पुष्पा गुप्ता
_ऐसा नहीं है कि हमारे प्रधानमंत्री मेडिकल छात्रों को यूक्रेना से निकालने में और यूपी में चुनावी जीत सुनिश्चित करने में ही 24 में से 36 घंटे व्यस्त रहते हैं और भी महान आइडियाज पर उनके नेतृत्व में काम चल रहा है। जैसे रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव इस बीच यह महान आइडिया लाए हैं कि रेलवे स्टेशनों के नाम के आगे या पीछे कंपनियों के नाम जोड़ दिए जाएँ तो रेलवे का वारा-न्यारा हो जाएगा।_
इसे ' इनोवेटिव नान फेयर रेवेन्यू आइडिया ' नामक बड़ा चमकीला सा नाम दिया गया है।यानी किराया बढ़ाकर यात्रियों को भी चूसो और कंपनियों को स्टेशन बेचकर भी कमाई करो।आजकल सरकारी संपत्ति बेचना तो उसी तरह गर्व की बात हो चली है,जैसे किसी मुसलमान या ईसाई से जयश्रीराम बुलवाना।
_शर्म की बात पर गर्व करना आज का वास्तविक धर्म है।बेशर्मी और बेहयाई पर गर्व करना हमारी सात साल पुरानी संस्कृति है।_
इस बार रेलवे बजट एक लाख चालीस हजार करोड़ का है।नई दिल्ली स्टेशन में यह आइडिया प्रायोगिक रूप से लागू किया जा रहा है।
अनुमान है कि इससे दिल्ली रेलवे मंडल के 250 प्रमुख स्टेशनों से पचास करोड़ की आय होगी।यानी ऊँट के मुँह में जीरे का इंतजाम हो जाएगा।ऊँट पर इस सरकार की इतनी कृपा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आजकल आदमी पर तो सरकार इतनी कृपा भी नहीं करती।फिर भी कोई समस्या नही।यह सरकार इतनी दयालु-कपालु तो है कि ऊँट के लिए जीरे का इंतजाम कर रही है।यह सरकार की महानता है।रेल बेच दी, प्लेटफार्म बेच रहे हैं,स्टेशन भी बेच रहे हैं।
सरकार की ही खुलेआम बिक्री ही बाकी बची है।वह भी एक दिन हो जाएगी।क्रिकेट खिलाड़ी खुलेआम बिक सकते हैं तो सरकार के मंत्री क्यों नहीं?जो गुपचुप है,वह खुलेआम होने लगे तो यह पार्दर्शिता के हित में होगा, जिसकी वकालत करते हुए प्रधानमंत्री नहीं थकते।
वह तो चुनावी चंदा गोपनीय तरीके से ग्रहण करते हुए भी नहीं थकते!सच बोलने से वह जल्दी ही थक जाते हैं,इसलिए थकानेवाला यह काम वह भूल कर भी नहीं करते।
आजकल बिकने और बेचने के आइडियाज का युग है।रेलमंत्री जी, मेरे पास आप जैसा महान आइडिया तो नहीं है मगर एक साधारण आइडिया जरूर है।
साधारण है मगर आपके आइडिया से कई गुना अधिक सरकारी आमदनी बढ़ानेवाला है।
इसमें एक ही पेंच है कि इसके लिए जनता की बजाय देश के नेताओं को थोड़ा सा बलिदान देना होगा।यह ऐसा बलिदान है,जो जान ही नहीं,कुछ भी नहीं लेगा बल्कि उन्हें मानसम्मान और धन देगा लेकिन नेताओं को बलिदान लेने की आदत तो खूब है मगर देने से नफरत है।समस्या केवल यह है।
फिर भी आइडिया यह है कि प्रधानमंत्री ,केंद्रीय मंत्री, तमाम भाजपाई मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, अफसर आदि -इत्यादि को कोई बड़ा ब्रांड नेम खरीदना चाहे तो ये अपने सरनेम में एक खास अवधि के लिए शायरों-कवियों की तरह एक उपनाम भी सहर्ष जोड़ लें!इससे सरकार को ऐसी बंपर आय होगी कि देश के सारे आर्थिक संकट एक बार में दूर हो जाएँगे।
इससे कम से कम 100000 करोड़ की आमदनी होने का मेरा अनुमान है,हालांकि इतना धन तो अकेले प्रधानमंत्री जी के नाम से आ सकता है।फिर वित्त, रेलवे,गृह आदि- आदि अनेक चर्चित मंत्री हैं।फिर बडे -बड़े अफसर हैं।हो सकता है अफसरों के सरनेम में ब्रांड नेम जुड़ने से बड़े -बड़े मंत्रियों से अधिक धन वर्षा हो। इससे मंत्रियों को दुखी या अपमानित महसूस नहीं करना चाहिए क्योंकि अफसर परमानेंट होते हैं, मंत्री आतेजाते रहते हैं।
हम देख चुके हैं कि जो मंत्री नाक फुलाफुला कर,जान लड़ालड़ा कर मोदी जी का बचाव करते पाए जाते थे,वे एक झटके में बाहर कर दिए गए। उनका नामलेवा तक आज कोई नहीं।
बहरहाल इस रास्ते आमदनी ही आमदनी है।इसे मेरा इनोवेटिव नानबजट रेवेन्यू आइडिया कह सकते हैं।मान लो देश के किसी महत्वपूर्ण मंत्री का नाम माखनलाल शाह है। माखनलाल शाह ‘ रिलायंस ‘ हो जाए तो क्या बुरा है बल्कि अच्छा है ।मुन्ना लाल गोयल के आगे फ्यूचर ब्रांड भी जुड़ जाए या सुरेन्द्रनाथ सिंह ‘गोदरेज ‘ हो जाएँ तो कितना सुंदर लगेगा!
इस बलिदान या त्याग में बलिदान या त्याग जैसा कुछ है भी नहीं । कोई मंत्री अंबानी या अडाणी या गोदरेज का पसंदीदा है।उसके नाम से जुड़ने पर कोई बड़ा ब्रांड गौरवान्वित अनुभव करता है ,यह तो उस मंत्री के लिए भी गर्व की बात है।इसके अलावा इस ब्रांड से होनेवाली आमदनी का दस प्रतिशत मंत्री का दे दिया जाए, तो इससे उसके सफेद धन में वृद्धि होगी।
और कुछ भी कहो,प्रधानमंत्री तो प्रधानमंत्री होता है और सौभाग्य से हमारा प्रधानमंत्री ऐसा व्यक्ति है, जो स्वयं एक ब्रांड है।इस ब्रांड को दूसरे ब्रांडों के लिए इस्तेमाल होने का अच्छा अभ्यास भी है।इस हालत में जरूरी नहीं कि प्रधानमंत्री एक.ही ब्रांड की ब्रांडिंग करे।
वे एकसाथ कई ब्रांडों की ब्रांडिंग कर सकते हैं।उनके सरनेम के साथ दस क्या बीस ब्रांड नेम भी जुड़ सकते हैं और ये सभी एकसाथ लगाए जा सकते हैं।इससे देश का नाम विदेश में’ बदनाम ‘ करनेवाले विपक्षियों के मुँह क्या आँखें भी बंद हो जाएँगी!
{चेतना विकास मिशन}