विजय विनीत
उत्तर प्रदेश के बनारस की एक पॉश कॉलोनी अशोक विहार एक की गृहणी ऋचा सिंह व्यंजनों की शौकीन हैं। वह अपने घर में तरह-तरह का खान-पकवान और सूप, करी, चटनी बनाने में लहसुन का इस्तेमाल करती हैं। लहसुन का दाम इन दिनों आसमान पर है, जिससे उनके माथे पर की चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं।
चिंता की एक और बड़ी वजह है चाइनीज लहसुन। ऋचा कहती हैं, “हर आदमी की रसोई से लहसुन गायब है। जुलाई 2022 में पांच किलो सब्जी के लिए हमे हर रोज सिर्फ 220 रुपये ही चुकाने पड़ते थे और इस साल यह बजट बढ़कर 440 रुपये हो गया है।
सिर्फ लहसुन ही नहीं, अदरक, प्याज और टमाटर भी आंख तरेर रहे हैं। बाजार में लहसुन का फुटकर रेट 350 से 400 रुपये तक पहुंच गया है। इसे खरीदने से पहले अब हमें सोचना पड़ रहा है।”
लहसुन की महंगाई की चिंता सिर्फ ऋचा को ही नहीं, घर चलाने वाली मध्यमवर्गीय हर गृहणी की है, जिनकी रसोई का बजट मसाला वाली सब्जियों ने बिगाड़ दिया है। लहसुन, अदरक, प्याज और दूसरी हरी सब्जियों के रेट इतने अधिक बढ़ गए हैं कि महीना चला पाना मुहाल हो गया है।
कुछ बरस पहले की बात है जब किसानों को लहसुन की खेती का खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया था। वही लहसुन अब आंखें तरेर रहा है। ऐसा नहीं है कि सारा मुनाफा किसानों के पास जा रहा है। जानकारों का मानना है कि देसी लहसुन के दाम को आसमान पर पहुंचाने और चाइनीज लहसुन को बाजार में फ्लोट करने में बिचौलियों का हाथ है।
लहसुन की कीमतें सेब, नासपाती, अनार, अनन्नास से भी ऊपर क्यों है, इसका किसी के पास मुकम्मल जवाब नहीं है? भारत में जब चाइनीज लहसुन की बिक्री को भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है तो इसे खुलेआम बाजारों में कैसे बेचा जा रहा है?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से आने वाला यह लहसुन नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते अवैध रूप से उत्तर प्रदेश पहुंच रहा है। लहसुन के कुछ कारोबारी इसे सिर्फ 50 रुपये प्रति किलो के भाव से नेपाल-बांग्लादेश के रास्ते लाते हैं और यहां के बाजारों में 300 रुपये किलो तक बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
यही लहसुन फुटकर बाजार में 400 रुपये किलो के दाम पर बिक रहा है। इसकी मांग इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि इसे छीलने में आसानी होती है और इसका दाना मोटा होता है। जब देसी लहसुन की कीमतें आसमान छू रही हों, तब सस्ता चाइनीज लहसुन आम उपभोक्ताओं को आकर्षित कर रहा है।
चाइनीज लहसुन से अधिक मुनाफा कमाने की चाहत के कारण भारत-नेपाल सीमा पर इसकी तस्करी हाल के दिनों में तेजी से बढ़ गई है। महाराजगंज की कस्टम टीम ने पिछले तीन महीनों में 9,300 किलो चाइनीज लहसुन जब्त किया है। हाल ही में 1,600 किलो चाइनीज लहसुन को नष्ट भी किया गया है।
गरमाया चाइनीज लहसुन का मुद्दा
चाइनीज लहसुन का मुद्दा हाल ही में तब गरमा गया जब एक अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने लखनऊ के चिनहट बाजार से खरीदा गया चाइनीज लहसुन हाईकोर्ट में पेश किया। इस मामले में जज ने कड़ी नाराजगी जताते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
जज का सवाल था कि जब देश में इस पर प्रतिबंध है, तो यह यूपी के बाजारों में कैसे बिक रहा है?
न्यायमूर्ति राजन रॉय और ओपी शुक्ला की बेंच ने केंद्र सरकार के वकील से भी पूछा कि ऐसे उत्पादों के देश में प्रवेश को रोकने के लिए क्या तंत्र है और क्या इस दिशा में कोई कदम उठाए गए हैं? कोर्ट ने यह भी पूछा है कि सरकार इस समस्या को कैसे रोकने का प्रस्ताव रखती है?
अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि चीनी लहसुन कीटनाशकों और रसायनों का उपयोग करके पैदा किया जाता है और यह कैंसरकारी है। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि यह भारत की गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करता है।
आसमान छू रही लहसुन की कीमतों के बीच नेपाल के जरिए भारत में चाइनीज लहसुन की तस्करी एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के महराजगंज में भारत-नेपाल सीमा पर कस्टम अधिकारियों ने चाइनीज लहसुन की एक बड़ी खेप पकड़ी है।
यह लहसुन, जिसे चीन से अवैध रूप से भारत लाया जा रहा था, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हुआ क्योंकि जांच में इसमें फंगस पाया गया। चाइनीज लहसुन पर 2014 से भारत में प्रतिबंध है, फिर भी इसे नेपाल के रास्ते तस्करी कर भारतीय बाजारों में बेचा जा रहा है। इसकी अवैध आपूर्ति पर देश के कई हिस्सों में व्यापारियों और किसानों ने विरोध जताया है।
किसानों की मुश्किलें बढ़ीं
चंदौली शहाबगंज प्रखंड के खिलची गांव के प्रगतिशील किसान राम अवध सिंह कहते हैं, “चाइनीज लहसुन की तस्करी से न सिर्फ बाजार में अव्यवस्था फैल रही है, बल्कि देसी किसानों की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। जिन किसानों ने मेहनत से अपनी फसल तैयार की, वे महंगे बीज, पानी की कमी, और अन्य समस्याओं से पहले ही जूझ रहे हैं।
अब चाइनीज लहसुन के अवैध बाजार में घुसने से उनकी मेहनत का सही मुनाफा मिलना और भी मुश्किल हो गया है। लहसुन के कुछ कारोबारी और बिचौलिये इसे नेपाल-बांग्लादेश के रास्ते सस्ते दामों में लाकर, भारी मुनाफा कमाने में लगे हैं।”
उत्तर प्रदेश के महराजगंज के नौतनवा में 11 सितंबर, 2024 को कस्टम विभाग ने करीब 1400 बोरी चाइनीज लहसुन जब्त कर उसे गड्ढे में डालकर आग लगा दी थी। लेकिन इस तस्करी के खेल में गांव वाले भी पीछे नहीं थे, वो लहसुन लूटने में लग गए। यह लहसुन चीन से आया था और नेपाल के ज़रिए यूपी के बाजारों में पहुंच रहा था, सुरक्षा एजेंसियों ने इसे जब्त किया।
पर सवाल ये उठता है कि अगर चाइनीज लहसुन पर 2014 से बैन है, तो ये यूपी के बाजारों में खुलेआम कैसे बिक रहा है?
चाइनीज लहसुन का नाम ही इसके देश से जुड़ा है,चीन। चीन में इस लहसुन की बड़ी मात्रा में पैदावार होती है और वहां से इसे दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। नेपाल और बांग्लादेश के रास्तों से ये यूपी तक पहुंचता है, जहां इसे अवैध तरीके से लाकर बेचा जाता है।
व्यापारी इसे 50 रुपये प्रति किलो के भाव पर लाते हैं और यूपी के बाजारों में 300 से 400 रुपये किलो तक बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। माना जा रहा है कि चाइनीज लहसुन की तस्करी यूपी में एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसमें सीमाओं की ढिलाई और प्रशासन की सुस्ती साफ नजर आती है।
कुछ रोज पहले ही बहराइच में भारत-नेपाल सीमा पर चाइनीज लहसुन की हो रही तस्करी के विरोध में जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व महासचिव विनय सिंह की अगुवाई में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने रूपईडीहा रोडवेज बस अड्डे से सीमावर्ती क्षेत्र तक रैली निकाली।
विनय ने मीडिया से बातचीत में शिकायत दर्ज कराई और दावा किया कि, “मौजूदा समय नेपाल के रास्ते चीन से आ रही भारी मात्रा में लहसुन की तस्करी का धंधा स्थानीय अधिकारियों की संरक्षण में फलफूल रहा है। इससे जिले में देशी लहसुन का बाजार समाप्त होने के कगार पहुंच गया है।
रैली के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामदीन गौतम, रविंद्र स्वरूप, रमेशचंद्र मिश्रा, रामसागर आर्य, अब्दुल अजीज आदि ने नानपारा के उप जिलाधिकारी अश्वनी पांडेय को ज्ञापन सौंपा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी, महाराजगंज, बहराइच, गोरखपुर के अलावा लखनऊ जैसे बड़े शहरों में सब्जी और मसालों के कुछ कारोबारी बिना किसी डर के ये लहसुन बेच रहे हैं। हालांकि सरकार की नज़र में ये तस्करी कोई नई बात नहीं है, पर कार्रवाई की कमी के कारण ये अवैध व्यापार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
व्यापारी इसे सस्ते दामों पर लाकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं, और इसमें प्रशासन की उदासीनता भी एक बड़ी समस्या है। इस लहसुन की डिमांड इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इसे छीलने में आसानी होती है और इसका दाना मोटा होता है, जो आमतौर पर देसी लहसुन से अलग दिखता है।
