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किसने, किसे बांधी सर्वप्रथम राखी ?

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     ~> पूजा ‘पूजा’

   कतिपय लोग रक्षाबंधन को भाई-बहन के प्यार का त्यौहार नहीं, स्त्री द्वारा पुरुष को छलने का व्यापार मानते हैं. खैर….! 

यहाँ हमारा उद्देश्य इस परम्परा की उत्पत्ति को जानना है.

         पौराणिक मिथक के अनुसार : राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे. नारायण ने उनको छलने के लिये वामन अवतार लिया. तीन पग में उनका सारा साम्राज्य ले लिया. उन्हे उन्होंने पाताल लोक का राज्य दे दिया.

    बाली बोला, छल ईश्वर का धर्म नहीं हो सकता. मैं तो साधना कर रहा था. आपने सब खंडित किया. मुझे अब मनचाहा वर दें.

नारायण ने कहा, ठीक है. मांगो.

बलि बोले, “मैं जब सोने जाऊँ तो, जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं.” 

      नारायण ने अपना माथा ठोका. इसने तो अपना पहरेदार बना लिया। ये तो सबकुछ हार के भी जीत गया है. 

काफी समय बीत गया. बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी नारायण के बिना. एक दिन नारद जी का आना हुआ तो लक्ष्मी जी ने कहा, नारद! आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं. क्या नारायण को कहीँ देखा आपने?

     तब नारद जी बोले की पाताल लोक में हैं. राजा बलि की पहरेदार बने हुये हैं.

तब लक्ष्मी जी ने कहा मुझे राह दिखाएं. नारायण कैसे मिलेंगे ?

     तब नारद ने कहा आप राजा बलि को भाई बना लो. उनसे रक्षा का वचन लो. पहले तिर्बाचा करा लेना. कहना दक्षिणा में जो मांगूगी वो देनी पड़ेगी. फिर आप और दक्षिणा में अपने नारायण को माँग लेना। 

लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची राजा बलि के पास। बलि ने पूछा, क्यों रो रहीं हैं आप।

लक्ष्मी जी बोली की मेरा कोई भाई नहीँ हैं. इसलिए मैं दुखी हूँ।

बलि बोले की तुम मेरी बहन बन जाओ.

लक्ष्मी ने नारद की बताई विधि अपनया. बलि को राखी बांधी फिर बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये भैय्या।

 बलि सब समझ गया. बोला, धन्य हो माता! आपके पति मेरा सब कुछ ले गये और आप इस तरह उन्हे भी लें गयीं।

    तब से ये रक्षाबन्धन शुरू हुआ. इसीलिये कलावा बाँधते समय यह मंत्र बोला जाता है :

“येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:।”

   (चेतना विकास मिशन).

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