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शिक्षा का गिरता स्तर जिम्मेदार कौन ?

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मुनेश त्यागी 

      विश्व बैंक की ताजातरीन रिपोर्ट ने भारत की सरकार के शिक्षा संबंधी तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी है। विश्व बैंक की हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट ने भारत के स्कूलों में बच्चों की शिक्षा व्यवस्था की जनविरोधी नीतियों की पोल खोल दी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत उन 12 देशों की सूची में दूसरे स्थान पर है जहां दूसरी कक्षा के छात्र एक छोटे से पाठ का एक भी शब्द नहीं पढ़ सकते।

     12 देशों की सूची में मालावी पहले स्थान पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के  छात्र दो अंकों के घटाने वाले सवाल को हल नहीं कर सकते और पांचवी कक्षा के छात्र भी ऐसा नहीं कर पाते। रिपोर्ट में कहा गया है स्कूल में कई वर्ष बाद भी लाखों बच्चे पढ़ लिख नहीं पाते हैं या गणित का सवाल भी हल नहीं कर पाते।

    विश्व बैंक ने कहा है की कि बिना ज्ञान के शिक्षा देना न केवल विकास के अवसर को बर्बाद करता है, बल्कि यह एक बहुत बड़ा अन्याय भी है। रिपोर्ट में ज्ञान के इस गंभीर संकट को हल करने के लिए ठोस नीतिगत कदम उठाने की सिफारिश की गई है। हकीकत यह है शिक्षा की यह गिरती हुई व्यवस्था, देश के सामाजिक संकट को और गहरा बना रहा है। ज्ञान का यह संकट नैतिक और आर्थिक संकट है।

    जब छात्रों को अच्छी और समुचित शिक्षा मुहैया कराई जाती है तो वह युवाओं को आय, रोजगार और अच्छे स्वास्थ्य समेत, अच्छे नागरिक बनने का आधार भी बनाती है। दक्षिण अफ्रीका के महान क्रांतिकारी नेता नेल्सन मंडेला ने कहा था कि समुचित धर्मनिरपेक्ष आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा के आधार पर एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है।

    1959 में जब क्यूबा में समाजवादी क्रांति हुई और वहां किसानों और मजदूरों का राज्य कायम किया गया तो, वहां की जनता को दो साल के अंदर मुफ्त, आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा देकर पूरे समाज को शिक्षित कर दिया गया। आज  बहुत ही छोटे से मुल्क क्यूबा में, दुनिया के अनुपात में, सबसे ज्यादा डॉक्टर हैं, सबसे ज्यादा शिक्षक हैं।

     यही काम 1917 में रूसी क्रांति के बाद किया गया, जब वहां के किसानों मजदूरों की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने सारी जनता को मुफ्त आधुनिक धर्मनिरपेक्ष और वैज्ञानिक शिक्षा देकर अपने बच्चों नौजवानों और जनता का शैक्षिक स्तर में सबसे ऊंचा कर दिया और 10 साल के अंदर सोवियत यूनियन दुनिया की एक महाशक्ति बन बैठा। यही काम क्रांति के बाद सारे समाजवादी मुल्कों ने जैसे चीन कोरिया वेतनाम आदि मुल्कों में किया गया।

    रूसी क्रांति से सबक लेते हुए यही काम पूंजीवादी मुल्कों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, स्वीडन और नार्वे किया गया। इस मामले में चीन ने सर्वोत्तम काम किया है। वहां आज शिक्षा की दर 100 फ़ीसदी है। वहां से अशिक्षा को देश निकाला दे दिया गया है और वह अपने ज्ञान और वैज्ञानिक शिक्षा के आधार पर, आज विश्व की एक महान शक्ति बन गया है। चीन को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक वैश्विक महाशक्ति बनाने में वहां की शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा हाथ है।

     आजादी के बाद भारत में भी नेहरू की सरकार द्वारा छात्रों और नौजवानों को यही सस्ती, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी गई और भारत में एक शिक्षित वर्ग पैदा किया गया, जिसकी वजह से हमारा देश विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ। उस समय हमारे देश में बहुत सारे विद्यालय, महाविद्यालय, आई आई टी, आई आई एम,  और मेडिकल कॉलेज बनाए गए और देश में बड़े पैमाने पर एक शैक्षिक वर्ग तैयार किया गया जिसने भारत को आगे बढ़ाने में, उसका विकास करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।

     मगर वर्तमान में विभिन्न राज्यों और सरकारों द्वारा मुफ्त,अनिवार्य,धर्मनिरपेक्ष, आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा के प्रचार प्रसार को जानबूझकर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। शिक्षा के बजट को पिछले 30 सालों से लगातार घटाया जा रहा है। बच्चों के अनुपात में विद्यालय और शिक्षक नहीं है, शिक्षा का निजीकरण करके उद्योग और धंधे में तब्दील करके इसे बाजार की शक्तियों के हवाले करके मुनाफा कमाने के स्रोत में तब्दील कर दिया गया है। आज 80 करोड़ गरीब लोगों के पास अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त धन नहीं है जिस कारण भारत की 80 करोड़ जनता को सस्ती, अनिवार्य, आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा से वंचित कर दिया गया है और यह 80 करोड़ जनता विकास की दौड़ से बाहर हो गई है।

    आज हमारे देश की जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि माना कि 1991 के बाद नई आर्थिक नीतियों के तहत आने वाली सरकारों ने शिक्षा के ऊपर वाजिब खर्च नहीं किया और लगातार बजट शिक्षा के बजट में कटौती की, जिससे हमारे देश में पर्याप्त विद्यालयों और पर्याप्त संख्या में शिक्षकों का अभाव हो गया और 80 करोड़ गरीबों की शिक्षा को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

    मगर यही पर अहम सवाल यह है कि पिछले 8 साल से मोदी सरकार केंद्र में है। उसने 80 करोड़ अनपढ़ जनता को बढ़ाने के लिए क्या क्या कदम उठाए? कितना बजट शिक्षा की मद में खर्च किया और क्या उसने राज्य सरकारों के साथ ऐसी शिक्षा नीति बनाई, जिसके अंदर, जिसके तहत सभी गरीबों के बच्चे को सस्ती मुफ्त अनिवार्य आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा दी जा सके? 

    यहां पर हम पाते हैं कि मोदी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है। इन सरकारों ने ऐसा क्यों नहीं किया? हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि सबको शिक्षा देने से लोगों में जागरूकता आ जायेगी, वे अपने अधिकार और हकों  की मांग करने लगेंगे, ऐसे में सरकार ने उन्हें अनपढ़ बनाए रखा गया। इसी नीति के तहत 80 करोड़ जनता को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया, ताकि कहीं वह आगे आने वाली सरकारों से अपने हकों की मांग ना कर सके, अपने अधिकारों के लिए ना लड सकें, अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज न उठा सकें, इसीलिए इन सरकारों ने जनता के एक बडे हिस्से को अनपढ़ बनाए रखने में ही अपना भला समझा।

     आज भारत की गरीब जनता को मुफ्त, सस्ती, आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत है। केवल तभी भारत को आधुनिक और एक विकासशील व्यवस्था में तब्दील किया जा सकता है और केवल तभी  विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है। शिक्षा का गिरता स्तर, शिक्षकों और स्कूलों की भारी कमी, शिक्षा के बजट में लगातार की जा रही कटौती और शिक्षा के अवसरों को आम जनता को मुहैया न कराने के कारण, हमारे देश में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है जो देश हित में नहीं है और भारत के विकास के हित में नहीं है और वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा विरोधी नीतियों के रहते, हमारा देश कभी भी विश्व गुरु नहीं बन सकता।

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