नीलम ज्योति
नर्मदा नदी से निकलने वाले शिवलिंग को ‘नर्मदेश्वर कहते हैं। यह घर में भी स्थापित किए जाने वाला पवित्र और चमत्कारी शिवलिंग है; जिसकी पूजा अत्यन्त फलदायी है।
यह साक्षात् शिवस्वरूप, सिद्ध व स्वयम्भू (जो भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए हैं) शिवलिंग है। इसको वाणलिंग भी कहते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है कि मिट्टी या पाषाण से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्णनिर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है। स्वर्ण से करोड़गुना अधिक मणि और मणि से करोड़गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है।
घर में इस शिवलिंग को स्थापित करते समय प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। गृहस्थ लोगों को नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए क्योंकि यह परिवार का मंगल करने वाला, समस्त सिद्धियों व स्थिर लक्ष्मी को देने वाला शिवलिंग है।
सामान्यत: शिवलिंग पर चढ़ी कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं की जाती, परन्तु नर्मदेश्वर शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
स्कन्दपुराण की कथा के अनुसार:–एक बार भगवान शंकर ने पार्वतीजी को भगवान विष्णु के शयनकाल (चातुर्मास) में द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करते हुए तप करने के लिए कहा। पार्वतीजी शंकरजी से आज्ञा लेकर चातुर्मास शुरु होने पर हिमालय पर्वत पर तपस्या करने लगीं।
उनके साथ उनकी सखियां भी थीं। पार्वतीजी के तपस्या में लीन होने पर शंकर भगवान पृथ्वी पर विचरण करने लगे। एक बार भगवान शंकर यमुना तट पर विचरण कर रहे थे।
यमुनाजी की उछलती हुई तरंगों को देखकर वे यमुना में स्नान करने के लिए जैसे ही जल में घुसे, उनके शरीर की अग्नि के तेज से यमुना का जल काला हो गया। अपने श्यामस्वरूप को देखकर यमुनाजी ने प्रकट होकर शंकरजी की स्तुति की।
शंकरजी ने कहा यह क्षेत्र ‘हरतीर्थ’ कहलाएगा व इसमें स्नान से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाएंगे।
भगवान शिव यमुना के किनारे हाथ में डमरु लिए, माथे पर त्रिपुण्ड लगाये, बढ़ी हुईं जटाओं के साथ मनोहर दिगम्बर रूप में मुनियों के घरों में घूमते हुए नृत्य कर रहे थे।
कभी वे गीत गाते, कभी मौज में नृत्य करते थे तो कभी हंसते थे, कभी क्रोध करते और कभी मौन हो जाते थे। भगवान शिव मदनजित् हैं, हमें उनके दिगम्बर रूप का गलत अर्थ नहीं लेना चाहिए। देवता, मुनि व मनुष्य सभी वस्त्रविहीन ही पैदा होते हैं।
जिन्होंने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं की है, वे सुन्दर वस्त्र धारण करके भी नग्न हैं और इन्द्रियजित् लोग नग्न रहते हुए भी वस्त्र से ढंके हुए हैं। भगवान शिव तो काम को भस्म कर चुके हैं।
उनके इस सुन्दर रूप पर मुग्ध होकर बहुत-सी मुनिपत्नियां भी उनके साथ नृत्य करने लगीं। मुनि शिव को इस वेष में पहचान नहीं सके बल्कि उन पर क्रोध करने लगे। मुनियों ने क्रोध में आकर शिव को शाप दे दिया कि तुम लिंगरूप हो जाओ।
शिवजी वहां से अदृश्य हो गए। उनका लिंगरूप अमरकण्टक पर्वत के रूप में प्रकट हुआ और वहां से नर्मदा नदी प्रकट हुईं। इस कारण नर्मदा में जितने पत्थर हैं, वे सब शिवरूप हैं। ‘नर्मदा का हर कंकर शंकर है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग के सम्बन्ध में एक अन्य कथा है :
भारतवर्ष में गंगा, यमुना, नर्मदा और सरस्वती ये चार नदियां सर्वश्रेष्ठ हैं। इनमें भी इस भूमण्डल पर गंगा की समता करने वाली कोई नदी नहीं है।
प्राचीनकाल में नर्मदा नदी ने बहुत वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब नर्मदाजी ने कहा–’ब्रह्मन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगाजी के समान कर दीजिए।
‘ब्रह्माजी ने मुस्कराते हुए कहा–’यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वतीजी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है।
’ब्रह्माजी की बात सुनकर नर्मदा उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तप करने लगीं। भगवान शंकर उन पर बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब नर्मदा ने कहा–’भगवन्! तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ? बस आपके चरणकमलों में मेरी भक्ति बनी रहे।’
नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो गए और बोले– नर्मदे! तुम्हारे तट पर जितने भी प्रस्तरखण्ड (पत्थर) हैं, वे सब मेरे वर से शिवलिंगरूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं, परन्तु तुम दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण करने वाली होजाओगी। तुमने जो नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष देने वाला होगा।’ भगवान शंकर उसी लिंग में लीन हो गए। इतनी पवित्रता पाकर नर्मदा भी प्रसन्न हो गयीं। इसलिए कहा जाता है–‘नर्मदा का हर कंकर शंकर है।