अग्नि आलोक

आखिररावण के पुतले से इतना भय क्यों ?

Share

निर्मल कुमार शर्मा

जैसे ही दशहरा नजदीक आता है,तो मानों बंदर-भालुओं की सेना को आरक्षण मिल जाता है,अपनी मर्दानगी को कागज के पुतले पर साबित करने का एक फूहड़ता भरे कुकृत्य को दिखाने का । लेकिन क्या सिर्फ किसी का पुतला जलाकर आप उसकी शख्सियत को मिटा सकते हैं ! आखिर रावण का पुतला न जलाएं तो कौन सी हानि हो जाएगी ! कहीं आपको भय तो नहीं कि वो फिर से राक्षस-दानव-दैत्य-शूद्र कह कर भारत के मूल निवासियों पर अत्याचार करने वाले और जातिवादी और वर्ण व्यवस्था के अधीन कार्य करने वाले आपके राजा राम को फिर से मुँहतोड़ जवाब न दे देंं ?
अभी पिछले दिनों वाल्मीकि समाज की कुछ संस्थाओं ने महात्मा रावण का पुतला न जलाने के लिए एक ज्ञापन दिया था,तो मानों जैसे इन्द्र का सिंहासन ही हिल गया हो और चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई ! तभी वाल्मीकि कहे जाने वाले कुछ राम भक्त पहुँच गये,त्राहिमाम् -त्राहिमाम् करते हुए ओर उन्होंने भी ज्ञापन सौंप दिया कि रावण का पुतला जरूर जलना चाहिए । मानों इनको भय है कि अगर इस साल पुतला नहीं जला तो सुनामी आ जाएगी ।
आखिर ये कौन सी मानसिकता है ओर कौन सी मर्दानगी है जो एक कागज के पुतले पर दिखाई जाती है ! पहले तो कोई ये बताए कि राम राज्य में कौन सा शूद्र मंत्री था ?, या उनके राज्य में शूद्र कहां रहते थे ? आखिर ये देवता और दैत्य कौन थे ? आखिर ये देवता सारे उच्च जाति से ही क्यों थे ? और खास कर आर्य ? आखिर दैत्य जंगलों में ही क्यों रहते थे ? आखिर रावण ने ऐसा कौन सा पाप किया था ?आपकी कथित रामायण के अनुसार उसका अपराध़ यही था कि वह सीता को उठाकर ले गया था,तो भाई अगर आपको सीता के चरित्र पर संदेह था,तो उस बेचारी ने अग्नि परीक्षा देकर साबित कर तो दिया था कि वो पवित्र है और उसने अग्नि परीक्षा देकर अपने ही नहीं रावण के पवित्र चरित्र को भी साबित कर दिया था,कि किस तरह रावण ने सीता को अपनी सबसे सुंदर अशोक वाटिका में महिला पहरेदारों की मौजूदगी में बिल्कुल सुरक्षित रखा और उन्हें स्पर्श तक नहीं किया था।
जब उसने ऐसा कुछ किया ही नहीं तो ये पुतला जलाने का पाखण्ड क्यों ? अरे भई ! रावण ने सीता को उठाया तो उसका हर साल पुतला जलाते हो,तो राजा राम ने भी तो उसकी बहन शूर्पनखा के साथ अपमानजनक व्यवहार किया था, फिर उस हिसाब से राजा राम का तो साल में 2 बार पुतला जलाना चाहिए । आखिर शूर्पनखा भी तो एक महिला ही थी, किसी की बहन-बेटी या पुत्री थी फिर उसके साथ आपकी सात्वंना और सहानुभूति क्यों नहीं जुड़ी है ? इसलिए क्योंकि वह शूद्र और आदिवासी थी !
जरा सोचिए कि आज अगर आपकी अपनी बहन की इज्जत पर कोई डाका डाले तो आप उस व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करेंगे ? निश्चित रूप से वही करेंगे जो उस समय रावण ने किया था तो अपनी बहन की इज्ज्त पर हाथ डालने वालों से बचाने वालों और अपनी बहन की इज्जत के लिए अपना सर्वस्व लुटा देने की सजा,क्या उसका पुतला जलाना ही रह गया है ? तो शायद आज हर भाई का पुतला जलना चाहिए जो आज के सड़क छाप गुंडों से अपनी बहन को बचाने के लिए आगे आकर कभी-कभार अपनी जान से भी हाथ धो बैठता है ।
रावण तो सीता को उठाकर ले गया, लेकिन अपने राज्य में ले जाकर उन्हें अशोक वाटिका में सम्मान-जनक तरीके से रखा था और दूसरी तरफ राम और लक्ष्मण तो उसकी बहन मलब शूर्पनखा की इज्जत पर ही प्रहार करते हैं , तो पुतला रावण का ही क्यों जले ? विचारणीय है कि वाल्मीकि और अन्य विद्वानों के अनुसार प्राचीन भारत में रामायण और महाभारत काल में भी गांधर्व विवाह जिसमें कोई भी बालिग और वयस्क युवती अपने योग्य किसी भी बालिग और वयस्क युवक से प्रणय निवेदन करके वैवाहिक बन्धन में बँध सकती थी और यही कानून सम्मत गांधर्व विवाह के तहत प्रणय निवेदन रावण की बहन सूर्पणखा ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम से किया था । उस समय के तत्कालीन समाज के समय में यह बात बिल्कुल नियमसम्मत थी ।
