दिलीप कुमार
देव साहब के अपने दौर में या उनके दशकों बाद या आज के दौर में “अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं” ऐसे गुनगुनाती फीमेल फैन्स दिखती हैं तो यूँ लगता है, कि वो अपने हीरो देवानंद साहब को प्रेम प्रस्ताव भेज रही हैं. तीन पीढ़ियों में संवेदनशील प्रेमी के रूप में देव साहब सिल्वर स्क्रीन को जीते हुए, चले गए…. हिन्दी सिनेमा में शायद ही कोई नायिका रही हो जिसने देव साहब के साथ रोमांस करने की इच्छा न जाहिर की हो, महिलाओं में देव साहब का सुपरस्टारडम, दीवानगी अपने चरम पर थी. बहुत अजीब सी बात है, देव साहब का सुरैया के अलावा किसी के साथ कोई अफेयर भी नहीं हुआ. इसीलिए देव साहब को सभ्य इश्क़बाज कहा जाता है.
सत्तर के दशक में एक बोल्ड नायिका उभर कर आती हैं, नाम ज़ीनत अमान.. यूँ तो जीनत 1971 में हिन्दी सिनेमा में पदार्पण कर चुकी थीं. वहीँ सन 1971 में जीनत अमान को देव साहब अपनी फिल्म हरे राम हरे कृष्णा” से पर्दे पर लाए.. दम मारो दम.. गाने में झूमती जीनत को कौन भूल सकता है. इसके बाद वो बोल्ड अवतार ज़ीनत अमान की पहिचान बन गया..देव साहब एवं ज़ीनत अमान ने लगभग आधा दर्जन से अधिक फ़िल्मों में साथ काम किया.
देव साहब अपनी आत्मकथा” रोमांसिंग विथ लाइफ” में लिखते हैं- मैंने अपने फिल्मी सफर में कई नायिकाओं के साथ काम किया. मुझे हज़ारों महिलाओं ने हिन्दी सिनेमा की नायिकाओं ने भी प्रेम प्रस्ताव दिया, लेकिन मुझे किसी के लिए आकर्षण नहीं महसूस हुआ. सत्तर के दशक में ज़ीनत अमान के साथ काम करते हैं मुझे लगा कि ज़ीनत से मुझे इश्क़ हो गया है, पहले मुझे लगा कि ज़ीनत तो मुझसे बहुत छोटी है, मैंने अपने मन को समझाना चाहा.. लेकिन प्रेम में बह चुके मन को समझाना बहुत मुश्किल है. ज़ीनत मेरे प्रति बहुत आभारी थी, बहुत इज्ज़त करती थी. मैं नहीं चाहता था, कि ज़ीनत एहसानमंद होते हुए मेरे से जुड़े. इसलिए कभी उसको अपने मन की बात नहीं बताई.एक बार मैंने सोचा कि ज़ीनत अमान को अपने दिल की बात बताता हूं अपने दिल की बात बताने के लिए मैं ज़ीनत को ताज होटेल के राउंडअबाउट रेस्त्रां में उसको बुलाया, वहाँ पहुंचकर मैंने देखा राज कपूर जी पहले से ही मौजूद थे. ज़ीनत अमान ने झुककर राज कपूर के पैर छुए, तब राज कपूर ने हंसकर ज़ीनत अमान से कहा तुमने हमेशा सफ़ेद ड्रेस पहनने के अपने वायदे को नहीं निभाया. मुझे लगा कि राज कपूर एवं ज़ीनत अमान में कुछ नजदीकियां हैं, मैंने वहाँ से चले जाना बेहतर समझा. उस दिन के बाद आज तक मैं ज़ीनत अमान से नहीं मिला, मैंने उसको अपने रास्ते जाने दिया. हालाँकि राज कपूर जी एवं ज़ीनत अमान का रिश्ता सम्मान का था. कोई स्त्री – पुरुष का प्रेम नहीं था. ज़ीनत अमान एक बड़े कलाकार के प्रति सम्मान प्रकट कर रही थीं…. बाद में मैंने किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्यों कि मुझे ज़ीनत अमान के अपने सपनों के बारे में पता था… अभी उसको अपने हिस्से का स्टारडम देखना था. अंततः मैं आगे बढ़ गया’. देव साहब ने अपनी आत्मकथा में अपनी ज़िन्दगी के एक – एक हर्फ को ईमानदारी से खोलकर रख दिया है.
वो एक आदर्श दौर था. पहले भी हिन्दी सिनेमा में खूब अफेयर होते थे, वो लोगों को जेहन में उतर जाते थे, राज कपूर – नरगिस जी का रूहानी प्रेम कौन भूल सकता है.. अशोक कुमार – नलिनी जयवंत का प्रेम..दिलीप कुमार – मधुबाला, कामिनी कौशल के साथ जुनून की हद तक का प्रेम कोई भी नहीं भूल सकता. इन सबसे जुदा देव साहब एवं सुरैया जी का प्रेम सुरैया जी तो देव साहब का प्रेम हृदय में लिए दुनिया छोड़ गईं उन्होंने दूसरी शादी भी नहीं की…. देव साहब हमेशा महिलाओं के साथ घिरे रहे, लेकिन कभी भी उनका नाम किसी के साथ नहीं जुड़ा. देव साहब सचमुच सभ्य इश्क़बाज थे. मैंने सैकड़ों मैग्जीन, आदि पढ़ा है, जिसमें देव साहब एवं ज़ीनत अमान जी के नाम पर लिए कितनी फूहड़ता बेची जाती थी और अब भी बेची जाती हैं. कभी – कभी सोचता हूं सिल्वर स्क्रीन पर काम करती हुई महिला भी तो महिला ही होती है, लेकिन किसी के लिए भी व्यक्तिगत रूप से फूहड़ता कैसे बेची जाती है??? ज़ीनत अमान ने भी कभी भी नहीं स्वीकारा की देव साहब से प्रेम करती थीं, हालांकि आज भी वो देव साहब की शुक्रगुजार हैं….. .
दिलीप कुमार