Site icon अग्नि आलोक

आमजन से दूर होती भारतीय पुलिस और न्याय व्यवस्था ! आखिर क्यों ?

Share

निर्मल कुमार शर्मा

‘हमारे देश के पुलिस थाने मानवाधिकार हनन के सबसे बड़े अड्डे बन चुके हैं। सरकारें जब तक इन अड्डों को सुधारने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाएंगी,न्याय न मिल पाने से हताश होकर लोग आत्महत्या और खुदकुशी करते ही रहेंगे ‘
भारतीय सुप्रीमकोर्ट
‘जिन व्यक्तियों ने कानून का उल्लंघन किया है,उन्हें दण्डित करने में किसी प्रकार का पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए,यदि राज्य में न्याय का दीपक बुझ जाए तो अंधेरा कितना घना होगा,इसकी कल्पना नहीं कर सकते ‘
-लॉर्ड ब्राइस
‘नैतिकता, औचित्य, विधि या कानून, प्राकृतिक विधि,धर्म या समता के आधार पर ठीक होने की स्थिति को न्याय कहते हैं ‘
-भारतीय संविधान

भारतीय परिप्रेक्ष्य में कानून संबंधी उक्त आदर्श बातें केवल कानून की किताबों में और संविधान तक ही सीमित हैं। इस देश,यहाँ के समाज और जमीनी धरातल तथा हकीकत में उक्तवर्णित कानूनी समदर्शिता,न्याय,नैतिकता, प्राकृतिक विधि या समता आदि उच्च आदर्श की परिकल्पनाएं एक दुःस्वप्न सरीखी हैं,अभी पिछले दिनों भारतीय न्यायिक व्यवस्था के सबसे बड़े मंदिर सुप्रीमकोर्ट के दरवाजे पर वर्तमानदौर के न्यायिक और पुलिस व्यवस्था से निराश, हताश,उत्तर प्रदेश के एक प्रेमी युगल एक युवक और युवती ने आत्मदाह कर लिया ! आत्मदाह करने से पूर्व बाकायदा उन्होंने फेसबुक पर उन कारणों को भारतीय समाज और मिडिया के सामने रखने का भरसक प्रयत्न भी किया था। मिडिया के अनुसार तीन वर्ष पूर्व उक्त युवती से एक सांसद ने बलात्कार किया था,आत्मदाह करनेवाला युवक उस दुःखद घटना का एकमात्र गवाह था,इस भुक्तभोगी बलित्कृता युवती ने उस दरिंदे,बलात्कारी सांसद के खिलाफ पुलिस में एफआईआर भी कराई थी,लेकिन जैसा कि भारतीय समाज और इस देश में होता है,ये पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था तथा कानून व्यवस्था अपराधी,लेकिन ताकतवर,रसूखदार व धन्नासेठों के आगे हाथ बाँधे खड़े रहतीं हैं,इस केस में भी वही हुआ,बलित्कृता लड़की और उसका मित्र हर जगह से निराश और परेशान हो गए,मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पुलिस विभाग के पहरूए उलटा उस बलित्कृता,अबला,गरीब,कमजोर लड़की के खिलाफ ही केस बनाकर उसे परेशान करने लगे ! इसीलिए ये दोनों इस व्यवस्था से हर जगह से निराश होकर इस ओर जनता का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए यह कठोरतम् निर्णय लेने पर मजबूर हुए !
यह कठोर सच है कि इस देश में गरीब और कमजोर लोगों को न्याय न मिलना एक सामान्य सी घटना बनती जा रही है ! लेकिन इस मामले में पूरे देश में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादे कुख्यात होता जा रहा है,इस तरह की घटनाएं उत्तर प्रदेश में पूर्व में भी कई बार हो चुकीं हैं,उदाहरणार्थ पिछले दिनों आगरा जिला प्रशासन भवन के सामने एक युवक और युवती आत्मदाह की कोशिश किए थे, इससे भी दुःखद घटना उत्तर प्रदेश के मठाधीश मुख्यमंत्री के विधानसभा भवन स्थित उनके कार्यालय के सामने एक युवती ने इस व्यस्था से दुःखी और निराश होकर आत्महत्या का प्रयास किया था ! इस तरह की घटनाएं तो बहुत होतीं हैं,लेकिन जो घटनाएं समाचार पत्रों व मिडिया में अपना स्थान बना पातीं हैं,उन्हीं को हम-आप जान पाते हैं। इस तरह अपनी जान देनेवाले निराश लोगों की एक ही शिकायत रहती है कि उत्तर प्रदेश पुलिस,वहाँ का प्रशासनिक अमला और वहाँ की सरकारें भुक्तभोगियों की बिल्कुल मदद नहीं करतीं,उनकी शिकायत तक दर्ज नहीं की जातीं,उल्टा उन पर ही फर्जी अनापेक्षित आरोप लगा कर उन्हें ही प्रताड़ित करतीं हैं और मुख्य बलात्कारियों और अपराधियों को बचातीं हैं ! सबसे दुःखद स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश के अनेकों जिला प्रशासन के भवनों,लखनऊ विधान सभा भवन और अब सुप्रीमकोर्ट के सामने न्याय न मिलने के कारण इन युवक-युवतियों द्वारा आग लगा कर अपने प्राणों को बलिदान करने और त्याग देने की इन अतिदुःखद घटनाओं के होने के बावजूद भारतीय पुलिस व न्यायिक प्रणाली अभी भी अपनी कार्यप्रणाली को पुनरावलोकन, पुनर्समीक्षा और सुधार करने को कतई राजी नहीं है ! कुछ सालों पूर्व उत्तर प्रदेश के मठाधीश मुख्यमंत्री के समय में ही बीजेपी के ही कुलदीप सिंह सेंगर नामक एक गुँडा और दरिंदा विधायक अपने गांव के अपने ठीक एक पड़ोस में रहनेवाली लड़की को नौकरी देने का लालच देकर खुद और अपने यार-दोस्तों के साथ वर्षों तक व्यभिचार और कदाचार करता रहा,पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद पुलिस कर्मियों के सामने ही उसके बाप की अपने गुँडों से पीट-पीटकर मौत के मुँह में भेज दिया,उसके बाद उस भुक्तभोगी लड़की और उसके चाचा-चाची और मौसी पर ट्रक चढ़ाकर उनकी भी क्ररता से हत्या करवाने का घृणित कुप्रयास किया,जिसमें उस अभागी लड़की तो गंभीरतापूर्वक घायल होने के बाद जैसे-तैसे बच गई, लेकिन उसके चाचा-चाची और मौसी की घटनास्थल पर ही दुःखद मौत हो गई ! आखिर हमारे देश में न्याय पर सत्ताधारी वर्ग,पैसे और रसूखवालों,माफियाओं का ही एकाधिकार क्यों है ? एक गरीब का सरेआम मर्डर होने के बावजूद हमारा तंत्र और प्रशासन इतना लचर और निष्क्रिय क्यों बना रहता है ? हमारी न्यायिक व्यवस्था का झुकाव गरीबों के विरूद्ध धनी एवं ताकतवर लोगों की तरफ ही सदा क्यों बना रहता है ? ये कैसा लोकतंत्र है,जिसमें गरीबों को न्याय पाने से बिल्कुल वंचित रखा जा रहा है ?ब्रिटिशकाल से चली आ रही इस पुलिस और न्यायिक प्रणाली की पुनर्समीक्षा होनी चाहिए और इसमें वर्तमानसमय के अनुसार आमूल -चूल परिवर्तन होनी ही चाहिए ।

निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,

Exit mobile version