समीक्षक : संगसार सीमा
तुम पहले क्यों नहीं आए शांति व मानव कल्याण के लिए नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के जीवन में आए हुए उन बच्चों की कहानियों का संग्रह है जो जीवन के अंधेरी खाइयों से निकलकर प्रकाश की चुंधियाती रौशनी को आंख मिचमिचाते हुए देखने की हिम्मत कर पाए।
रोंगटे खड़े कर देने वाले इन अजीब दास्तानों को पढ़कर आप चीख पड़ेंगे लेकिन आपके मुख से आवाज़ नहीं निकलेगी। ऐसी चीखें तभी निकलती हैं, जब मानवीयता शर्मसार होती है। जब हमें अपने मनुष्य होने पर धिक्कार होता है कि मानव जाति भी ऐसी नृशंस हो सकती है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। ‘साथ बैठे सभी बच्चों के कपड़े फटे और चिथड़े लगे हुए थे। उनमें से झांक रही सूखी हड्डियां और खाल पर चोटों के निशान मानव सभ्यता पर लगे गुलामी के दागों की तरह थे’
शीर्षक कहानी ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ एक प्यारी बच्ची देवली की कहानी है, जिसे दो तीन पीढ़ियों से खदान मालिक ने बंधक बनाकर रखा हुआ था। वहां ये सभी लोगों से दिन-रात पत्थर ढुलाई का काम करवाते थे और मजदूरी के नाम पर बस रुखी सूखी रोटी ही इन्हें मयस्सर थी। कैलाश सत्यार्थी की पूरी टीम ने योजनाबद्ध तरीके से शादी की बारात का बहाना करके एक ट्रक से उस गोपनीय क्षेत्र से सैंकड़ों बंधुआ मजदूरों को उनके चंगुल से मुक्त करवाया।
देवली जैसे दर्जनों बच्चे उनकी गाड़ी में बैठाकर लाए गए। उनकी दासता और दीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उन्हें केले खाने के लिए दिए गए तो वे सारे बच्चे केले को पहचानने से इंकार कर रहे थे। जब उन्हें केले को छीलना और खाना बताया गया तो वे जीवन के एक अलग ही आनंद से भर उठे। और तभी अकस्मात देवली ने कैलाश सत्यार्थी के कंधे पर जोर से कंधे पर हाथ पटक कर लगभग चीखते हुए कहा ‘क्यों रे! तू पैले कोणी आयो?
बस इस एक पंक्ति ने सम्पूर्ण मानव जाति के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। ‘देवली ने यह सवाल तो मुझसे किया था, किन्तु वह उन तमाम लोगों के लिए भी था जो धर्म, संविधान, कानून, मानवाधिकार, आज़ादी, बचपन, मानवता, समता, न्याय जैसी बातें किया करते हैं। इसलिए यह प्रश्न आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
ऐसी पृष्ठभूमि से आई यह बच्ची जब कैलाश सत्यार्थी के संपर्क में आई और कैलाश जी और उनकी पत्नी सुमेधा जी के सानिध्य में पढ़ना लिखना और बोलना सीख गई तब एक दिन वह उनके साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में जोरदार भाषण देकर आई। वह भाषण पढ़ कर आप चौंक जाएंगे कि इस छोटी बच्ची में इतना हिम्मत आखिर आया कहां से आई। जाहिर है कि कैलाश सत्यार्थी जैसे मसीहा जो उसके जीवन में है तो भला वह क्यों न दुनिया को ललकारे?
इस भाषण की अंतिम पंक्ति है… बताइए, जब मैं एक छोटी बच्ची होकर यह कर सकती हूं, तो आप सबमिल कर दुनिया के सभी बच्चों को बाल मजदूरी से क्यों नहीं हटा सकते? उसकी इस नैतिक चुनौती से संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय के उस कक्ष में सन्नाटा छा गया था। ऐसी ही बारह कहानियां इस किताब में है, जिसे पढ़कर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इस एक दूनिया में न जाने कितनी सारी दुनिया बसती है।
पुस्तक : तुम पहले क्यों नहीं आए
लेखक : कैलाश सत्यार्थी
प्रकाशन : राजकमल
कीमत : 299/-