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राहुल गांधी के बदले अंदाज से BJP इतनी गंभीर क्यों ?

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सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास। ये वही नारा है जिसके जरिए भारतीय जनता पार्टी पर जब सांप्रदायिक होने का आरोप लगता था तो मोदी के इस नारे को आगे करके भारतीय जनता पार्टी अपना बचाव करती थी। अब कांग्रेस और राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के इस नारे का काट ‘मोहब्बत की दुकान’ के रूप में ढूंढ लिया है। राहुल गांधी का यह नारा खूब प्रचलित हो रहा है पीएम मोदी के ‘सबका साथ…’ वाले नारे की तरह राहुल गांधी भी इस नारे को हर मंच पर दोहराते नजर आते हैं। कांग्रेस की आईटी सेल सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर इसे खूब शेयर करती है और भारतीय जनता पार्टी पर देश में वैमनस्य फैलाने का आरोप लगाते हुए यह कहती है कि भारत राहुल गांधी के विचार से हीं आगे बढ़ेगा। इस सब के बीच बड़ा प्रश्न यह है कि कल तक राहुल गांधी को ‘पप्पू’ बताने वाली BJP आज उनके इस नारे को लेकर इतनी गंभीर क्यों हो गई है? राहुल के बयानों पर भाजपा की आक्रामकता का कारण क्या है यह जानना जरुरी है

‘मोहब्बत की दुकान’ का फायेदा दिखना शुरू

राहुल गांधी के इस नारे का सकारात्मक असर दिखना शुरू हो गया है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान मुसलमान मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए राहुल गाँधी द्वारा चला गया यह दांव कांग्रेस के लिए काफी कारगर साबित हुआ। कर्नाटक में पार्टी को जबरदस्त जीत मिली और इस जीत के पीछे मुसलमान समुदाय के द्वारा उसे किया गया समर्थन बड़ा कारण बना।

कर्नाटक के मुस्लिमों ने कांग्रेस पार्टी को भर-भर के वोट दिया। तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी को इस राज्य के सिर्फ 2% मुस्लिम मतदाताओं ने वोट किया। जेडीएस का एक भी दांव यहां के मुस्लिमों को नहीं रिझा सका। कांग्रेस अब इसी दांव को अगले लोकसभा चुनाव में भी आजमाना चाहती है। यही कारण है कि विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे नेताओं के बीच राहुल गांधी एक बार फिर मोहब्बत की दुकान लगाने निकल पड़े हैं।

बता दें कि, मोहब्बत की दुकान का नारा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान सबसे पहले सुनाई पड़ा था। माना गया था कि इसके जरिए कांग्रेस देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को साधने की रणनीति बना रही थी, जो कभी उसका सबसे बड़ा वोट बैंक हुआ करता था। इस समुदाय के वोट पर कांग्रेस का एकक्षत्र राज हुआ करता था।

लेकिन बाद में पार्टी में हुई कई टूट और अनेक क्षेत्रीय दलों के उभार के बाद यह वर्ग अलग-अलग दलों में बंटता चला गया, इसी कारण कांग्रेस पार्टी की दुर्दशा हो रही थी। लेकिन दुबारा खड़ी होने की पुरजोर कोशिश में जुटी कांग्रेस अब पूरी मेहनत के साथ इस वोट बैंक को दुबारा अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है।

कांग्रेस की मजबूती बीजेपी के लिए परेशानी

माना जाता है की 2014 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उससे सबक नहीं लिया जिस वजह से अगले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को हार मिली। पार्टी में कई स्तरों पर बदलाव की जरुरत थी। संगठन में भी बदलाव की जरुरत थी। लेकिन बहुत समय के बाद हाल के दिनों में कई ऐसे बदलाव हुए हैं जिसके कारण कांग्रेस एक बार फिर मजबूत होती दिखाई पड़ रही है।वहीं भाजपा को कई अलग-अलग मोर्चों पर जनता को जवाब देना पड़ रहा है, जो आसान नहीं है।

