गया है। आसमान छूती बेरोजगारी नौजवानों को अपराधी बना रही है। अमीरी गरीबी में जमीन आसमान का फर्क पैदा हो गया है और जनता के मूल अधिकारों पर सबसे ज्यादा कुठाराघात है। उनका सबसे ज्यादा हनन हुआ है, शासन प्रशासन के तौर-तरीकों ने और नीतियों ने मूलभूत अधिकारों को धराशायी कर दिया है। सरकार की देशी विदेशी पूंजी पतियों की सम्पत्ति बढ़ाने वाली नीतियों के कारण हमारे देश में अरबपतियों और खराबपतियों की संख्या बढ़ गई है और भारत की 75 प्रतिशत जनता की आमदनी 20 रु प्रतिदिन भी नहीं है। उसने किसानों और मजदूरों की समस्त आशाओं और विश्वासों को धूलधूसरित और धाराशाई कर दिया है।

    आज वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान की मुहिम को मटियामेट कर दिया गया है। हमारे देश में  दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब हैं, सबसे ज्यादा बेरोजगार हैं, सबसे ज्यादा बीमार हैं, सबसे ज्यादा अन्याय के शिकार लोग हैं, भारत में इस वक्त 5 करोड से भी ज्यादा मुकदमें न्यायालयों में लंबित हैं जो जिनमें पिछले 20-30 वर्षों से भी ज्यादा समय से न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता, आजादी के 75 साल बाद भी हमारे अधिकांश किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलता। संविधान में सबको सबको शिक्षा सबको काम का वादा किया गया था मगर इस सब का क्या हुआ?

     आज भारत की अधिकांश जनता को सस्ते और स्वास्थ्य के स्थान पर प्राइवेट अस्पतालों में जनता को लुटने पिटने के लिए छोड़ दिया गया है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने लगभग 100 करोड़ लोगों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया है। छात्रों के अनुपात में विद्यालय और कॉलेज नहीं है और छात्रों के अनुपात में शिक्षक नहीं हैं। हमारे देश में आज शिक्षकों की सबसे ज्यादा कमी है और अच्छी शिक्षा केवल धनिक वर्ग और खाते-पीते परिवारों तक ही महदूद होकर रह गई है। यही हाल स्वास्थ्य क्षेत्र का है स्वास्थ्य के क्षेत्र में न तो पर्याप्त संख्या में डॉक्टर नर्स, वार्ड बॉय हैं और ना ही पर्याप्त संख्या में दवाओं और आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं और मशीनों की आपूर्ति हो रही है।

       पिछले कुछ दिनों से हम देख रहे हैं कि वर्तमान मोदी सरकार द्वारा तमाम सरकारी एजेंसियों जैसे ईडी, सीबीआई, इन्कमटैक्स विभाग का जमकर भयंकर दुरुपयोग किया जा रहा है और इनका प्रयोग विरोधियों अपने विपक्षियों का मुंह बंद करने के लिए किया जा रहा है। वर्तमान संविधान देश विदेश के अमीरों, पूंजीपतियों, जातीवादियों, सांप्रदायिकों, वर्णवादियों, मनुवादियों और कानून तोड़ने वालों और अंधविश्वासी और धर्मांध लोगों की हित रक्षा की शरण स्थली का संविधान बनकर रह गया है। हमारे पूंजीपति शासकों ने किसानों, मजदूरों, मेहनतकशों, एससी, एसटी और ओबीसी के हितों को तिलांजलि दे दी है। इन सबके लिए आज संविधान के होने के कोई मायने नहीं रह गए हैं। इन सब की आशा और विश्वास को चकनाचूर और पूरी तरह से मटियामेट कर दिया गया है। आज संविधान में वर्णित जनहित के सारे मुद्दों प्रावधानों को हाशिए पर धकेल दिया गया है। अब तो ऐसे लगने लगा है कि जैसे हमारे यहां संविधान का कोई शासन प्रशासन और राज नहीं रह गया है।

      वर्तमान सरकार ने भारत की हजारों साल पुरानी साझी संस्कृति को तहस नहस कर दिया है ।जनता में हिंदू और मुसलमान के नाम पर हिंसा और नफरत की राजनीति के बीज बो दिए हैं। आज भारत का समाज हिंदू और मुसलमान के नाम पर जितना बंटा हुआ है उतना पहले कभी नहीं था। इसी के साथ साथ हम देख रहे हैं कि समाज में औरतों के खिलाफ सबसे ज्यादा अत्याचार और अपराध बढ़ गए हैं। उनके साथ हिंसा और घरेलू हिंसा बढ़ रही है। बहुत सारी बच्चियों को तो पेट में ही मार दिया जाता है और आजादी के 75 साल बाद भी हमारा समाज औरत विरोधी मानसिकता, सोच, नजर और नजरिए को बदलने को तैयार नहीं है। वह उसे आज भी दासी, सेविका, भोग्या और मनोरंजन का सामान बनाने और समझने में ही अपनी शान समझता है। हमारी सरकार और समाज की जन विरोधी नीतियों और व्यवहार ने भाईचारे और औरतों की इज्जत और सम्मान पर सबसे ज्यादा हमला किया है। क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी सोचा था कि भारत में भाईचारे और औरतों को लेकर ऐसे मानव विरोधी व्यवहार को पाला पोसा और जारी रखा जाएगा?

      उपरोक्त परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए हम कह सकते हैं कि वर्तमान संविधान के रहते अधिकांश किसानों, मजदूरों और जनता की बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। इसलिए आज संविधान में कुछ बहुत ही  बुनियादी और जरूरी संशोधन करने की आवश्यकता है जैसे सबको काम, सबको शिक्षा, सब की सुरक्षा, सबको स्वास्थ्य, धन और धरती का समुचित बंटवारा, मजदूरों को न्यूनतम वेतन, किसानों की फसलों का वाजिब दाम मिले, अंधविश्वासों और धर्मांधता का खात्मा, ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति की बयार बहे,आंधी चले, सांझी संस्कृति और भाईचारे का संवाद कायम हो, पूरे देश में आर्थिक असमानता का साम्राज्य खत्म हो और सबको आर्थिक समानता मोहिया कराई जाये और हजारों साल पुरानी गरीबी, शोषण, अन्याय, भेदभाव, हिंसा, हत्या, जुल्मों सितम और सभी तरह के अपराधों का पूरी तरह से सर्वनाश किया जाए, खात्मा किया जाए।

      याद रखना संविधान की रक्षा और उपरोक्त नारों, वायदों और तथ्यों को क्रांति के द्वारा समाजवादी व्यवस्था कायम करके और संविधान में जरूरी संशोधन करके और इन मुद्दों को शासन प्रशासन के केंद्र में लाने का काम केवल किसानों मजदूरों की सरकार ही कर सकती है और कोई भी इस काम को नहीं करेगा। पूंजीपतियों और धन्ना सेठों की वर्तमान सरकार से तो है उम्मीद करना बिल्कुल बेमानी हो गया है।

      वर्तमान संविधान भारत की पीड़ित जनता की समस्याओं का कोई समाधान नहीं कर सकता इसलिए इस संविधान में कुछ मूलभूत और जरूरी संशोधन करने की सबसे ज्यादा जरूरत है और अब भारत के इस संविधान को जन-संविधान बनाने की सबसे ज्यादा जरूरत है और एक बार पुनः संविधान का शासन प्रशासन और राज कायम करने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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