Site icon अग्नि आलोक

खुद से विवाह करने में क्यों मशगूल हो रही हैं लड़कियां

Share

 पुष्पा गुप्ता

      पुरुष को नकार कर लेस्वियन बनने चलन परवान चढ़ रहा है. अब पिछले दशक से लेस्बियनशिप से परे खुद से ही व्याह रचाने लगी हैं लड़कियां. यानि अब समलैंगी साथी भी दरकिनार.

        अभी पिछले दिनों भारत में भी ऐसी घटना घटी है. 2011 में स्पेन की 10 लड़कियों ने एक साथ मिलकर यह घोषणा की थी कि उनमें से हर लड़की अपने आप से शादी कर रही है. अचंभे में डालने वाला यह काम, पारंपरिक दांपत्य जीवन के ख़िलाफ़ बग़ावत का एलान था.  वास्तव में उन लड़कियों ने इस काम से कुछ ऐसा पाया जिसकी मुहिम पहले ही दुनिया भर में शुरू हो चुकी थी जिसका नाम ‘सोलोगेमी’ है. सोलोगेमी’ शब्द की शुरुआत स्पेन से हुई.

पारंपरिक विवाह अब हर लड़की के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य नहीं रहा. बल्कि ‘सोलोगेमी’ में विश्वास रखने वाली लड़कियां दूसरों से प्रेम करने से पहले अपने आप से प्रेम की इच्छा व्यक्त करती हैं. लेकिन क्या ख़ुद से मोहब्बत के इज़हार का यह तरीक़ा कुछ ज़्यादा ही अजीबोग़रीब है या फिर यह किसी पुरानी कहानी का एक नया और हैरानी में डालने वाला रवैया है?

   पश्चिम की माय सीरानो 11 साल से शादीशुदा हैं और ख़ुश भी हैं. उन्होंने ख़ुद से शादी कर रखी है यानी उनका जीवन साथी कोई और नहीं, वह ख़ुद ही हैं. वह अपने विवाह के बंधन को नए सिरे से ताज़ा करने के एक समारोह में शामिल हुईं तो उन्होंने कहा कि शादी के मौक़े पर मैंने संकल्प लिया कि मैं अपने अंदर की आवाज़ को सुनूंगी और ख़ुद से हर दिन सवाल करूंगी कि मुझे किस चीज़ की ज़रूरत है ताकि उसे पूरा कर सकूं.

 ख़ुद से शादी का रिवाज दुनिया के कई देशों में प्रचलित हो रहा है जिनमें जापान, अमेरिका, भारत, इटली और ब्रिटेन शामिल हैं. स्पेन से संबंध रखने वाली माय ने 2011 के बाद से अब तक 70 महिलाओं को अपने नक़्श-ए-क़दम पर चलने में मदद की है.

 अधिकतर देशों में ख़ुद से शादी का क़ानून मौजूद नहीं? तो फिर भी कई महिलाएं ऐसा क्यों करती हैं? जबाब में माय सीरानो का कहना है, “मैंने तो मज़ाक़ में ऐसा किया था. शादी के दिन तक मेरा मक़सद सिर्फ़ रूमानी मोहब्बत पर आम बहस को शुरू करना था. लेकिन अपने आप से शादी के दिन हमें एहसास हुआ कि हम कुछ महत्वपूर्ण करने जा रहे हैं. मैंने सोचा कि मैं अपने आप से मोहब्बत करती हूं, मैं अपनी बेहतरीन दोस्त भी हूं, और उस वक़्त और उस लम्हे के दौरान मैंने सैकड़ों लोगों के सामने ख़ुद से वादा किया कि मैं अपना ख़्याल रखूंगी और सबसे पहले अपने बारे में सोचूंगी.”

 लैंगिक संबंधों की विशेषज्ञ नेविस ट्रबजोसा का कहना है कि लैंगिक दृष्टि से ऊपर उठकर हर इंसान के लिए व्यक्तिगत तौर पर अपने व्यक्तित्व का सम्मान ज़रूरी है. मर्दों को अपने आपको महत्व देना सिखाया जाता है तो फिर औरत के लिए उसका व्यक्तित्व क्यों एक रुकावट है. षडयंत्रकारी संस्कारों के कारण औरत समझती है कि अपने आपसे मोहब्बत करना ज़रूरी नहीं है.

