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पर्यावरण संतुलन क्यों आवश्यक है ?

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 ( विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष )

निर्मल कुमार शर्मा

पर्यावरण वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण,प्रकृति तथा समस्त जैवमण्डल के संबंध में जो सारगर्भित बात कही है वह यह है कि ‘पर्यावरण उन सभी भौतिक,रासायनिक एवं जैविक कारकों की एक इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। पर्यावरण वह है जो कि प्रत्येक जीव के साथ जुड़ा हुआ है हमारे चारों तरफ़ वह हमेशा व्याप्त होता है। ‘              ‘पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े,सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ भी आ जातीं हैं, जैसे: चट्टानें,पर्वत, नदी,हवा और जलवायु के तत्व सहित कई चीजे इत्यादि सभी कुछ इसमें सम्मिलित रहतीं हैं। ‘

               पर्यावरण संतुलन से हमारा आशय यह है कि इस धरती पर स्थित समस्त जैवमण्डल यथा नदियां स्वच्छ पानी से लबालब साल भर बहतीं रहें,इसके लिए एकदम जरूरी है कि हमारी धरती पर उच्च पर्वत शिखरों पर स्थित शुभ्र धवल ग्लैशियर जो करोड़ों सालों से बर्फ से जमें हुए हैं,वे चिरस्थाई रहें,हरे-भरे-घने जंगल हों,जिनमें लाखों तरह के कीट,पतंगें,तितलियों,भौंरों,रंगविरंगी,मधुर गीत गाते हुए परिंदों,सैकड़ों तरह के सरिसृपों, हिरनों,गौरों,भैंसों,सितारों,भेड़ियों,लकड़बग्घों, चीतों,तेंदुओं,बाघों,शेरों,हाथियों आदि सभी जीवों का एक संतुलित साहचर्य में बसेरा हो,इसके लिए जरूरी है कि वहां पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता हो,यथा वहां बिल्कुल प्रदूषण मुक्त  प्राकृतिक जलस्रोतों यथा झरने,तालाब और झीलें हों ! इसके लिए स्वाभाविक तौर पर इस धरती पर बारिश के मौसम में और वर्ष के अन्य मौसमों में भी पर्याप्त मात्रा में रिमझिम बारिश होती हो। 

            खुले सपाट मैदानी इलाकों में हरी-भरी घासों से भरा-पूरा स्तेपी और बुग्याल हों,जिसमें पौष्टिकता से भरपूर घासों को चरकर हमारी दुधारू पशुओं यथा बकरियां,गाएं,भैंसें आदि भरपूर खाना खाकर खूब दूध दें,भरपूर बारिश से हमारे खेत हर साल तमाम तरह के अन्न रूपी सोना उगलते हों ! पर्याप्त बारिश से हमारी धरती के सीने में भूगर्भीय जल की संतृप्तता हो ! हरियाली,पेड़-पौधों और जंगलों की प्रचुरता से हवा में प्राणवायु जिसे हम वैज्ञानिक भाषा में आक्सीजन कहते हैं,वह भरपूर मात्रा सर्वत्र जगह हो ! कहने का मतलब इस धरती का हर जीव यथा चींटी से लेकर मानव प्रजाति सहित इस धरती का सबसे बड़ा समुद्री जीव ब्लू ह्वेल तक अपना जीवन आनन्द के साथ बीता रहे हों,तो यह पर्यावरण संतुलन का एक सबसे बेहतरीन नमूना होगा !

लेकिन इस धरती पर मानव प्रजाति के आगमन के बाद उक्त वर्णित सुखद,सम्यक, संतुलित दुनिया नहीं रही है ! इस धरती पर मनुष्य प्रजाति जैसे असीमित लोभ वाले कथित सबसे बुद्धिमान प्राणी के आगमन के बाद इस धरती का समस्त वातावरण यथा पेड़-पौधों,वनों,वन्य जीवों नदियों,झीलों,समुद्रों,हरे-भरे मैदानों,पहाड़ों,हवा, पानी आदि सभी कुछ अपना सामान्य संतुलन खो चुके हैं ! 

