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आज कौन झेल रहा है दहेज प्रथा का दंश 

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      प्रखर अरोड़ा 

दुल्हन के पिता को तो बस दुल्हन की शादी का खर्चा करना होता है। इसमें टेंट, खाना पीना, दुल्हन को दान दहेज शामिल है. यह ज़्यादातर दूल्हे वाले अब माँगते ही नही, क्योंकि दहेज के झूठे मुक़दमे भी बहुत हो रहे है. लेकिन फिर भी लड़की का पिता देता है अपनी इज्जत  के लिए.

दूल्हे के पिता को 3 अलग-अलग दिन का खर्चा करना पड़ता है :

1. दूल्हे के पिता का पहला सगाई का खर्चा जिसमें खाना पीना, व टेंट और डेकोरेशन,,उसके बाद सभी रिश्तेदारों को मिठाई भी दी जाती है जो कम से 200-250 किलो से कम नही होती.

सगाई के लिए कम से कम एक अंगूठी

ये सब पहला खर्चा होता है. एक दूल्हे के पिता अपनी हासियत अनुसार करता है.

2. दूल्हे के पिता का दूसरा बड़ा शादी वाले दिन बारात का खर्चा जिसमें सभी बारातियों को लाने ले जाने की व्यवस्था व उनको खिलाने की भी व्यवस्था, बारात में बैंड बाजे की व घोड़ी या बग्गी की व्यवस्था जो अब 2 या 3 लाख से कम नही होती,कभी कभी तो यह रकम 5 लाख तक हो जाती है।

उसके बाद शादी वाले ही दिन फेरो से पहले होने वाली बहु को कम से कम अपने हिसाब से तोले भर सोने के ज़ेवर व उसके लिए 11-21 साड़ियाँ जो कि प्रत्येक साड़ी कम से कम 2-3 हज़ार की होती है, व कुछ अन्य क़ीमती उपहार व अन्य कपड़े.

   (ये सब देने के बाद भी भगवान ना करे कि यदि शादी टूट जाए तो ये सब ज़ेवर और साड़ियाँ व वो सब उपहार बहु से वापस नही लिया जाता क्यों कि क़ानूनी रूप में वो स्त्रीधन होता है जो तलाक़ होने के बाद वापस नही ले सकते).

3. और शादी के बाद एक रिसेप्शन पार्टी का खर्चा जिसमें दूल्हे के रिश्तेदार व दुल्हन के भी रिश्तेदार सबको बुलाया जाता है जिसमें खाना पीना व टेंट या बेंकुएट हॉल करना पड़ता है उसके बाद सभी रिश्तेदारों को फिर से मिठाई भी दी जाती है जो कम से 200-250 किलो से कम नही होती, ये खर्चा भी दूल्हे का पिता ही ख़ुशी-ख़ुशी करता है।

इस तरह एक दूल्हे के पिता पर  लगभग 10-15 लाख के क़रीब का बोझ होता है. ये पैसा, दूल्हे का पिता, किसी पेड़ से नही तोड़ कर लाता, और ना किसी कारख़ाने से रातों रात छाप कर लाता है. ये पैसा भी मेहनत का कमाया हुआ होता है या फिर क़र्ज़ लिया हुआ होता है. सिर्फ़ इज्जत के लिए यही सोच कर कि बेटे की शादी ज़िंदगी में एक बार होती है बार बार नही.

    उसके बाद भी दूल्हे के पिता को ये पता नही होता कि जिस बेटे के विवाह के लिए वो 3 अलग-अलग दिन में इतना खर्चा कर चुके है उसके विवाह के बाद वही बहु शायद उनके बेटे को भी उनसे छीन सकती है।या उनसे अलग कर सकती है। या फिर झूठे दहेज के मुक़दमों में फँसा भी सकती है। जिसमें सिर्फ़ उस बहु की ही सुनवायी होगी, जिसके मान-सम्मान के लिए दूल्हे के पिता ने बहुत धूम-धाम से और दिल खोल कर खर्चा किया।

   किंतु ये समाज इस सच्चाई से परिचित नही है। ये समाज सिर्फ़ दुल्हन के पिता की और उसके क़र्ज़दार होने की फ़िक्र करता है किसी दूल्हे के पिता की नही.

   किसी लड़के के पिता से भी पूछो एक बार कि घर में लक्ष्मी के रूप में बहु लाने के लिए कितना पैसा खर्च हुआ है उसका.

   जिस दिन लड़के के पिता बन कर लड़के की शादी करोगे उस दिन पता चलेगा कि क़र्ज़ के बोझ तले लड़के का पिता भी होता है.

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