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किन्हें मिलती है प्रेतयोनि, क्या है इनकी शक्ति का आधार?

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 (डॉ. विकास मानवश्री से हुए संवाद पर आधारित आलेख)

      ~  नीलम ज्योति

 भूत -प्रेत -पिशाच -जिन्न -ब्रह्म -चुड़ैल आदि का नाम हमारे मानस विश्व में आता है. खासकर तब जब कभी किसी वायव्य अथवा बाहरी बाधा या नकारात्मक ऊर्जा या शक्ति का नाम लिया जाता है. विज्ञान प्रेतशक्ति को निगेटिव एनर्जी के रूप में एक्सेप्ट करता है.

     बहुत से लोगों ने इसका अनुभव भी किया होता है जबकि अधिकतर जिन्होंने देखा या अनुभव नहीं किया होता है वे इसे कोरी कल्पना करार देते हैं. वे और इनके अस्तित्व को नकारते हैं. आधुनिक विज्ञान और विकसित पश्चिमी देश इसे स्वीकारते हैं. वैज्ञानिक उपकरणों से इनके छायाचित्र भी कुछ स्थानों पर लिए जा चुके हैं.

 प्रेत किसी भी जीवधारी का सूक्ष्म शरीर होता है. स्वाभाविक मृत्यु के समय व्यक्ति के अंग धीरे -धीरे काम करना बंद करते हैं. अर्थात उसके ऊर्जा परिपथ का क्रमशः क्षरण होता जाता है. पहले उसके हाथ पाँव आदि सुन्न होते हैं. फिर शरीर सुन्न होता है. तत्पश्चात मष्तिष्क की चेतना से ह्रदय का सम्बन्ध टूटता है. प्राण बाद में निकलते हैं.

    यह समस्त क्रियाएं कोशिकाओं में स्थित विद्युत् कणों के क्रमशः क्षरण से होती हैं. कोशिकाओं के माइटोकांड्रिया जिस विद्युत् का निर्माण करते है वह स्टोर होते हैं. फिर कोशिकाओं को शक्ति प्रदान करते है और शरीर के ताप को बनाये रखने के साथ उपापचय की क्रियाये नियमित रखते हैं.

    कोशिकाओं के विद्युत् केन्द्रों का सम्बन्ध विद्युतीय शक्ति किरणों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ा होता है. स्वाभाविक मृत्यु में यह सम्बन्ध धीरे-धीरे क्षीण पड़ कर टूट जाता है और इलेक्ट्रानिक शरीर नष्ट हो जाता है. इससे ही आत्मा जुड़ा होता है.

     विद्युतीय शरीर नष्ट हो जाने पर आत्मा दूसरा विद्युतीय शरीर तलासने की कोसिस करता है. भ्रूण के एक निश्चित स्तर के विकास पर उसमे प्रवेश करता है जिससे उसे विद्युतीय शरीर मिलता है.

मानव अथवा जंतु शरीर कोशिकाओं से निर्मित होता है जिनमे केन्द्रक ,माइटोकांड्रिया ,साइटोप्लाज्म  आदि बहुत से अवयव होते हैं. इनके अलग अलग काम होते हैं. हम यह भी जानते हैं की मात्र एक ही कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित क्रोमोसोम एक नए मानव को जन्म दे देते हैं. इन कोशिकाओं में स्थित माइटोकांड्रिया विभिन्न क्रियाओं से ऊर्जा उत्पन्न करता है जिससे शरीर गर्म रहता है.

    केन्द्रक से कोशिका का नियंत्रण होता है. इनके नाभिक से एक अदृश्य किरण जुडी होती है जिसके एक छोर पर एक सूक्ष्मतम परमाणु कण जुड़ा होता है. इसे आधुनिक वैज्ञानिक गाड पार्टिकल के नाम से बुला रहे हैं. इसे पाने का प्रयत्न कर रहे हैं. अबतक उन्हें इसे प्राप्त करने में सफलता नहीं मिली है.

प्रत्येक कोशिका के नाभिक से जुड़ते हुए यह गाड पार्टिकल अथवा ईश्वरीय कण एक अदृश्य अतिसूक्ष्म जाल सा बनाते हैं. इसे आधुनिक माक्रोस्कोप से भी नहीं देखा जा सकता. इन जालों का सम्बन्ध शरीर के विद्युतीय क्षेत्र से होता है जिनका एक हिस्सा माइटोकांड्रिया भी होता है. यह जाल अंदर से लेकर बाहर तक प्रत्येक कोशिका से जुड़ा होता है.