               मनुष्य प्रजाति के प्रकृति और इसके पर्यावरण के अनियंत्रित अतिदोहन,भयंकरतम् प्रदूषण करने आदि से इस धरती का समस्त जैवमण्डल और पर्यावरण अपना प्राकृतिक और नैसर्गिक संतुलन खोता जा रहा है ! मनुष्य द्वारा अपने जीवन को अत्यधिक विलासितापूर्ण बनाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले अरबों की संख्या में वातानूकुलित यंत्रों, पेट्रोल-डीजल-चालित गाड़ियों के अत्यधिक उपयोग करने से पैदा हुए भयावह वायुप्रदूषण से पर्वतों के उतंग शिखरों पर  करोड़ों वर्षों से जमें सदानीरा नदियों के उद्गमस्थल ग्लेशियरों तक की विनाशलीला की दु:खद कहानी की पूर्वपीठिका लिखी जा चुकी है ! आज तथाकथित सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क वाला मनुष्य प्रजाति खुद अपने हाथों अपने भविष्य को सर्वनाश करने पर उतारू है ! वह अपने कुकृत्यों यथा समस्त जैवमण्डल के सुरक्षाकवच ओजोन परत को नष्ट करने पर आमादा है ! आज तथाकथित सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क वाली मनुष्य प्रजाति ओजोन को सर्वनाश कर देनेवाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी और ब्रोमीन जैसी खतरनाक गैसों का अंधाधुंध प्रयोग कर रही है,जिससे ओजोन परत के विनष्टीकरण से इस धरती के अरबों सालों से बना इसका समस्त जैवमण्डल का अस्तित्व ही आसन्न भयावह खतरे में है !

ओजोन परत ‘ के खत्म होने के कारण  

मनुष्य प्रजाति द्वारा अपने घरों और दफ्तरों को ठंडा और आरामदायक बनाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले एयर कंडीशनर,रेफ्रिजरेटर, एयरोसोल के डिब्बे,कंप्यूटर और अस्थमा के रोगियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले इनहेलर, तमाम अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के सामानों,डैश बोर्ड,इन्सुलेशन फोम,पानी के बॉयलर,सैन्य ठिकानों,हवाई जहाजों में आग से सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर हेलोजन गैस का इस्तेमाल किया जाना,अधिकांश फलों और सब्जियों में उपस्थित कीटाणुओं को मारने के लिए मिथाइल ब्रोमाइड का प्रयोग,उक्त सभी के लिए सबसे ज्यादा क्लोरोफ्लोरोकार्बन यानी सीएफसी जो सबसे ख़तरनाक ओजोन-क्षयकारी पदार्थ यानी Ozone-Depleting Substances ODS हैं,का बेहिचक प्रयोग किया गया,इससे हमारे प्राणों की रक्षा करने के लिए हमारी धरती के वायुमंडल के सबसे ऊपरी हिस्से में प्रकृति ने बहुत सोच-विचार कर एक ओजोन छतरी का निर्माण किया है,जो सूर्य से आनेवाली समस्त जैवमण्डल की हिफाजत के लिए अत्यंत घातक अल्ट्रावायलेट किरणों या Ultraviolet Rays को अंतरिक्ष में ही 30से 40किलोमीटर ऊपर ही आत्मसात कर लेने का महत्वपूर्ण काम कर देती है,ये उक्त वर्णित क्लोरोफ्लोरोकार्बन यानी सीएफसी गैस ओजोन छतरी का सबसे बड़ा दुश्मन है ! आज के हमारे वैज्ञानिक युग में तीव्र गति से चलने वाले वायुयान से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि से भी ओजोन परत को भारी नुकसान हो रहा है !

आसान भाषा में समझें तो ओज़ोन परत गैस ही एक नाजुक ढाल की तरह है जो धरती के सभी जीव-जन्तुओं को सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों या Ultraviolet Rays के हानिकारक असर से बचा कर रखती है। अगर हमारी धरती के चारों तरफ से ओजोन का वाह्यावरण किसी वजह से नष्ट हो जाय तो वे ही सूर्य की किरणें जो हमारे लिए आज जीवनदायिनी हैं,अल्ट्रावायलेट किरणों सहित धरती पर आने की वजह से मनुष्य प्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल के लिए ही वे किरणें जबरदस्त विनाशकारी सिद्ध हो जाएंगी !

