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चार सौ पार का नारा देने वाली भाजपा को आख़िर बहिष्कार का सामना क्यों करना पड़ रहा है ?

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निर्मल रानी

देश में चुनावी सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। सत्ताधारी भाजपा जहाँ अब की बार चार सौ पार के नारे के साथ विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश कर रही है वहीं संयुक्त विपक्ष इण्डिया गठबंधन भाजपा की सत्ता में वापसी रोकने के लिये एड़ी छोटी का ज़ोर लगाये हुये है। सत्ता व विपक्ष के बीच हो रहे इस चुनावी दंगल से इतर विभिन्न राज्यों से यह ख़बरें भी आ रही हैं कि आम नागरिकों द्वारा इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों का न केवल बहिष्कार किया जा रहा है बल्कि कई जगह तो हिंसक विरोध से लेकर भाजपा प्रत्याशियों के विरुद्ध प्रदर्शन तक किये जा रहे हैं । कई जगह तो ग्राम वासियों ने बाक़ायदा बहिष्कार व चेतावनी सम्बन्धी साइन बोर्ड भी लगा दिये हैं। तो क्या हरियाणा,पंजाब,उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल सहित कई अन्य राज्यों में हो रहे इस तरह के बहिष्कार यह साबित नहीं करते कि भाजपा का चार सौ पार का नारा महज़ एक चुनावी शगूफ़ा है ?
अभी गत 30 मार्च को ही मुज़फ़्फ़र नगर में रात करीब साढ़े आठ बजे खतौली क्षेत्र के मढ़करीमपुर गांव में चुनावी सभा के दौरान केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान के क़ाफ़िले की गाड़ियों पर जमकर पथराव किया गया। ख़बरों के अनुसार इस पथराव में 10 से अधिक भाजपा कार्यकर्ता घायल हो गये। सभास्थल के समीप की छतों से पथराव शुरू होते ही सभा में भगदड़ मच गई।समाचारों के अनुसार पथराव के साथ ही हमलावरों ने भाजपा व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. बालियान के विरुद्ध नारे बाज़ी भी की। इस पथराव में हमलावरों द्वारा खतौली के पूर्व विधायक विक्रम सैनी की गाड़ी को क्षति ग्रस्त कर दिया गया। भाजपा ने इस घटना को विपक्ष की साज़िश क़रार दिया है। इसी तरह गत 6 अप्रैल को जिस समय रामायण सीरियल के राम अरुण गोविल जिन्हें भाजपा ने मेरठ से पार्टी उम्मीदवार बनाया है वे स्थानीय भाजपा नेताओं के साथ प्रचार रथ पर सवार होकर रोड शो निकाल रहे उस समय जनता ने उनका जमकर विरोध किया व मुर्दाबाद के नारे लगाये। अरुण गोविल वापस जाओ-वापस जाओ के नारे भी देर तक लगाये गये। उनके रथ को स्थानीय लोगों ने जबरन रोक भी लिया। प्रदर्शनकारी भाजपा व अरुण गोविल के विरुद्ध नारेबाज़ी करते समय अपने हाथों में चुनाव बहिष्कार के पोस्टर लेकर रथ के आगे खड़े हो गये। और कई जगह चुनाव बहिष्कार के पोस्टर चिपका दिये गये। प्रदर्शनकारी महिलाएं चुनाव बहिष्कार के पोस्टर लेकर प्रचार रथ के आगे आईं और ग़ुस्साये लोगों ने प्रचार रथ पर चढ़ने का भी प्रयास किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही भाजपा के और भी कई उम्मीदवारों के विरोध व उनके बहिष्कार की ख़बरें प्राप्त हुई हैं।
इसी तरह मेरठ से लेकर सहारनपुर तक राजपूत समाज बड़ी बड़ी पंचायतें कर भाजपा को वोट न देने और भाजपा प्रत्याशियों का विरोध करने का आह्वान कर रहा है। पश्चिम यूपी में ठाकुर चौबीसी जो पूर्व में भाजपा का साथ देती रही है उसी ठाकुर चौबीसी ने इसबार भाजपा के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। हालांकि राजपूत समाज की नाराज़गी का कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टिकट वितरण में राजपूत समाज की अनदेखी बताया जा रहा है। राजपूत समाज गाज़ियाबाद से सांसद वी. के. सिंह का लोकसभा टिकट काटने के भी ख़िलाफ़ है। राजपूत उत्थान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सोम तो साफ़ तौर पर घोषणा कर चुके हैं कि हम भाजपा और मुज़फ़्फ़र नगर लोकसभा प्रत्याशी डॉ संजीव बालियान