    इन कणों को तो वैज्ञानिक नहीं देख पा रहे किन्तु इनसे उत्पन्न प्रभाव को वह देख पाते हैं. इन्ही कणों और जाल के प्रभाव से व्यक्ति के आभामंडल का निर्माण होता है जिसे ओरा कहते हैं. इन्ही जालों और कणों से व्यक्ति और जंतु का सूक्ष्म शरीर निर्मित होता है.

 आधुनिक विज्ञानं जब सूक्ष्म शरीर बनाने वाले ईश्वरीय कणों को नहीं खोज पा रहा है. प्राचीन भारतीय वांगमय में उल्लिखित विभिन्न शरीरों से जुड़े और अतिसूक्ष्म ईश्वरीय कणों तक तो शायद वह 500 सालों में पहुँच पायेगा. अन्य पांच शरीर तो सूक्ष्म शरीर से भी सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होते जाते हैं. ज़ाहिर है व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर इन्ही ईश्वरीय कणों से बना होता है और यही आभामंडल या ओरा का निर्माण करता है. जब धीरे -धीरे सामान्य आयु से कोशिकाएं नष्ट या क्षरित  होती हैं तो इन कणों का जुड़ाव टूटता जाता है.  कोशिकाओं के नाभिक और विद्युतीय क्षेत्र से जिससे सूक्ष्म शरीर कमजोर या छोटा होता जाता है.

     अचानक से किन्ही कारण से स्थूल शरीर नष्ट हो जाए तो यह जाल नष्ट नहीं हो पाता है. यहीं से निर्मित होती है प्रेतयोनि की परिष्ठभूमि 

     जब कोई जीव किसी आकस्मिक चोट से, विष से अथवा अचानक साँसों के बंद हो जाने से या शरीर जल जाने से किसी प्रकार स्थूल शरीर की अचानक क्षति कर लेता है या उसका शरीर असमय ही नष्ट कर दिया जाता है तो शरीर तो नष्ट हो जाता है किन्तु वियुतीय क्षेत्र से जुड़े सूक्ष्म शरीर का क्षरण नहीं हो पाता.

   अचानक आघात से शरीर के अंग काम न करने से या शरीर के अनुपयुक्त हो जाने से विद्युतीय शरीर का क्षरण नहीं हो पाता तो आत्मा उसी से बंधी रह जाता है. विद्युतीय शरीर में होने के कारण उसका प्रत्यक्षीकरण या दिखाई देना अन्य लोगो की दृष्टि में बंद हो जाता है. लोग स्थूल शरीर को निर्जीव पाकर समझते है की व्यक्ति मर गया, किन्तु वह उस विद्युतीय शरीर में जीवित रहता है. उसकी चेतना अनुभूति आदि बनी रहती है.

    अतृप्ति जनित तृष्णा ,कामना, इच्छा आदि बनी रहती है परन्तु क्रिया के लिए शरीर नहीं होता. शरीर की क्रिया समाप्त होने से विद्युतीय केन्द्रों में स्टोर वियुत का क्षरण अल्प हो जाता है. वह उसी स्थिति में जीवित रहता है. यही प्रेतात्मा है.

   विद्युतीय शरीर के क्षरण पर ही उसकी मुक्ति निर्भर हो जाती है. कभी कभी यह हजारो वर्षों में क्षरित होता है.

 आत्माओं का सूक्ष्म शरीर जितना शक्तिशाली होता है उसके अनुसार उनकी श्रेणी होती है. सूक्ष्म शरीर का सीधा सम्बन्ध किसी व्यक्ति के मनोबल ,आध्यात्मिक ऊर्जा ,मानसिक शक्ति ,शारीरिक शक्ति ,इच्छाओं और कामनाओं की प्रबलता से होती है.

    यदि किसी ने आध्यात्मिक शक्ति जीवित रहते प्राप्त की है तो उसका सूक्ष्म शरीर मजबूत होता है और उसका ओरा या आभामंडल तीब्रशक्ति वाला होता है  यदि ऐसा व्यक्ति अचानक मृत होता है तो उसका सूक्ष्म शरीर भी शक्तिशाली होता है.

   यही कारण है की ब्राह्मण (विद्वान) अकाल मृत्यु पर ब्रह्म नामक शक्तिशाली आत्मिक शक्ति बनता है. चूंकि इनकी सूक्ष्म देह मजबूत होती है अतः यह जल्दी क्षरित भी नहीं होती. कई बार हजारों साल तक यह उस सूक्ष्म शरीर के नष्ट होने का इन्तजार करते हैं. शक्ति अधिक होने से ये जिनसे रुष्ट हुए उनका नुक्सान भी अधिक करते हैं. खुश हुए तो विभिन्न मार्गदर्शन और लाभ भी देते हैं.