लेकिन सस्ता होने की वजह से लोग इसे आसानी से खरीद रहे हैं, खासकर तब जब देसी लहसुन की कीमतें आसमान छू रही हैं।
सरकारी कार्रवाई का अभाव
भारत-नेपाल सीमा पर तैनात कस्टम विभाग के डीसी वैभव सिंह कहते हैं, “पिछले एक महीने (अगस्त-सितंबर) में लगभग 16 टन चाइनीज लहसुन जब्त किया गया है। सुरक्षा एजेंसियों को यह जानकारी मिली थी कि नेपाल में बड़ी मात्रा में चाइनीज लहसुन डंप किया गया है, जिसके बाद भारत-नेपाल सीमा पर निगरानी बढ़ा दी गई।
21 सितंबर 2024 को सीमा शुल्क लखनऊ के अधिकारियों ने फूलपुर-प्रयागराज राजमार्ग पर चेकिंग के दौरान दो ट्रकों को रोका। इन ट्रकों में 23 टन तस्करी का चाइनीज लहसुन मिला। जिसकी कीमत लगभग 96 लाख रुपये आंकी गई है।
अधिक उपज के लिए अत्यधिक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग, जिसमें मिथाइल ब्रोमाइड का इस्तेमाल फफूंद से बचाने के लिए किया जाता है। चाइनीज लहसुन की गुणवत्ता भारत के मानकों पर खरी नहीं उतरती। यह टेस्ट में फेल हो चुका है। चाइनीज लहसुन का लैब टेस्ट करने पर यह फंगस से संक्रमित पाया गया, जिसके चलते इसे भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था।”
बनारस में उद्यान विभाग के उप निदेशक रहे अनिल सिंह कहते हैं, “चाइनीज लहसुन की बड़ी मात्रा में पैदावार चीन में होती है, और इसे उगाने में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। साथ ही, चीन में सस्ता श्रम होने के कारण इनकी उत्पादन लागत कम होती है।
यही कारण है कि चाइनीज लहसुन दूसरे देशों में भेजने पर भी सस्ते दामों पर बिकता है। उत्तर प्रदेश में कुछ कारोबारी इसे नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों से चोरी-छिपे 50 से 70 रुपये प्रति किलो में खरीदते हैं, और फिर इसे यूपी के बाजारों में 250 से 300 रुपये प्रति किलो तक बेचते हैं।
उपभोक्ताओं को यही लहसुन 400 रुपये किलो के भाव खरीदना पड़ सकता है। चूंकि मुनाफा चार से पांच गुना होता है, इसलिए कुछ कारोबारी चाइनीज लहसुन बेचने में अधिक रुचि रखते हैं।
आम लोगों को चाइनीज और देसी लहसुन में फर्क पता नहीं होता, इसलिए लोग चाइनीज लहसुन को भी देसी लहसुन के दामों पर खरीद लेते हैं। यही वजह है कि व्यापारी आसानी से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं और तस्करी का यह खेल धड़ल्ले से जारी है।”
उद्यानविद अनिल बताते हैं, “भारत सरकार ने साल 2014 में चाइनीज लहसुन के आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। चाइनीज लहसुन बार-बार इन टेस्ट में फेल होता रहा है। इसके नमूनों में ऐसे केमिकल्स और सिंथेटिक पदार्थ पाए गए, जो इंसान के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं”।
“यह भारत के खानपान मानकों पर खरा नहीं उतरता है, इसलिए इसे बैन करना जरूरी समझा गया। देसी लहसुन की गुणवत्ता बेहतर होने के बावजूद इसकी ऊंची कीमतें इसकी बिक्री में बाधा डाल रही थीं। चाइनीज लहसुन की कम कीमतें भारतीय किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही थीं”।
“देसी लहसुन की गुणवत्ता बेहतर होने के बावजूद इसकी ऊंची कीमतें इसकी बिक्री में बाधा डाल रही थीं। व्यापारी सस्ता चाइनीज लहसुन लाकर बेचने में लगे हुए थे, जिससे भारतीय किसानों का लहसुन नहीं बिक पा रहा था”।
“इसका असर देश की लहसुन की खेती पर पड़ रहा था, इसलिए किसानों को बचाने के लिए चाइनीज लहसुन पर बैन लगाया गया।”
“रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल खाने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है, जिससे कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। भारत में आयात होने वाले किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता की जांच की जाती है।
चाइनीज लहसुन बार-बार इन टेस्ट में फेल होता रहा है। इसके नमूनों में ऐसे केमिकल्स और सिंथेटिक पदार्थ पाए गए, जो इंसान के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। यह भारत के खानपान मानकों पर खरा नहीं उतरता है, इसलिए इसे बैन करना जरूरी समझा गया।”
चाइनीज लहसुन के लिए छापेमारी
चीन के लहसुन की भारत में बिक्री का एक बड़ा खुलासा तब हुआ जब गुजरात के राजकोट में चीन के लहसुन के 30 बैग मिले। ये लहसुन गोंडल के एग्रीकल्चर मार्केट प्रोड्यूस कमिटी (एपीएमसी) में पाए गए, जिससे वहां हंगामा मच गया।