का खुलकर विरोध करेंगे। उनके अनुसार जब ठाकुरों को प्रतिनिधित्व ही नहीं दिया जा रहा तो राजपूत भाजपा को वोट क्यों दें? केवल राजपूत ही नहीं बल्कि त्यागी और सैनी जैसा इस क्षेत्र का प्रमुख समाज भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने कम प्रतिनिधित्व से असंतुष्ट होने की बात कर रहा है। गांव गांव इस आशय के पोस्टर लगे हैं कि पूरे पश्चिमी यूपी में इस बार ठाकुर भाजपा से आर पार करेंगे। इसी तरह सहारनपुर- दिल्ली हाईवे पर स्थित ननौता गांव में गत 7 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में राजपूत बिरादरी के लोग इकठ्ठा हुये। इस से भाजपा के भीतर खलबली मच गई। क्षत्रिय समाज की संघर्ष समिति की ओर से नानौता में आयोजित इस सम्मेलन को क्षत्रिय स्वाभिमान महाकुंभ का नाम दिया गया जिसमें पश्चिमी यूपी के कई जिलों सहित राजस्थान और हरियाणा से भी ठाकुर समाज के लोग बड़ी संख्या में पहुंचे। यहाँ तक कि भीड़ ने हाइवे को भी पूरी तरह से जाम कर दिया। इस सभा में वक्ताओं का कहना था कि उनके इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। राजनीतिक द्वेष की भावना से राजपूत समाज को कमज़ोर किया जा रहा है। इस महाकुंभ में सम्राट मिहिर भोज और लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाया गया। ग़ौर तलब है कि गुर्जर और ठाकुर समाज के लोग सम्राट मिहिर भोज पर अपनी-अपनी जाति का होने का दावा करते आ रहे हैं। जिसे लेकर दोनों ही समाज में एक दूसरे के प्रति असंतोष है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में और भी कई जगह इस तरह की महापंचायत करने का निर्णय लिया गया है। उत्तरांचल में अनेक लोगों ने गंगा किनारे खड़े होकर भाजपा को हारने का संकल्प लिया। उनका असंतोष अंकिता भंडारी को न्याय न मिलने और अग्निवीर योजना लागु करने को लेकर था।
हरियाणा के भी कई क्षेत्रों में न केवल भाजपा का विरोध हो रहा है बल्कि सत्ता में भाजपा की मनोहर लाल खट्टर सरकार की लगभग चार वर्षों तक सहयोगी रही जननायक जनता पार्टी (जजपा) का भी जमकर विरोध किया जा रहा है। ग्रामीण इन्हें किसान विरोधी पार्टी के रूप में देख रहे हैं। हरियाणा के जींद ज़िले के दुराना गांव के ग्रामीणों ने गांव के बाहरी इलाक़े में एक साइन बोर्ड लगाया हुआ है जिस पर स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है कि बीजेपी-जेजेपी नेताओं को इस गांव में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला करते हैं। उन्हें भी 2020-21 में हुये किसान आंदोलन के दौरान उनके अपने ही निर्वाचन क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति किसानों ने नहीं दी थी। संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ़ से तो भारतीय जनता पार्टी के सभी उम्मीदवारों का विरोध करने का निर्णय लिया जा चुका है। ख़बरों के अनुसार इसतरह के व्यापक विरोध को देखते हुए पार्टी नेताओं ने ग्रामीण क्षेत्रों के दौर भी बंद कर दिए हैं। हरियाणा के ही ग्राम पंचायत खिड़वाली में गांव के प्रवेश द्वारा पर लगे एक बोर्ड पर ग्रामवासियों ने लिखा है कि ग्राम पंचायत खिड़वाली बी जे पी व जे जे पी के नेताओं का बहिष्कार करती है। गांव में घुसने पर जान माल के ख़ुद ज़िम्मेदार होंगे। पंजाब,हरियाणा सहित और भी कई राज्यों में भाजपा के इसी तरह के खुले विरोध की ख़बरों के बीच यह ख़बर भी आ रही है कि जहाँ विरोध नहीं भी हो रहा वहां भाजपा नेताओं को सुनने के लिये भीड़ भी नहीं इकट्ठी हो रही। कई जगह पैसे देकर मज़दूरों के हाथों में भाजपा के झंडे थमा कर उन्हें रैलियों में शामिल किया जा रहा है। ऐसे हालात में यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि चार सौ पार का नारा देने वाली भाजपा को आख़िर इस तरह के व्यापक विरोध व बहिष्कार का सामना क्यों करना पड़ रहा है ?

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