महंगाई, बेरोजगारी, 9 साल की एंटी इनकमबेंसी, बदहाल किसान, महिला खिलाड़ियों के सम्मान सहित कई ऐसे मुद्दे हैं जो भाजपा को काफी परेशान कर रहे हैं और ये लोकसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं। 2023 के अंत से लेकर 2024 के अप्रैल तक चुनाव की कैसी परिस्थितियां बनती हैं, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस समय जो हाल है, उससे मोदी सरकार परेशान होती दिखाई पड़ रही है।

200 सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस आमने सामने

2014 में 44 तो 2019 में उसे 52 सीटों पर सफलता मिली, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि 2019 में भाजपा को जिन 303 सीटों पर सफलता मिली थी, उनमें 190 लोकसभा सीटों पर उसकी लड़ाई कांग्रेस से थी। 185 सीटों पर उसे अन्य क्षेत्रीय दलों का सामना करना पड़ा था, जिसमें उसने 128 सीटों पर सफलता हासिल की थी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार मोटा-मोटी 200 लोकसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस में आमने-सामने की लड़ाई है।

कई सीटों पर कांग्रेस ने विपक्षी दलों का खेल ख़राब किया था। अब यदि कांग्रेस अपनी लोक-लुभावन योजनाओं और सामाजिक समीकरणों के सहारे लगभग 200 सीटों पर भाजपा को घेरने में कामयाब रहती है तो भाजपा के लिए सत्ता की राह कठिन हो सकती है।

कई विपक्षी पार्टियों का भी यही मानना है की कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव में सिर्फ उन्हीं सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारना चाहिए जहां बीजेपी से उनकी सीधी लड़ाई है, बाकि सीटों पर उन्हें अन्य विपक्षी दलों का समर्थन करना चाहिए, ताकि बीजेपी को रोका जा सके।


भाजपा का प्लान, राहुल को उनके हर बयान पर घेरा जाए

एकाएक बदलती परिस्थितियों से भाजपा भी वाकिफ हो रही है। भाजपा की थिंक-टैंक राहुल के इस चाल की काट तलाशने में जुट चुके हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी की इस मुहिम को ध्वस्त करने के लिए उसने अपने प्रखर नेताओं की फौज उतार दी।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर, गिरिराज सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, मुख्तार अब्बास नकवी सहित अनेक नेता राहुल गांधी के हर बयान में कमियां निकालने में जुट गए हैं। रवि शंकर प्रसाद ने तो यहां तक आरोप लगा दिया की राहुल गांधी मोहब्बत की दुकान के नाम पर हर जगह नफरत फैला रहे हैं।

प्रसाद बोले- देश तो छोड़िये वो विदेश में भी देश के खिलाफ बात कर रहे हैं। देश की छवि धूमिल करने में राहुल गांधी को क्या मजा आता है, इसका जवाब तो वहीं देंगे। लेकिन देश की जनता उनके इस बेबुनियाद बातों को सीरियसली नहीं लेती।

आगे प्रसाद ने बताया इसके पहले भी वे अपनी विदेश यात्राओं में यही काम कर रहे थे और इस बार भी वे यही काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि GDP के आंकड़े यह बताने के लिए काफी है कि देश मोदी जी के नेतृत्व में बेहतरीन गति से आगे प्रगति कर रहा है। मनमोहन सिंह सरकार के समय भारत फ्रैजाइल फाइव की श्रेणी में आता था,भारत के अर्थव्यवस्था का हाल खस्ता हो गया था।

जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काल में देश दुनिया के पांच सबसे अच्छे पांच देशों में शामिल हो गया है और कांग्रेस को यही बात पसंद नहीं आ रही है। इन सभी बयानों से साफ़ हो जाता है की बीजेपी अब राहुल गाँधी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाएगी। उनके हर बयान को तौलेगी, उसमें से कमियां निकलेगी और देश के सामने रखेगी ताकि पहले जो उनकी पप्पू वाली छवि बनाई गई थी, वो उससे बाहर न आ सके।

लेकिन भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी का नया रूप सब को देखने को मिल रहा है, कुछ मुद्दों को छोड़ दें तो वो ज्यादातर जनता से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं। जैसे की बेरोजगारी और महंगाई। इसी कारण उनकी स्वीकार्यता भी बढ़ रही है, जो बीजेपी को अच्छा नहीं लग रहा।

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