व्यापारियों ने इस प्रतिबंधित चीनी लहसुन के मिलने के विरोध में ऑक्शन रोक दिया और बाजार में चीनी लहसुन की गैरकानूनी सप्लाई के खिलाफ एक दिन का प्रोटेस्ट भी किया।
व्यापारियों के विरोध-प्रदर्शन के बाद, गुजरात सरकार ने पूरे राज्य के बाजारों की जांच करने के आदेश दिए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वहां कहीं अवैध तरीके से चीनी लहसुन की सप्लाई नहीं की गई है।
महराजगंज जिले में भारत-नेपाल सीमा पर कस्टम विभाग ने 16 टन चाइनीज लहसुन को जब्त किया, जिसे स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक माना गया। लैब टेस्ट में इस लहसुन में फंगस पाया गया था, जिसके बाद इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। कस्टम विभाग ने इसे नष्ट करने के उद्देश्य से मिट्टी में दबा दिया।
अधिकारी जब मौके से हटे, तो स्थानीय गांव के बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं तुरंत वहां पहुंच गए और मिट्टी खोदकर चाइनीज लहसुन निकालने लगे। इस घटना के बाद लहसुन निकालने के लिए ग्रामीणों में होड़ मच गई।
यह स्थिति इस बात को दर्शाती है कि भले ही चाइनीज लहसुन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो, लेकिन इसकी कीमत और उपलब्धता इसे बाजार में धकेलने के लिए मजबूर कर रही है।
कस्टम के लखनऊ कमिश्नरेट के अफसरों ने कुछ दिन पहले बाराबंकी के रामसनेही घाट पर 10 टन चाइनीज लहसुन को जब्त कर एक गाड़ी सीज की। लेकिन, अभी भी इसे नष्ट नहीं कराया गया है। कस्टम की दलील है कि रिपोर्ट का इंतजार है। जबकि, इससे पहले भी चीनी लहसुन के पकड़े जाने के मामले आए, लेकिन वह भी नष्ट नहीं करवाए गए।
कस्टम विभाग चीनी लहसुन जब्त करने के बाद सैंपल कृषि विभाग के पौध संरक्षण निदेशालय को भेजता है, जो कि लैब में जांच करवाने के बाद कस्टम विभाग को चीनी लहसुन नष्ट कराने को कहता है। पौध संरक्षण निदेशालय के संयुक्त निदेशक जीपी सिंह का कहना है कि हमने पूर्व में भी चीनी लहसुन के सैंपल की जांच करवाकर उसे नष्ट कराने की रिपोर्ट दी।
यह भी लिखा कि जब्त चीनी लहसुन को उनके सुपरविजन में नष्ट कराया जाए। लेकिन, कस्टम विभाग की तरफ से चीनी लहसुन नष्ट कराने के लिए उनके पास कोई संदेश नहीं आया है।
लखनऊ कस्टम कमिश्नरेट को सप्ताह भर पहले 23 टन चीनी लहसुन को जब्त करने में एक और बड़ी सफलता मिली है। कस्टम विभाग के अफसरों के मुताबिक 21 सितंबर को मुखबिर से सूचना मिलने के बाद नेपाल से तस्करी कर दो ट्रकों में लाए जा रहे 230 क्विंटल यानी 23 टन चीनी लहसुन को पकड़ा है।
बताया कि अफसरों ने फूलपुर-प्रयागराज हाईवे पर चीनी लहसुन से भरे ट्रक पकड़े। लखनऊ कस्टम (प्रिवेंशन) कमिश्नरेट की तरफ से बताया गया कि आयातित सूचना पर उन्हें कस्टम एक्ट 1962 के जरिये कार्रवाई करने का अधिकार है।
महाराजगंज जनपद में कस्टम विभाग की टीम ने पिछले तीन महीनों में 9,300 किलो चाइनीज लहसुन को जब्त किया है। हाल ही में 1600 किलो लहसुन को नष्ट भी किया गया है।
चाइनीज लहसुन के मुद्दे पर चर्चा तब और बढ़ गई जब लखनऊ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद चाइनीज लहसुन पर बहस शुरू हो गई है।
दो-तरफा धंधा करते हैं तस्कर
गोरखपुर के सीनियर जर्नलिस्ट मनोज सिंह कहते हैं, “नेपाल के सीमावर्ती जिले महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बहराइच के बाजारों में पूर्वांचल के हर छोटे-बड़े बाजारों में पहुंच रहा है। भारतीय लहसुन 260-300 रुपये प्रति किलो के भाव में बिक रहा है, जबकि चाइनीज लहसुन केवल 100 से 150 रुपये प्रति किलो में उपलब्ध है”।
उन्होंने कहा, “इस असमान कीमत का फायदा तस्कर उठा रहे हैं और खुली सीमा का लाभ लेकर नेपाल से भारी मात्रा में चाइनीज लहसुन भारतीय बाजारों में पहुंचा रहे हैं।”
मनोज कहते हैं, “तस्कर दोतरफा धंधा करते हैं। जिन सामानों के दाम में दोनों देशों में उछाल आता है, नेपाल-भारत के बीच तस्करी शुरू हो जाती है। इन दिनों लहसुन की तस्करी इस लिए बढ़ गई है क्योंकि भारतीय बाजार में इसकी कीमतें आसमान छू रही हैं। दरअसल, देसी लहसुन आकार में छोटा होता है। इसका छिलका मोटा होता है। रंग सफेद होता है और खाने में तीखापन और तेज महक होती है”।
