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मानव जीवन के लिए चिंता का विषय क्यों बना हुआ है जलवायु परिवर्तन?

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डॉ हिदायत अहमद खान

मानव जीवन के लिए जिस प्रकार से पंच तत्वों का उचित संयोजन आवश्यक होता है, ठीक उसी प्रकार से पृथ्वी के अस्तित्व के लिए तीन प्रमुख कारकों के संयोजन की महति आवश्यकता होती है। हमारे पृथ्वी ग्रह पर जीवन तीन कारकों के संयोजन से ही अस्तित्व में है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है सूर्य से हमारी पृथ्वी की निश्चित दूरी, इसके बाद हमारे वायुमंडल की रासायनिक संरचना और अंत में जल चक्र की सुनिश्चित उपस्थिति आती है। इन तीन कारकों में से किसी भी एक कारक के न रहने या अधिकाधिक होने पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन खतरे में पड़ सकता है। दरअसल ये तीनों कारक मिलकर हमारे ग्रह में एक ऐसी जलवायु के होने को सुनिश्चित करते हैं जो जीवन को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होते हैं। इसके लिए वैज्ञानिक व शोध कर्ताओं की मानें तो हमारी पृथ्वी पर ऐसी जलवायु होनी चाहिए जो प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण जीवन को बनाए रखने में उपयुक्त साबित हो । सामान्यत: देखा जाता है कि जब सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह पर आती हैं, तो उनका अवशोषण महज आंशिक होता है, जबकि अधिकांश किरणें तो बाहर की ओर ही परावर्तित हो जाती हैं। ऐसे में यदि वायुमंडल उपस्थित न हो तो वो अंतरिक्ष में बिखर जाएंगी। ये किरणें बिखरने की बजाय, वायुमंडल में मौजूद गैसों में फंस कर वापस पृथ्वी की ओर आती हैं। इनके प्रभाव के कारण ही इन्हें ग्रीनहाउस गैंसें कहा गया है। यह एकत्रित ऊष्मा सीधे सूर्य की किरणों से अवशोषित ऊष्मा में मिलती हैं। यहां यह बतलाना आवश्यक हो जाता है कि प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव के बिना, ग्रह पर औसत तापमान जो वर्तमान में करीब 15°सें के वर्तमान औसत के बजाय -18°सें के आसपास हो जाएगा। यह किसी के भी जीवन को नष्ट करने के लिए काफी होगा। इसलिए लंबे समय से विश्व के लिए जलवायु परिवर्तन संकट चिंता का विषय बना हुआ है।
सवाल यह है कि आखिर जलवायु परिवर्तन पृथ्वी में मानव जीवन के लिए चिंता का विषय क्यों बना हुआ है? ऐसा क्या कारण है जो हमारे जीवन के जोखिमों को बढ़ाने का काम कर रहा है और इसके निदान के लिए हमें प्रतिबद्ध करता है? यहां विचारणीय यह भी है कि जलवायु परिवर्तन कोई आज की घटना तो है नहीं, बल्कि पृथ्वी के अस्तित्व के इतिहास के साथ ही जलवायु परिवर्तन मौजूद नजर आता है। फिर आज इसे लेकर चिंता क्यों जताई जा रही है? असल में पिछले डेढ़ सौ साल में ग्लोबल वार्मिंग ने अपनी उपस्थिति जिस स्तर पर दर्ज कराई है, वह असामान्य घटना है। इसके लिए प्रकृति दोषी नहीं है, बल्कि यह तो मानव गतिविधियों का परिणाम है, जिसे लेकर दुनियां में हाय-तौबा की स्थिति निर्मित हुई है। विशेषज्ञों ने इसे ही मानवजनित ग्रीनहाउस प्रभाव करार दिया है, जो कि प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव के अतिरिक्त है। इसके लिए औद्योगिक क्रांति को प्रमुख कारण माना जा सकता है, जिस कारण वायुमंडल में लाखों मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ा जा रहा है। एक शोध के अनुसार मानव जनित ग्रीनहाउस गैसों के कारण वायुमंडल में मौजूद सीओ2 की मात्रा पिछले 700 हजार वर्षों के न्यूनतम स्तर (410-415 भाग प्रति) की तुलना में दोगुनी हो गई है। एक तरफ औद्योगिक क्रांति तो दूसरी तरफ आधुनिक मानव जीवन शैली में उपयोग किए जाने वाले संसाधनों ने भी इसमें इजाफा ही किया है। इसके अलावा जीवाश्म ईंधन जलाने और वर्षावनों को बहुतायत में नष्ट किए जाने जैसी मानवीय भूलों से जलवायु और पृथ्वी के तापमान पर प्रभाव बुरी तरह पड़ा है। इससे ग्रीनहाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। इसमें बढ़ोत्तरी करने के लिए कोयला, तेल और गैस की खपत को प्रमुख माना गया है, दरअसल ये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रतिनिधित्व करने वाले कारकों में शामिल हैं। इसलिए बराबर सलाह दी जाती रही है कि वर्षा वनों की कटाई को रोका जाए और उनके क्षेत्रफल को बढ़ाया जाए। जिन संसाधनों में कोयला, लकड़ी, तेल और गैस का उपयोग ज्यादा होता हो, उन्हें नियंतत्रित किया जाए, ताकि जलवायु संकट को समय रहते रोका जा सके।
पृथ्वी को जलवायु संकट से बचाना उतना ही जरुरी है जितना कि खुद के जीवन को बचाना। मानव जीवन के फलसफे को मशहूर शायर पंडित ब्रज नारायण चकबस्त ने महज एक शेर में समझाते हुए कहा, ज़िन्दगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब, मौत क्या है इन्हीं अज़्ज़ा का परीशां होना। अर्थात जीवन पांच तत्वों का सिलसिलेबार मिलन है, जबकि मृत्यु इन तत्वों के बिखर जाने का नाम है। बात साफ है कि जिन तत्वों से जीवन है, उन्हें सहेजना और उनकी मौजूदगी को उनकी प्रकृति अनुसार बनाए रखना भी हम मानव जाति की ही जिम्मेदारी है। इसके लिए जरुरी हो जाता है कि पृथ्वी को सीमेंट और कंक्रीट के जंगलों में तब्दील करने की बजाय प्रकृति प्रदत्त हरियाली से आच्छादित करें। अधिक से अधिक पेड़ लगाएं और जिससे ऊष्मा विसर्जित होती हो उन साधनों का कम से कम उपयोग करें। उद्योग और कल कारखाने जरुरी हैं, लेकिन इतने भी नहीं कि हम खुद अपनी धरती के लिए मौत का फरमान लिख दें। हमारी जीवन शैली भौतिक सुखों से परिपूर्ण हो, इसमें कोई गुरेज नहीं, लेकिन इतनी भी न हो कि हम खुद अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए मुसीबतें खड़ी कर दें। अंतत: यह वक्त चिंता जाहिर करने और समाधान तलाशने से आगे बढ़कर पृथ्वी को बचाने की खातिर बहुत कुछ करने का है। पृथ्वी में उसकी अपनी हरियाली, जल और वायुमंडल उचित मात्रा में बना रहे, इस दिशा में आगे बढ़ें, ताकि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हो रहे संकट से उबरा जा सके।

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