            ओजोन गैस से बना वाह्यावरण हम मनुष्य प्रजाति और समस्त जैवमंडल के लिए कितना जरूरी है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि सूरज से इस धरती पर सूर्य के प्रकाश के साथ आनेवाली पराबैगनी किरणों का लगभग 99% भाग तक ओजोन परत द्वारा सोख लिया जाता है ! जिससे धरती पर रहने वाले सभी जीव-जन्तु समेत पेड़-पौधे भी तेज तापमान और विकिरण से सुरक्षित बचे हुए हैं ! इसीलिए ओज़ोन मंडल या ओजोन परत को धरती का सुरक्षा कवच भी कहते हैं ! ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना हैं कि इस ओज़ोन परत के बिना धरती पर जीवन का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है ! यही नहीं ओज़ोन परत के बिना समुद्र में पानी के नीचे 100 मीटर गहरे रहनेवाले जीवों का जीवन भी खत्म हो सकता है ! मानव प्रजाति  कैंसर और त्वचा लोगों सहित अनेक अन्य लोगों से ग्रस्त हो जाएगी ! ओज़ोन परत की कमी से प्राकृतिक संतुलन तक भी बिगड़ जायेगा ! सर्दियों की तुलना में गर्मी ज्यादा लम्बी होने लगेंगी ! जिसे वैज्ञानिक भाषा में ग्लोबल वार्मिंग भी कहते हैं,होने लगेंगी,इसमें पृथ्वी का तापमान सदा के लिए बढ़ जायेगा ! 

 ओजोन परत कैसे बनती है ?

 वैज्ञानिक भाषा में समझें तो ओजोन परत आक्सीजन अणुओं की ही एक परत है जो हमारी धरती से 20 से 40 किमी ऊपर वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फीयर मंडल परत में पाई जाती हैं,जब सूरज से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें या Ultraviolet Rayऑक्सीजन परमाणुओं को तोड़ती हैं और ये ऑक्सीजन परमाणु हमारे वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन के साथ मिल जाते हैं तब इस बॉन्डिंग से ओज़ोन अणु बनते हैं,यही ओजोन अणु अतिघनीभूत होकर हमारी धरती के वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फीयर मंडल परत में ओज़ोन परत वातावरण में बनाते हैं ।

ऑक्सीजन के तीनों अपर रूप (allotropes)ओजोन-ऑक्सीजन चक्र (ozone-oxygen cycle) में शामिल हैं,ऑक्सीजन परमाणु O यानी ऑक्सीजन परमाणु , O2 यानी ऑक्सीजन गैस या द्विपरमाण्विक ऑक्सीजन और O3 यानी त्रिपरमाण्विक ऑक्सीजन यानी ओजोन गैस,ओजोन गैस का निर्माण समताप मंडल में तब होता है जब ऑक्सीजन के अणु 240 nm से छोटे तरंग दैर्ध्य के एक पराबैंगनी फोटोन को अवशोषित करके प्रकाश अपघटित या Photodissociate हो जाते हैं। यह ऑक्सीजन के दो परमाणुओं का निर्माण करता है। अब परमाण्विक ऑक्सीजन O2 के साथ संयोजित होकर O3 बनाती है यही ओजोन है अब यही ओजोन अणु 310 और 200 nm के बीच के यूवी प्रकाश को अवशोषित कर लेता है,जिससे ओजोन पुनः विभाजित होकर एक ऑक्सीजन परमाणु और एक O2 अणु बनाता है। अब यही अलग हुआ ऑक्सीजन परमाणु ऑक्सीजन अणु के साथ संयोजित होकर फ़िर से ओजोन अणु मतलब O3 बना देता है। यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है जो तब ख़त्म होती है जब एक ऑक्सीजन परमाणु एक ओजोन अणु के साथ पुनर्संयोजित होकर दो O2 अणु बना लेता है मतलब O + O3 → 2 O2 बना लेता है !

क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी और ब्रोमीन ओजोन वाह्यावरण के लिए कितने खतरनाक !   