प्रश्न यह है कि अपराध़ की शुरुआत किसने की ? अगर राम धर्म के पालन करने वाले थे तो प्रणय याचना करने वाली उस युवती मतलब सूर्पणखा से उन्हें स्पष्टता से कहना चाहिये था कि ‘मैं और लक्ष्मण दोनों भाई पहले से ही विवाहित हैं ‘ राम को उससे घिनौना मजाक नहीं करना चाहिये था कि तुम मेरे छोटे भाई के पास जाओ क्या राम को पता नहीं था कि उर्मिला से लक्ष्मण की भी शादी उनके सीता के साथ शादी के समय ही हो चुकी है ?
इस प्रसंग का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि राम -लक्ष्मण दोनों ने उस अबला नारी सूर्पणखा के साथ मानवीयता को तार-तार कर देने वाला व्यवहार आज के संदर्भ में नाक काटने जैसा अपमाजनक व्यवहार किये । आज किसी परिवार की नाक कट गई ,का क्या अभिप्राय होता है ? तो इसमें अपराध़ की शुरुआत किसने की, राम ने या रावण ने ? एक विचारणीय प्रश्न यह है कि किसी की बहन-बेटी इस प्रसंग में रावण की बहन सूर्पणखा की इज्जत पर हाथ डालकर राम-लक्षमण दोनों भाई किस धर्म की रक्षा कर रहे थे ? और रावण अपनी बहन की आबरू पर हाथ डालने वालों को प्रतिशोध स्वरूप सीता का अपहरण कर ले गया तो वह अधर्मी क्यों हो गया ? क्या तथाकथित सभ्य समाज जिसे उच्च आर्य सभ्यता भी कह सकते हैं, में किसी अबला की आबरू से मजाक करना धर्म हुआ करता था ? उन तथाकथित धर्म के रक्षकों से भी यह यक्ष प्रश्न है जो बात-बात में बड़े जोरदार ढंग से नारा लगाते हैं कि धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो ,के उनके इस नारे का क्या तात्पर्य है ?
अब यह समाज के प्रबुद्ध लोग निर्णय करें कि असली अपराधी कौन है राम या रावण ? उस अपराध़ के अनुसार ही हर साल सही अपराधी का पुतला जलना चाहिये । निरपराध रावण का पुतला बहुत जल चुका । राम का क्यों नहीं जलना चाहिए ? आखिर ये दोगला व्यवहार क्यों ? क्योंकि राम कथित उच्च जाति मतलब आर्य जाति से आते थे और रावण रक्ष संस्कृति का रक्षक भारतीय मूल का आदिवासी था । वास्तव में रामायण में वर्णित राम-रावण युद्ध आर्यों का भारत की मूल जातियों पर अधिपत्य का युद्ध था । सीता हरण तो एक बहाना था। आखिर इस पुतला जलाने की प्रथा का कोई ऐतिहासिक प्रमाण तो होना चाहिए ।
वाल्मीकि दयावान जी के नाम पर संस्था बनाकर विभिषण का कार्य करने वालों जरा,वो रामायण तो दिखा दो, जिसमें वाल्मीकि ने रावण के पुतले को जलाने का कहीं भी लिखित में आदेश दिया हो ! रामायण में तो वाल्मीकि ने राम को शम्बूक नामक शूद्र ऋषि को झूठे आरोप में कत्ल करने वाला अपराध करने का दोषी भी करार दिया है,तो क्या राम भी जातिवाद जैसे कलुषित प्रथा में विश्वास करते थे क्या वे भी जातिप्रथा के पोषक थे ? तब तो ये आजकल की रामराज्य की कल्पना करने वालों के लिए करारा झटका होगा।
रावण का पुतला जलाने वाले विभीषणों राजा राम की सजा भी तो निर्धारित करो ! पर अफसोस विभिषण तब भी घर के भेदी थे और आज भी हैं । व्यर्थ की उम्मीद रखना बेकार है । आपके राजा राम तो खुद रावण का गुणगान करते हुए कहते हैं ‘बुद्धिमतां वरिष्ठम् ‘तो कलयुग के विभीषण भाईयों आप तो राजा राम के भी नहीं बने ! कितने दु:ख की बात है कि जिन हिन्दूवादी संतों ने शूद्रों को अपनी पैर की जूती बतलाया है, आज वही हिन्दूवादी संत शूद्रों की टोली के आका बने घूम रहे हैं !

          -निर्मल कुमार शर्मा, 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पाखंड, अंधविश्वास,राजनैतिक, सामाजिक,आर्थिक,वैज्ञानिक, पर्यावरण आदि सभी विषयों पर बेखौफ,निष्पृह और स्वतंत्र रूप से लेखन ', गाजियाबाद, उप्र
Exit mobile version