“देसी लहसुन की कलियां गंध और स्वाद में तेज होती हैं, और इनमें औषधीय गुण होते हैं। चाइनीज लहसुन, आकार में बड़ा होता है। महक हल्की होती है, रंग सफेद से हल्का गुलाबी तक होता है, और स्वाद में तीखापन नहीं होता। सेहत के लिहाज से चाइनीज लहसुन अच्छा नहीं माना जाता है।”
पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी बनारस के पहड़िया में लगती है, जिसे लालबहादुर शास्त्री नवीन फल और सब्जी मंडी के नाम से जाना जाता है। इस मंडी में करीब आठ आढ़ती लहसुन का कारोबार करते हैं, जिसमें इमरान सबसे बड़े कारोबारी हैं।
वह कहते हैं, “चाइना प्रतिबंधित हो गया है तब से अफगानिस्तान, नेपाल का लहसुन आ रहा है। पहले पाकिस्तान से भी लहसुन आता था, लेकिन कई सालों से एक्सपोर्ट बंद है। पहड़िया मंडी में फिलहाल रोजाना दो-तीन ट्रक लहसुन की खपत होती है।
थोक बाजार में इसकी कीमत 260-270 रुपये है। अगर कोई खुले बाजार में 400 रुपये प्रति किलो के भाव से बेच रहा है तो उसके लिए हम कुछ नहीं कह सकते। हमें लगता है कि मध्य प्रदेश में जब लहसुन की फसल पकने लगेगी, इसकी कीमतें घट जाएंगी।
वाराणसी जिला प्रशासन ने कुछ दिन पहले पहड़िया मंडी में लहसुन के कारोबारियों के यहां जांच कराई थी, लेकिन किसी के पास चाइनीज लहसुन बरामद नहीं हुआ।”
पहड़िया मंडी के अध्यक्ष धनंजय मौर्य कहते हैं, “हमारी मंडी में चाइनीज लहसुन की बिक्री नहीं हो रही है। बाजार में चाइनीज लहसुन कहां से पहुंच रहा है, हम कह नहीं सकते? संभव है कि मुनाफे के लिए कुछ लोग इसे बेचने में अधिक रुचि ले रहे हों।
“पहड़िया मंडी का रुतबा पहले की तरह नहीं रह गया है। अब छोटी-छोटी मंडियों में सीधे माल पहुंचने लगा है।” दूसरी ओर, फुटकर सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि बनारस की सब्जी मंडियों से ही चाइनीज लहसुन उपलब्ध हो रहा है, इसलिए मजबूरी में उन्हें भी यही बेचना पड़ता है।
सेहत के लिए हानिकारक चीनी लहसुन
बनारस के पंचकोसी मंडी में सब्जियों की खरीदारी करने आए एक ग्राहक संजय सिंह ने “जनचौक” से कहा, “जब वे लहसुन लेने जाते हैं, तो कुछ दुकानदार उन्हें चाइनीज लहसुन ही देते हैं। बाद में जब वे इसे खरीदकर वापस जाते हैं, तब पता चलता है कि यह तो देसी नहीं, बल्कि चीनी लहसुन है।
“सस्ते दाम के कारण चाइनीज लहसुन पूरे बाजार में धड़ल्ले से बिक रहा है, जिससे मजबूरीवश ग्राहकों को इसे खरीदना पड़ रहा है। भले ही उन्हें पता हो कि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लेकिन फिर भी वे चाइनीज लहसुन खरीदने के लिए विवश हैं।”
“देसी लहसुन की कलियां छोटी होती हैं, और इसके छिलके में दाग-धब्बे हो सकते हैं। इसका छिलका ज्यादा सफेद नहीं होता, और निचले हिस्से में दाग सा दिखाई देता है। देसी लहसुन की गंध तीखी और अधिक प्रभावशाली होती है, जबकि चाइनीज लहसुन की गंध हल्की होती है।
“चाइनीज लहसुन आकार में सुंदर और बड़ा होता है, छिलने में आसान और पूरी तरह सफेद दिखता है, लेकिन इसका स्वाद देसी लहसुन जितना अच्छा नहीं होता।”
चाइनीज लहसुन को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। बनारस के जाने-माने फीजिशियन डा. कुमार भास्कर करते हैं, “चाइनीज लहसुन प्राकृतिक तरीके से नहीं उगाया जाता, बल्कि इसमें आर्टिफिशियल तरीके और रासायनिक खादों का इस्तेमाल होता है। इसके कई साइड इफेक्ट्स होते हैं, जैसे गैस्ट्राइटिस, पेट में सूजन, और कैंसर का खतरा”।
“यही कारण है कि भारत में इसे प्रतिबंधित किया गया है। यदि आप अपने भोजन में लहसुन का उपयोग कर रहे हैं, तो सतर्क हो जाइए क्योंकि संभव है कि जो लहसुन आप बाजार से खरीद रहे हैं, वह चीन से आया हो, जो आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। इस मुद्दे पर नियंत्रण और जनजागरूकता की आवश्यकता महसूस की जा रही है।”
“चाइनीज लहसुन के उत्पादन में अत्यधिक केमिकल्स, मेटल, लेड और क्लोरीन का उपयोग किया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदायक हैं। चिकित्सकों के अनुसार, इस लहसुन का सेवन लीवर और किडनी पर बुरा प्रभाव डाल सकता है, साथ ही यह पाचन तंत्र को भी कमजोर कर सकता है। इसलिए उपभोक्ताओं को चाइनीज लहसुन के सेवन से बचने और देसी लहसुन का चयन करने की सलाह दी जाती है।”
तस्करी नहीं रुकी तो रोएंगे किसान
फेडरेशन ऑफ राजस्थान ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज के प्रमुख सुरेश अग्रवाल का कहना है कि “अगर तस्करी इसी तरह जारी रही, तो भारतीय लहसुन उत्पादक गंभीर आर्थिक नुकसान झेलेंगे। साथ ही, उपभोक्ताओं को सस्ते के चक्कर में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है”।
