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हिरणों के इस बलिदान का कौन ! गीत यहां पर गाएगा…?

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अभ्यारण्य के महासमर में,
जब कालमेघ यहां पर छा जाएगा !
हिरणों के इस बलिदान का कौन,
गीत यहां पर गाएगा ?
भगा – भगाकर चीते बैरी ,
जब उनकी ग्रीवा तोड़ेंगे !
नन्हें शावक मां बिन कैसे ?
मां पुकार – पुकाकर दौड़ेंगे !
कौन सुने अब इनकी व्यथा ?
सब तो झूम रहे हैं !
भूल गए हैं सब गईया – मईया !
बस यहां पर चीते घूम रहे हैं !
चीर बचाने कृष्ण जैसा !
कौन यहां पर आएगा ?
हिरणों के इस बलिदान का कौन !
गीत यहां पर गाएगा ?

इनके आंसू ,इनका यह दु:ख ,
क्या जन को दिख पाएगा ?

इन पर जो बीत रही है !
इतिहास भरा लिख पाऊंगा ?
हर मुद्दे को छोड़ यहां तो !
चीते यहां खेल रहे हैं !
नेतागण सुख लें सारे !
दु:ख प्रजाजन झेल रहे हैं !
कैसे फल – फूले खेती !
जब बाड़ खेत खा जाएगा !

हिरणों के इस बलिदान का कौन !
गीत यहां पर गाएगा ?

मैं वह सपना हूं जन का !
हर दिन निशा दिखूंगा !
मैं अदना सा कलमकार हूं !
पर जन की बात लिखूंगा !
शब्द – शब्द आवाज है जन की,
जो – जो कलम लिखेगी !
जब-जब जन पर बीतेगी !
संग तब-तब कलम दिखेगी !
कलमकार तो सदा कलम का,
सच्चा धर्म निभाएगा !
हिरणों के इस बलिदान का कौन !
गीत यहां पर गाएगा ?

       सुप्रसिद्ध जनकवि हंसराज भारतीय, दमदमा, गुड़गांव, हरियाणा, संपर्क - 98136 13075    

         संकलन -निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क - 9910629632
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