      जिसका आत्मबल कमजोर हो अथवा जो आध्यात्मिक उर्जा न रखता हो अथवा जिसका ओरा या आभामंडल जीवित रहते तीब्र न हो या नकारात्मक हो वह अचानक मृत्यु होने पर भूत -चुड़ैल आदि बनता है. ऐसों का क्षरण तो जल्दी होता है किन्तु वह कोई भी तीव्र प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते. ये अपने से उच्च सूक्ष्मशरीर की आत्माओं के अधीन रहने को विवश होते हैं.

     सामान्य मनुष्यों में मजबूत आत्मबल वाले, अपराधी, योद्धा, धार्मिक लोग, साधक, तांत्रिक अथवा क्रूर लोगों का सूक्ष्मशरीर शक्तिशाली होने से ये प्रेत बनते हैं  ये अपनी उपस्थिति का चाहने पर अहसास कराने में सक्षम होते हैं.

    अक्सर जलकर, डूबकर अथवा अचानक दुर्धटना में तुरंत मर जाने वाले, हत्या किए जाने वाले,  कम्प्लीट इलाज़ के आभाव में मरने वाले या फिर जीवन में सेक्स से तृप्त नहीं होने वाले प्रेत बनते हैं और खुद का अहसास कराते हैं : यदि उनमे थोड़ी भी शक्ति है तो.

    इस स्थिति में व्यक्ति के पास शरीर नहीं होता किन्तु उसकी इच्छाएं और कामनाएं उसे याद रहती हैं.

    प्रेतयोनि में गया मनुष्य खुद के परिवार ,लोगों आदि को देख पाता है. सक्षम हुआ तो प्रभावित भी करता है अथवा संकेत देता है. कोई-कोई प्रेत तो किसी-किसी के परिवार खानदान तक को नष्ट कर देता है. कोई-कोई किसी को मार्गदर्शन देकर उच्च स्तर पर पहुंचा देता है.

 यह जीव की अत्यंत कष्टप्रद स्थिति है. वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता.  छटपटाता रहता है. स्वयं असंतुष्ट और कष्ट में होने से ,अथवा कामनाये अधूरी रहने से दुसरो को कष्ट देता है.  कामनाये पूरी करने का प्रयास करता है.

   आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त पित्र इसीलिए असंतुष्ट होते हैं की वह देखते हैं की हम अपना जीवन जी रहे हैं किन्तु उनके लिए या उनकी मुक्ति के लिए कुछ नहीं कर रहे है. इसीलिए जो इस स्थिति के जानकार हैं, वे इनकी मुक्ति [इलेक्ट्रानिक बाडी] के नष्ट होने की कामना करते हैं. सामना होने पर इन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं.

    कुछ आत्माएं खुद किसी किसी को माध्यम बनाती हैं अपनी मुक्ति के लिए और मार्गदर्शन करती हैं. साथ ही उस व्यक्ति की मदद भी करती हैं उसके भौतिक जीवन में, जिससे वह खुद सफल हो सके और उन्हें भी मुक्ति दिला सके. ऐसा अक्सर आकस्मिक रूप से किन्ही कारणोंवश मृत साधक, तांत्रिक, साधू, गुरु, ब्राह्मण, पुजारी अथवा आध्यात्मिक व्यक्ति करते हैं.

    प्रेत अपनी इच्छापूर्ति के लिए किसी के शरीर पर भी सवार हो सकते हैं. किसी ध्यान सिद्ध योगी, गैर-व्यवसायी सफल तांत्रिक आदि का स्पर्श इनके विद्युतीय शरीर के क्षरण को तीब्र कर देता है. ऐसे दिव्य व्यक्ति के विशिष्ट कम्पन या सिद्ध विद्युत् शरीर का प्रभाव जब प्रेत के विद्युतीय शरीर पर पड़ता है तो उसका क्षरण तेज हो जाता है. यह उसी प्रकार कष्ट होता है जिस प्रकार स्थूल शरीर के नष्ट होने से होता है.

    इसीलिए ये इन ध्वनियों, यंत्रों, मन्त्रों, स्पर्श आदि से दूर भागते हैं. यह सब विद्युतीय तरंगो की क्रियाएं हैं. प्रकृति की कुछ वनस्पतियाँ, वृक्ष, स्थान आदि जहां इन विद्युतीय शरीरों को शांति मिलती है, वहां यह रहना पसंद करते हैं. कुछ जो शीघ्र इससे मुक्त होना चाहते हैं वह पुराने मंदिरों के आसपास भी रहते हैं. कुछ आत्माएं इतनी शक्तिशाली होती हैं की वह किसी मंदिर, दरगाह, गिरजाघर में भी आती-जाती हैं. अक्सर ऐसी आत्माएं सात्विक, आध्यात्मिक ऊर्जा संपन्न होती हैं।

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