“चीन के लहसुन में सल्फ़र कम है। भारत के लोग ऐसा लहसुन पसंद नहीं करते हैं। हालांकि दक्षिण भारत में लोग इसे ख़ूब पसंद करते हैं क्योंकि उसकी कली बड़ी होती है। छीलने में परेशानी भी नहीं होती है और एक कली में काम हो जाता है। भारत के लहसुन में सल्फ़र ज़्यादा है”।
“अमेरिका, भारत के लहसुन का इस्तेमाल नहीं करता है। ओमान और दुबई जैसी जगहों पर भारत का लहसुन पसंद किया जाता है। चाइनीज लहसुन के बढ़ते प्रचलन के चलते 10 सितंबर 2024 को गुजरात के राजकोट जिले के गोंडल स्थित कृषि उपज बाजार समिति (APMC) में कारोबारियों ने इसकी अवैध आपूर्ति का विरोध किया था।”
सुरेश अग्रवाल यह भी कहते हैं, “भारत में इस वर्ष बाढ़ और भारी बारिश के कारण लहसुन की पैदावार प्रभावित हुई है, जिससे इसकी कीमतें आसमान छू रही हैं। भारतीय बाजार में लहसुन की बढ़ती मांग और ऊंची कीमतों का फायदा उठाकर तस्कर नेपाल के रास्ते चीन से लहसुन भारत ला रहे हैं”।
“नेपाल से लाया गया चाइनीज लहसुन भारतीय बाजारों में तेजी से फैल रहा है, जहां इसकी कीमत भारतीय लहसुन की तुलना में बहुत कम है। बॉर्डर पार से अवैध तरीके से कोई भी कृषि उत्पाद देश में दाखिल न हो इसके लिए पौध सरंक्षण निदेशालय की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी है। जांच कर सीज करने का अधिकार भी है। लेकिन, कस्टम व पौध संरक्षण विभाग की लापरवाही की वजह से नेपाल बॉर्डर से चीनी लहसुन की तस्करी जारी है।”
भारत में राजू पन्नालाल कुमावत लहसुन के सबसे बड़े कारोबारी हैं। उन्हें ‘लहसुन किंग’ के नाम से जाना जाता है। वह कहते हैं, “इंटरनेशनल मार्केट में इस साल लहसुन की काफ़ी अच्छी फ़सल हुई है। भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है चीन से आया हुआ लहसुन”।
“यूरोप में चीन का माल ही चलता है। मौजूदा हालात में ‘ट्रांसपोर्टिंग’ की वजह से लहसुन का निर्यात या तो बहुत ही कम या फिर नहीं के बराबर हो पा रहा है। भारत का लहसुन निर्यात नहीं हो पा रहा है इसलिए तुर्की के पास के देश उससे ख़रीद रहे हैं। चीन का माल यूरोप जा रहा है।”
बिहार से भी हो रही तस्करी
सिर्फ यूपी ही नहीं, बिहार में नेपाल के रास्ते चाइनीज लहसुन की तस्करी हो रही है। बिहार के किशनगंज सीमांचल में, चाइनीज लहसुन की तस्करी तेजी से बढ़ रही है। यह लहसुन नेपाल के खुले बॉर्डर का फायदा उठाकर भारत में प्रवेश कर रहा है।
इंडो-नेपाल बॉर्डर पर तैनात सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) 51वीं बटालियन के जवानों ने गुप्त सूचना पर दो तस्करों के पास से 5121 किलो ग्राम चाइनीज लहसुन बरामद किया। लहसुन की अनुमानित कीमत लगभग 21.80 लाख है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चाइनीज लहसुन की तस्करी दो प्रमुख तरीकों से हो रही है। पहला तरीका साइकिल सवार तस्करों द्वारा किया जाता है, जो नेपाल की खुली सीमा का लाभ उठाकर अपनी साइकिलों में 30 किलो की बोरी भरकर भारत लाते हैं।
ये तस्कर अक्सर सब्जियां (जैसे आलू और प्याज) नेपाल ले जाते हैं और वापसी में लहसुन लाते हैं। दूसरा तरीका बड़े ट्रकों का उपयोग करके पानीटंकी सीमा से भारत में लहसुन की खेप भेजना है।
भारत में इस साल लहसुन की पैदावार में कमी आई है। बारिश और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने लहसुन उत्पादक क्षेत्रों में उत्पादन को प्रभावित किया, जिससे लहसुन की आपूर्ति कम और दाम अधिक हो गए। इसका फायदा उठाते हुए तस्कर नेपाल के रास्ते सस्ता चाइनीज लहसुन भारतीय बाजारों में ला रहे हैं।
भारतीय लहसुन जहां 300-400 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, वहीं चाइनीज लहसुन 100-150 रुपये प्रति किलो के बीच मिल रहा है, जो इसे अधिक आकर्षक बनाता है। बनारस की पहड़िया मंडी के एक कारोबारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि चीन, अफगानिस्तान और ईरान से आए लहसुन ने बाज़ार ख़राब कर दिया है। पिछले दो सालों से मध्य प्रदेश में लहसुन की बंपर फ़सल हुई है जिसने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
“सरकारी नीतियां ख़राब हैं”
