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ये बरबादी देश को कहां ले जाएगी

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रजनीश भारती

जो लोग साधारण ट्रेन भी समय से नहीं चला पा रहे हैं, वही लोग बुलेट ट्रेन चलाने की लफ्फाजी कर रहे हैं। कार्य सक्षम आबादी के कई करोड़ घण्टे रोज सफर में नुकसान हो रहे हैं। कहते थे कि रेल भाड़ा इसलिए बढ़ा रहे हैं ताकि बेहतर सुविधाएं दी जा सकें। मगर दोगुना तिगुना किराया बढ़ाने के बावजूद जनता की परेशानियां बढ़ाई जा रही हैं। करोड़ों लोगों का करोड़ों घंटा रोज ट्रेनों के इन्तजार में बर्बाद हो जाता है। इन करोड़ों घंटों को काम पर खर्च किया जाता तो अरबों रूपये मूल्य पैदा हो सकते थे।

 इसी तरह करोड़ों लोग जो व्यवस्था की खामियों की वजह से बीमार होकर अस्पतालों में पड़े रहते हैं। उनके करोड़ों काम के करोड़ों घंटे रोज बर्बाद होते हैं। करोड़ों लोग व्यवस्था की खामियों की वजह से अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं।  इस तरह मौजूदा व्यवस्था की खामियों की वजह से गैर-उत्पादक मामलों में जनधन की हानि हो रही है। अभी बेरोजगारी के कारण जिनके काम के अरबों घंटे का जो मूल्य बर्बाद हो रहे हैं, उसका हिसाब तो इतना बड़ा हो जायेगा कि कई पिछड़े देशों की जीडीपी भी उसका मुकाबला नहीं कर पायेगी। इसके अलावा जेल, अदालत, सेना, पुलिस, नौकरशाही का पूरा अमला है जो किसी भी तरह का उत्पादक श्रम नहीं करता। सभी धर्मों का मिलाकर लिंग तीन करोड़ साधू हैं जिनमे लगभग 90% साधू गैर उत्पादक तो हैं ही, निठल्ले बैठकर खा रहे हैं।

  सेना, पुलिस के अलावा प्राईवेट गुण्डे भी पाले गये हैं, ये भी लगभग पूरी तरह से गैर-उत्पादक ही हैं। सरकार चलाने वाले मंत्री, विधायक, सांसद, मेयर, कुछ अपवादों को छोड़कर सभासद और ग्रामप्रधान भी गैर उत्पादक ही होते हैं। प्रकारान्तर से इन सारी गैर उत्पादक हरकतों का सारा फायदा देश के बड़े पूंजीपति, सामन्त/अर्धसामन्त और विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियां उठा रही हैं।

अगर ये कहा जाये कि इन्हीं शक्तियों की वजह से देश इस हालात में पहुंच गया है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन्हीं शक्तियों ने अपने फायदे के लिए इन सारे गैर-उत्पादक लोगों का सारे खर्च का सारा बोझ सेना-पुलिस तथा प्राईवेट गुण्डों  की बन्दूकों के बलपर मेहनतकश  जनता के ऊपर जबर्दस्ती लाद दिया है। सेना-पुलिस तथा प्राईवेट गुण्डों  की बन्दूकों के बल पर जनता को भय और आतंक के साए में जीने के लिए बाध्य किया जा रहा है।   ट्रेन लेट हो रही थी तो इन्तजार करते समय ऐसे ही हमने लिख दिया। हालाकि उपरोक्त सारे तथ्यों को आंकड़ों के साथ भी पेश किया जा सकता है। तथा समाजवादी व्यवस्था इन समस्याओं की गुलामी से जनता को कैसे बाहर निकाल सकती है, इसका भी संक्षिप्त विवरण दिया जा सकता है।       

             *रजनीश भारती**जनवादी किसान सभा*

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