अग्नि आलोक

किसानों की स्थिति मे दिन प्रति दिन इतना ह्रास क्यो हो रहा है ?

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इंजी. के के अग्रवाल

समझने लायक कुछ तथ्य जिन पर हमे गौर करना होगा, जिनकी जानकारी होने से हम भली भांति समझ सकेंगे की आज हम किसानों की स्थिति मे दिन प्रति दिन इतना ह्रास क्यो हो रहा है ? … आजादी के समय हम किसानों की आबादी 75% थी अब रह गई 60% ।
वर्तमान मे देश मे कुल किसानों की संख्या है 72 करोड़ । इस वर्ष 2024 मे देश के कुल बजट की राशि है 48.21 लाख करोड़ रुपये।


कुल बजट मे कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र के लिए इस वर्ष प्रावधान किया गया है 1.52 लाख करोड़ रुपये का। यानी हम 60% की आबादी के लिए देश के कुल बजट मे प्रावधान है केवल .. 3.15 प्रतिशत । विगत वर्ष की तुलना मे बृद्धि केवल 0.4 प्रतिशत। इस वर्ष मे हमारी कृषि की लागत मे बृद्धि 10 % से अधिक। कृषि की विकास दर विगत वर्षो मे घटते घटते 4.6 प्रतिशत से घट कर अब इस वर्ष रह गई केवल 1.8 प्रतिशत। कृषि शोध तीब्रता ( ए आर आई) एवं कृषि जी डी पी का अनुपात विगत वर्षों मे 0.75 प्रतिशत से घटकर इस वर्ष रह गया 0.43 प्रतिशत। यदि हम केवल कृषि की बात करें (इससे सम्बद्ध क्षेत्र को छोड़ दें) तो 2021 मे कुल बजट मे प्रावधान था 4.47 प्रतिशत। पिछले वर्षो में और कम हुआ और कम होते होते अब इस वर्ष 2024 मे हो गया 2.48 प्रतिशत। यानी लगभग आधा !!..
हमारी खेती की लागत मे लगातार बृद्धि 10 से 15 प्रतिशत से अधिक की…
शासकीय एजेंसी एन एस एस ओ की रिपोर्ट के अनुसार किसान की प्रति दिन की आय केवल 27/- प्रति दिन है। विगत 5 सालों मे इसमे कोई बृद्धि नही हुई।.. बल्कि कई राज्यों मे घटी है। कृषि की स्टेंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार किसान की आय दुगनी होने की बजाय कई राज्यों मे उल्टा कम हुई है।…
पिछले 5 वर्षो मे सरकार ने बजट के प्रवधान का लगभग एक लाख करोड़ रुपये सरेंडर किये,यानी वह खर्च नही कर पाई।..
यानी कृषि के लिए कुल आबंटित बजट मे से मैंदान मे कितना खर्च हुआ हुआ यह अंदाज लगाना कठिन नही है, वह है लगभग 60 प्रतिशत। विडंबना है हमारी 30 से 40 प्रतिशत राशि लेप्स हो गई , हमारी सरकारें खर्च नहीं कर पाईं।
इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें…
सोर ऊर्जा की महत्वाकान्क्षी पी एम कुसुम योजना मे देश मे 10 लाख किसानों के यहाँ कृषि पम्प लगाने का प्रावधान था, जिसमे कुल स्वीकृत हुए 1,61,640 सोलर पम्प और लगाए गये केवल एक चौथाई किसानों के यहां।..
एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर ( कृषि संसाधन) के लिए विगत पांच वर्षो के लिए प्रावधान किया गया था एक लाख करोड़ खर्च करने का, उसमे से पांच सालों मे योजनाएं बनी केवल 35 हजार करोड़ रुपये खर्च की, परन्तु जारी हुए केवल 25 हजार करोड़ रुपये, यानी 10,00 करोड़ रुपये लेप्स।
इसी तरह हमारे बजट के प्रावधानो के बावजूद भी हमारे ऊपर खर्च कितने हुए अंदाज लगाया जा सकता है
इस वर्ष किसमे कितनी कटौती ( कुछ बिंदु केवल उदाहरण के लिए समझें…
पी एम मान धन योजना के लिए विगत वर्ष प्रावधान था 138 करोड़ का, अब रह गया 100 करोड़।
हमारे देश के यूरिया मे इस वर्ष 2000 करोड़ की कटौती।
आयातीत यूरिया के लिए विगत वर्ष प्रावधान था 30 हजार करोड का , अब रह गया 22 हजार करोड़। इसमे भी 8 हजार करोड़ की कटौती।
हमारे देश मे निर्मित अन्य खादों के लिए पिछले वर्ष बजट था 32,370 करोड़, अब इस वर्ष रह गया 26,500 करोड़। 5870 की कटौती।
विदेशो से आयतित अन्य खादों के लिए भी इस वर्ष आवंटन मे 9430 करोड़ की कटौती की गई है।
फ़र्टिलाइजर की दी जाने वाली सब्सिडी मे इस वर्ष कटौती.. 25,711 करोड़ ।
पी एम फसल बीमा योजना मे इस वर्ष 400 करोड़ की कटौती कर दी गई। ..
पी एम फसल योजना मे सरकार ने जो प्रेमियम इकठ्ठा किया, उसका किसानों मे बाँटा केवल आधा।