             समस्त जैवमण्डल और मानवीय समाज के लिए यह बहुत ही आघातकारी सूचना है कि वैज्ञानिकों के अनुसार मात्र एक क्लोरीन का परमाणु दो साल तक लाखों ओजोन के परमाणुओं को लगातार नष्ट करता रह सकता है। ब्रोमीन क्लोरीन की तुलना में सौ गुना और ज्यादा खतरनाक है ! और मात्र एक क्लोरीन परमाणु 100000 ओजोन अणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है ! 

फ्रिज में इस्तेमाल की जानेवाली हैलोजन गैस में क्लोरीन के बजाए ब्रोमीन गैस होती है । ये गैस क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी के मुकाबले ओजोन को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाती है । इस गैस का इस्तेमाल फायर एक्टिंग्युशर यानी अग्निशामक तत्वों के तौर पर किया जाता है । ये क्लोरीन के मुकाबले सौ गुना ज्यादा नुकसान पहुंचाता है ! कार्बन टेट्राक्लोराइड सफाई करने में उपयोग में लाया जाता है ! ये डेढ़ सौ से ज्यादा कंज्युमर प्रोडक्ट्स में कैटालिस्ट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ! यह भी ओजोन के लिए बेहद ख़तरनाक है !

 ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव

              पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता पृथ्वी पर अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है !वैश्विक तापमान में जरा सी वृद्धि से समूची दुनिया में भयंकरतम् तूफान,बाढ़,जंगल की आग,सूखा और लू के खतरे की आशंका एकदम से बढ़ जाती है। एक गर्म जलवायु में,वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और भयंकर बारिश हो सकती है।वैज्ञानिकों के अनुसार पश्चिमी देशों में औद्योगिक क्रांति के बाद ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हमारी धरती का औसत वैश्विक तापमान वर्ष 1880 के बाद से लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है ! ग्लोबल वार्मिंग एक सतत प्रक्रिया है, वैज्ञानिकों को आशंका है कि वर्ष 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक और बढ़ जाएगा !

एनवायर्नमेंटल एंड एनर्जी स्टडीज इंस्टीट्यूट या  Environmental and Energy Studies Institute के अनुसार,जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का उपयोग अक्सर एक-दूसरे के लिए किया जाता है,लेकिन जलवायु परिवर्तन मोटे तौर पर औसत मौसम जैसे,तापमान,वर्षा, आर्द्रता,हवा,वायुमंडलीय दबाव,समुद्र के तापमान, आदि में लगातार परिवर्तन करने के लिए जाना जाता है जबकि ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि करने के लिए जाना जाता है,वैश्विक तापमान में वृद्धि से तूफान,बाढ़, जंगल की आग,सूखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है। एक गर्म जलवायु में, वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और बारिश कर सकता है,जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो सकता है।ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री सतह का तापमान भी बढ़ जाता है क्योंकि पृथ्वी के वातावरण की अधिकांश गर्मी समुद्र द्वारा सोख ली जाती है। गर्म समुद्री सतह के तापमान के कारण तूफान का बनना आसान हो जाता है। मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण, यह आशंका जताई जाती है कि तूफान से वर्षा की दर बढ़ेगी, तूफान की तीव्रता बढ़ जाएगी और श्रेणी 4 या 5 के स्तर तक पहुंचने वाले भयंकरतम् तूफानों का अनुपात बढ़ जाएगा !

               ग्लोबल वार्मिंग दो मुख्य तरीकों से समुद्र के जल स्तर को बढ़ाने में योगदान देता है। सबसे पहले,गर्म तापमान के कारण ग्लेशियर और भूमि-आधारित बर्फ की चादरें तेजी से पिघलती हैं,जो जमीन से समुद्र तक पानी ले जाती हैं। दुनिया भर में बर्फ पिघलने वाले क्षेत्रों में यथा ग्रीनलैंड,अंटार्कटिक और हिमालय जैसे पर्वतों के उच्च शिखरों के ग्लेशियर शामिल हैं। भूवैज्ञानिकों के शोधपत्रों के अनुसार मौजूदा रुझानों को देखते हुए वर्ष 3000सदी तक अगर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अंटार्कटिका महाद्वीप की पूरी बर्फ की चादर पिघल जाए तो समुद्र का जलस्तर 5 मीटर यानी 16.4 फीट से भी ज्यादा तक बढ़ सकता है ! अगर ऐसा सचमुच हुआ तो दुनिया भर के समुद्रतटीय नगरों में रहनेवाले अरबों लोगों के आवास समुद्र में समा जाएंगे !

 ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण 

            हमारी धरती की कुछ गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन आदि पृथ्वी के वातावरण में सूरज की गर्मी को अपने अंदर रोकती हैं। ये ग्रीनहाउस गैस वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से भी मौजूद हैं। लेकिन ग्रीनहाउस गैसों की बहुत तेजी से बढ़ोतरी मानवीय गतिविधियों यथा विशेष रूप से बिजली के वाहनों, कारखानों और घरों में जीवाश्म ईंधन यानी,कोयला,प्राकृतिक गैस और तेल को जलाकर उन्हें वायुमंडल में छोड़ने से भी होती है। पेड़ों और जंगलों को काटने सहित पेट्रोल और डीजल चालित वाहनों के अत्यधिक प्रयोग से भी  ग्रीनहाउस गैसों की तेजी से अभिवृद्धि होती है ! 

 कथित सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क वाले हम मानवों को इस धरती को बचाने के लिए क्या करना चाहिए ?     

मानव प्रजाति द्वारा अपने सुख के लिए वातिनुकूलन यंत्रों व फ्रिज में तथा अन्य सैकड़ों  उपकरणों और कार्यों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी और ब्रोमीन गैस के अंधाधुंध प्रयोग करने से इस धरती के समस्त जैवमण्डल के लिए सुरक्षाकवच ओजोन वाह्यावरण को गंभीर खतरे को देखते हुए इस मानव व जैवमंडल हंता गैसों की जगह वैज्ञानिकों ने एयरकंडीशन और फ्रिज के लिए हाड्रोक्लोरोफ्लोरो या एचसीएफ गैस का अविष्कार किए हैं,अब इस धरती के सभी कथित उच्च मस्तिष्क वाले हम मानवों का यह परम् और अभीष्ट कर्तव्य बनता है कि हम क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सीएफसी और ब्रोमीन गैस के एयरकंडीशन और फ्रिज की जगह  हाड्रोक्लोरोफ्लोरो या एचसीएफ गैस भरे उपकरणों का इस्तेमाल करें, पेट्रोल और डीजल चालित निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम हो,उसकी जगह उन्नतिशील पश्चिमी देशों की तर्ज पर विद्युत चालित सार्वजनिक वाहनों यथा,स्कूटी, ट्रामों,बसों,मेट्रो और रेलों का अधिकाधिक प्रयोग हो,जंगलों की अवैध कटाई,नदियों में प्रदूषण करना,वायु और भूगर्भीय प्रदूषण दंडनीय अपराध घोषित हो और उसका कठोरता से पालन करना सुनिश्चित हो,रासायनिक किटनाशकों का प्रयोग सीमित मात्रा में हो आदि-आदि बहुत से पवित्र कर्तव्य हैं, जिससे हमारा सुरक्षा कवच ओज़ोन आवरण विनष्ट होने से बचे और ग्लोबल वार्मिंग से भी हमारी शष्य श्यामला, नीली-हरी, अद्भुत, अद्वितीय,अतुलनीय,फिलहाल पूरे ब्रह्माण्ड में अब तक ज्ञात जीवन के स्पंदन से युक्त इकलौती हमारी धरती भी बचे और इस पर रहनेवाले मनुष्यों सहित इसके समस्त जैवमण्डल के सभी जीव भी अभयदान पाकर खुशी से रहें ।

(लेखक निर्मल कुमार शर्मा, ‘गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण तथा पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक, सामाजिक,आर्थिक,पर्यावरण तथा राजनैतिक विषयों पर सशक्त व निष्पृह लेखन ‘,प्रताप विहार,गाजियाबाद, उप्र,पिनकोड नंबर-201009,संपर्क -9910629632,ईमेल-nirmalkumarsharma3@gmail.com)

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