       मनोवैज्ञानिक इसप्रांका बोश फ़ेविल के अनुसार ख़ुद से मोहब्बत करना सीखना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें दुनिया में अपनी जगह तय करने में मदद मिलती है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे हमें यह जांचने में मदद मिलती है कि कौन हमारी मोहब्बत का हक़दार है और कौन नहीं.

हम किससे और कैसे प्रेम करते हैं, यह चलन बदल रहा है. दुनिया भर में अब भी पारंपरिक वैवाहिक बंधन में बंधे जोड़ों की बहुलता है लेकिन आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं तो एक महत्वपूर्ण बिंदु सामने आता है. वह बिंदु यह है कि अब पहले की तुलना में कम शादियां हो रही हैं मगर दूसरी ओर तलाक़ की दर बढ़ चुकी है.

      जिंकल जैसी महिलाओं का मामला कुछ अलग है. उन्होंने दो बार शादी की. पहली बार एक मर्द से और दूसरी बार ख़ुद से. वह बताती हैं, “मैंने ख़ुद से शादी का फ़ैसला इसलिए किया क्योंकि उस समय हमारी सबसे छोटी बेटी पैदा हुई थी और मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरे जीवन में मेरे पास अपने लिए कोई समय और जगह नहीं है. मैं जिंकल से पेरू और मैरिन की मां बन चुकी थी.”

     उनका कहना है कि अगर वह ख़ुद से मोहब्बत नहीं करती और अपने आप से संतुष्ट नहीं है तो इससे मुझ पर, हमारे बच्चों पर और उन सब लोगों पर असर पड़ता जो उसके जीवन से जुड़े हैं.

पिछले कुछ दशकों में बहुत सी बातों में बदलाव आए हैं. इसके बावजूद पारंपरिक परिवार ही समाज का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है जिसे स्वाभाविक माना जाता है. लेकिन समलैंगिक संबंध और अब खुद से शादी इस व्यवस्था के दुःखद भविष्य की सूचक घटनाएं हैं.

  इसके कारण के स्पष्टीकरण में मनोवैज्ञानिक इसप्रांका बोश फ़ेविल का कहना है कि बड़ी हद तक पारंपरिक विवाह महिला के लिए एक जेल की तरह होता है. जीवन भर हमें बताया जाता है कि विवाह करना हमारे जीवन का महत्वपूर्ण उद्देश्य है. आंकड़े साबित करते हैं कि विवाह के बाद घरेलू कामकाज, बच्चों, बड़ों और बीमारों का ध्यान रखना महिलाओं की ज़िम्मेदारी रही है.

वस्तुतः सोलोगेमी समस्या का हल नहीं है बल्कि यह एक पितृसत्तात्मक समाज का प्रतीक है.

    माय कहती हैं, जब हम महिलाएं एक जगह जुटती हैं तो ऐसा लगता है कि हम आइने के सामने खड़ी हैं. यह सोच कि महिलाएं एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी होती हैं, एक पितृसत्तात्मक समाज की उपज है जो चाहता है कि हम एकजुट न हो सकें. लेकिन वास्तव में बिल्कुल उलटा होता है. जब हम इकट्ठे होते हैं तो हम ताक़तवर होते हैं.

    महिला अधिकारों पर काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे उपायों से महिलाओं को अपने अधिकार लेने में मदद मिलती है.

    जिंकल कहती है कि कभी-कभी ऐसा करना मुश्किल होता है क्योंकि लोग इस बात को नहीं समझते और हम पर स्वार्थी होने का आरोप लगाते हैं. लेकिन हक़ीक़त यह है कि ख़ुद से शादी करने के बाद मेरा मुझ से संबंध अपने पति और बच्चों समय जैसा था उस से बेहतर हुआ है. मैं जब आइना देखती हूं तो मुझे अच्छा लगता है. सालों पहले मैंने ख़ुद से जो वादा किया था, मैंने उसे पूरा किया है और मैं अब भी उस पर टिकी हुई हूं. मुझे विश्वास है कि मैं ख़ुश रहूंगी

Exit mobile version