बीमा कंपनियों को विगत वर्षो मे फायदा..63,648 करोड़ का।
ग्रामीण मजदूरों के लिए मनरेगा के बजट मे भी कटौती।
कृषि शोध पर राशि मे भी कटौती, जबकी कृषि अर्थ शास्त्री मानते है की कृषि शोध पर एक रुपये खर्च करने पर 10 रुपये से अधिक का कृषि मे फायदा होता है।…. देश का कृषि अनुसंधान केंद्र कंगाली की कगार पर खड़ा है। वैज्ञानिको के आधे पद रिक्त पड़े हैँ। सरकार के पास भर्ती के लिए फंड नही है।
अब आगे बात करें एम. एस. पी. की…
सरकार 24 फसलों की एम एस पी तय करती है, और खरीद होती है केवल 8, 10 फसलों की ही । …
इसका कितना लाभ हमे मिलता है? कुछ उदाहरण से समझने का प्रयास करें। …
गेहूँ का देश मे वर्ष 23- 24 मे कुल उत्पादन हुआ 1129 लाख मेट्रिक टन का, और खरीद हुई केवल 262 लाख मे. टन की। यानी खरीद केवल 23 प्रतिशत की ही ..
इसी प्रकार चने की खरीद 0.37 प्रतिशत … मसूर की 14 प्रतिशत, सरसों की 9.19 प्रतिशत, सूरज मुखी एवं जो की 0 प्रतिशत हुई।..
शेष किसान ऑने पोने दाम मे बाजार मे बेचने मजबूर हुआ। …
अब बात करें फसलों की लागत मूल्य की…
कृषि मूल्य आयोग ने नीति आयोग को प्रेषित एक रिपोर्ट मे स्वीकार किया है की किसानों की प्रांतों की लागत का मूल्यांकन सही नहीं है, प्रांतों मे फसल उत्पादन की लागत, समर्थन मूल्य से अधिक है। डॉ स्वामीनाथन के सी 2 पर 50 प्रतिशत के फार्मूले को न लेकर यदि उनके दूसरे फॉर्मूले ए 2 + एफ एल को ही लेवे तो सन 24-25 मे किसानों को धान मे प्रति हेक्टेयर 31.4 % का नुकसान उठाना पड़ा। उड़द मे 475/-, सोयाबीन मे 4749/-, ज्वार मे 718/- प्रति हेक्टेयर का नुकसान सहना पड़ा, इसी प्रकार अन्य फसलों मे भी किसान घाटे मे खेती कर रहे हैँ।…
जरा विचार कीजिये की इन परिस्थितियों मे किसान की समृद्धि की कल्पना करना या डिंडोरा, क्या बेमानी नही है ?? …
विगत वर्षो मे मैंने नीति आयोग एवं कृषि मूल्य आयोग की कई बैठकों मे भाग लिया, वहाँ किसानों का पक्ष जोरदारी से रखने के प्रयास किये गये । विडंबना है की आर्थिक नीतियों पर अफसर शाही और उनकी अलग सोच, माइंड सेट, धारणाओं और मान्यताओ के चलते, हमें तो छोड़ दें, सरकार मे बैठे हमारे नुमाइंदे भी बेबस, असहाय नजर आते दिखते हैँ। ..
कुल मिलाकर इन सबका आंकलन करने पर यह स्पस्ट समझ मे आता है की खेत – किसान न कभी किसी सरकार की प्राथमिकता मे रहा है और न रहेगा।..
दिन प्रति दिन गिरते इन आंकड़ों से स्पस्ट है की सरकार की नीति खेती के रकवे और किसानों की संख्या को कम करने की है।..और इसी नीति के तहत सरकार आगे बढ़ रही है।
यही कारण है की घाटे की खेती से आगे आने वाली पीढ़ी बच रही है। किसान इस धंधे से अलग हो रहे हैँ। यही नहीं, देश मे कर्ज मे डूबे हर रोज 31 किसान आत्म हत्या करने मजबूर हो रहे हैँ। इसकी पुष्ठी सरकार की रिपोर्ट करती है।
… इस पहलू को शायद हम समझ सकें। …
सरकार शायद यह भूल रही है की अन्नदाता ने ही देश के अन्न के भंडारों को भरा, तभी तो करोना काल मे देश की आबादी का पेट भरने मे सरकार सफल हो पाई।… नहीं तो भुखमरी की एक अन्य त्रासदी से हमे गुजरना पड़ता।…
अगले पांच सालों तक 80 करोड़ आबादी को मुफ्त अनाज की सुविधा के सरकार के वायदे का क्या होगा, यदि किसान खेती करना बंद कर दें ।…
हमेशा हमे यह कह कर दबाया जाता है की किसान से टेक्स नही लिया जाता, जबकी सच्चाई यह की हम अप्रत्यक्ष रूप से हर वस्तु पर टेक्स देते हैँ, चाहे वह खाद हो, डीजल हो, यंत्र हों, आदान सामग्री हों। रोटी कपड़ा, मकान , रोज मर्रा की वस्तुएं हों, सबके टेक्स का भुगतान वह करता है। किसान का देश की आर्थिक उन्नति मे भी उतना ही योगदान है। …
किसानों के द्वारा भरे गये अन्न के भण्डारों के कारण बड़ी बड़ी बातें !!… खाली पेट होते तो शायद इसमे कमी आती। भगवान् न करे वह स्थिति आये।…

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