निर्यातक खेती-बाड़ी के संपादक जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं, “सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के चलते चाइनीज लहसुन की तस्करी बढ़ी है। चीन के लहसुन को लेकर कई राज्यों में व्यापारियों और किसानों का गुस्सा भड़क उठा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, और गुजरात की मंडियों में व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन किया और सरकार से अवैध आपूर्ति पर कड़ी कार्रवाई की मांग की।
“बड़ा सवाल यह है कि भारत में चाइनीज लहसुन पर प्रतिबंध के बावजूद यह बाजारों में कैसे पहुंच रहा है? नंगा सच यह भी है कि चाइनीज लहसुन की तस्करी को रोकना भारतीय सुरक्षा एजेंसियों और कस्टम विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस पर सख्त कार्रवाई करनी होगी ताकि चाइनीज लहसुन की तस्करी पर रोक लग सके और भारतीय लहसुन उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा की जा सके।”
कृषि पत्रकार कुशवाहा कहते हैं, “लहसुन (एलियम सैटिवम) प्याज के बाद सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली दूसरी महत्वपूर्ण बल्ब वाली फसल है। इसका वैश्विक योगदान लगभग 14% है, और यह पूरी दुनिया के कुल क्षेत्रफल के 5% हिस्से में उगाया जाता है”।
“हालांकि, उत्पादन में भी इसका योगदान 5% ही है। भारत लहसुन के क्षेत्रफल और उत्पादन दोनों में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, लेकिन यहां की उत्पादकता बहुत कम है, जो केवल 5.29 टन प्रति हेक्टेयर है। साल 2010-11 में भारत में लहसुन का क्षेत्रफल 200.70 हजार हेक्टेयर और उत्पादन 1061.85 हजार टन था”।
“भारत के मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उड़ीसा, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, और बिहार में लहसुन की खेती बड़े पैमाने पर होती है। भारतीय लहसुन अब पाकिस्तान, थाईलैंड, अमेरिका, नेपाल, मलेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों में भी निर्यात किया जाता है। भारत लहसुन का एक प्रमुख निर्यातक देश है, और यहां से लहसुन कतर, सऊदी अरब, जाम्बिया, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसे देशों में भेजा जाता है।”
“हमें लगता है कि इस साल भारत में लहसुन उत्पादक क्षेत्रों में बारिश और बाढ़ के चलते लहसुन की पैदावार कम हुई। हाल के वर्षों में देश में लहसुन उत्पादन घटा है। इसलिए लहसुन के दाम अधिक हैं। इसका फायदा उठाकर भारत में चाइनीज लहसुन को डंप किया जा रहा है”।
“भारत-नेपाल सीमा पर आवाजाही आसान होने से चाइनीज लहसुन की भारत में तस्करी हो रही है और यह देश की मंडियों में पहुंच रहा है। हाल के वर्षों में भारत में लहसुन की खेती के क्षेत्रफल और उत्पादन में वृद्धि देखी गई है, खासकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में”।
“लहसुन का व्यवसायिक उत्पादन बढ़ने के बावजूद, किसानों को उन्नत किस्मों, बेहतर कृषि-तकनीकों और कीट-नियंत्रण उपायों के बारे में जानकारी की कमी होने के कारण उत्पादकता में वृद्धि सीमित हो रही है। इसके अलावा, अपर्याप्त बाजार समर्थन भी लहसुन उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।”
भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में पूरे भारत में 3.1 अरब मिट्रिक टन लहसुन की फ़सल हुई है, जिसमें अकेले मध्य प्रदेश का योगदान 70 प्रतिशत का है”।
“इस साल फ़सल और भी ज़्यादा हुई है। भारत में सबसे ज़्यादा लहसुन की खेती मध्य प्रदेश में ही होती है। इसके बाद राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में इसकी पैदावार होती है। मंदसौर की मंडी के व्यापारी बताते हैं कि जो खेती मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होती है उसकी गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है और मांग भी”।
“लेकिन मंडी में मौजूद किसान कहते हैं पिछले तीन सालों से लहसुन की पैदावार की उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाया था। मगर इस साल तो लहसुन के भाव इतने ज़्यादा गिर गए हैं कि किसानों को उसे पैदा करने में आई लागत भी नहीं मिल पा रही है।”
खेती का रकबा घटा
लहसुन विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मध्य प्रदेश में लहसुन की खेती व्यापक स्तर पर की जाती है, जहां इसका क्षेत्रफल लगभग 60,000 हेक्टेयर है और उत्पादन 2.7 लाख टन तक पहुंचता है।
मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार और उज्जैन जैसे प्रमुख जिलों में लहसुन की खेती की जाती है। आजकल लहसुन का प्रसंस्करण कर पाउडर, पेस्ट और चिप्स तैयार किए जाते हैं, जो विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक हैं।
आंकड़ों से समझें तो 2020-21 में लहसुन का उत्पादन ज्यादा था, जिससे इसकी कीमतें कम हो गई थीं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार, 2020-21 में देश में 39,2000 हेक्टेयर में लहसुन की खेती की गई थी, जो 2021-22 में बढ़कर 4,31,000 हेक्टेयर हो गई।
इससे उत्पादन बढ़ा और लहसुन सस्ता हो गया। लेकिन 2022-23 में लहसुन की खेती का क्षेत्र घटने के कारण इसका उत्पादन कम हो गया, जिससे इसके दाम बढ़ गए।
भारत में सबसे ज्यादा लहसुन का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है, जो देश के कुल उत्पादन का 60 से 65 प्रतिशत हिस्सा देता है। इसके बाद राजस्थान और उत्तर प्रदेश का स्थान आता है। मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2020-21 के सर्वेक्षण के अनुसार दस साल पहले तक प्रदेश की कुल 94,945 हेक्टेयर ज़मीन पर लहसुन का उत्पादन होता था।
मगर अब इसका उत्पादन इस वर्ष तक 1,93,066 हेक्टेयर तक पहुंच गया है जो कि लगभग दोगुना है। इसलिए इस बार लहसुन का उतना भाव नहीं मिल रहा है। अधिकारी कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में लहसुन काफ़ी अच्छे भाव में बिका था। इसलिए सभी किसानों ने दूसरी फ़सल नहीं लगाई और ज़्यादातर किसानों ने लहसुन ही बोया जिसकी वजह से फ़सल की पैदावार बहुत ही ज़्यादा हो गई।
क्या होगा आगे?
आने वाले दिनों में लहसुन की कीमतों में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, लेकिन यह पूरी तरह से फसल की आवक और मांग पर निर्भर करेगा। अगर अगले महीने तक लहसुन की नई खेप भरपूर मात्रा में बाजार में आ जाती है, तो दाम कम हो सकते हैं।
हालांकि, इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि लहसुन की खेती वाले इलाकों में मौसम की स्थिति कैसी रहती है, क्योंकि कृषि उत्पादन पर इसका सीधा असर पड़ता है। अभी के हालात को देखते हुए लहसुन की कीमतें फिलहाल ऊंची बनी रह सकती हैं, लेकिन आने वाले महीनों में फसल की बेहतर आवक के साथ बाजार में स्थिरता आने की संभावना है।
बनारस के प्रगतिशील किसान दशरथ मौर्य हैं, “सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के चलते लहसुन की खेती करने वाले किसान बेहाल हो रहे हैं। लहसुन की खेती किसानों के लिए उतनी आसान भी नहीं है क्योंकि इसकी लागत बढ़ती ही जा रही है”।
“महंगाई के दौर में लहसुन के उत्पादन में भी ख़र्च बढ़ गया है। मिसाल के तौर पर वे बताते हैं कि एक बीघे में लहसुन बोने से लेकर मंडी तक लाने में एक किसान को कम से कम बीस से पच्चीस हज़ार का ख़र्च आता है।”
“लहसुन की महंगाई और चाइनीज लहसुन की तस्करी ने आम आदमी और किसानों दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। इस दोहरी मार से निपटने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर देसी उत्पादों को बढ़ावा दें और सरकार इस समस्या का जल्द समाधान निकाले।”
उत्तर भारत में लहसुन मसाले वाली सब्जियों में सबसे अधिक डमांडिंग फसल है। इसकी बड़ी वजह है इसकी गुणवत्ता। बनारस के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. राममूर्ति सिंह कहते हैं, “एक लहसुन की कली रोजाना डॉक्टर से बचा सकती है। यह एक नकदी फसल है और इसमें कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं”।
लहसुन का उपयोग अचार, चटनी, मसाले और सब्जियों में बड़े पैमाने पर होता है। इसकी सुगंध और स्वाद के कारण इसे लगभग हर प्रकार के व्यंजनों में, विशेष रूप से मांस और सब्जियों में, मिलाया जाता है। इसके औषधीय गुणों के चलते इसे हाई ब्लड प्रेशर, पेट के विकार, पाचन समस्याएं, फेफड़ों की बीमारियां, कैंसर, गठिया, नपुंसकता और खून की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।”
“लहसुन को हज़ारों सालों से चमत्कारी औषधि के रूप में जाना जाता रहा है। इसके एंटीबैक्टीरियल और एंटी-कैंसर गुणों के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। भारत के अलावा बेबीलोन, यूनान, मिस्र, रोमन और चीनी लोगों द्वारा औषधीय प्रयोजनों के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है”।
“इसका इस्तेमाल प्लेग से लड़ने, गैंग्रीन को रोकने के लिए किया जाता रहा है। लहसुन में एलिसिन होता है, जो रक्त प्रवाह को बेहतर बनाता है।”