Site icon अग्नि आलोक

कृषि क्षेत्र की उपेक्षा क्यों?

Share

हिम्मत सेठ 

महाराष्ट्र में एक बार फिर किसानों ने नासिक से मुम्बई तक लोंग मार्च का फैसला किया और चल पड़े। आपको याद होगा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने चुनाव के पहले किसानों से बहुत से वादे किये थे। 2022 तक किसानों की आम दुगुनी करने। खेती की उपज का लागत में 50 प्रतिषत जोड़ कर एम.एस.पी. याने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना तथा सभी तरह के कर्जे माफ करना-जैसे वादे किये थे। हुआ इसका बिल्कुल उल्टा कोविड महामारी के समय मोदी सरकार ने अध्यादेश लाकर किसानों पर तीन कृषि कानून थोप दिये और बाद में बिना बहस और मत विभाजन के संसद के दोनों सदनों से बिल पास करवालिये। जिसका किसानों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया। लगभग 13 माह तक दिल्ली की सीमा पर धरना प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आष्वासन के बाद तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा से यह आन्दोलन समाप्त हुआ। इस घोषणा में एम.एस.पी. पर एक कमेटी बनाने की घोषणा भी हुई थी। लेकिन बहुत ही आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि नरेन्द्र मोदी ने एक साल से भी अधिक का समय हो गया है लेकिन कोई कदम नहीं उठाया। अभी तक एम.एस.पी. पर कोई कमेटी नहीं बनाई। सरकार कृषि क्षेत्र को बाजार के हवाले करना चाहती है जिसका किसान विरोध कर रहे है। चुंकि सरकार किसानों की समस्याओं को हल करने में विफल रही है। इसलिए महाराष्ट्र के किसानों को अपनी मांगों को लेकर लोग मार्च पर निकलना पड़ा।

खेती किसानी पर अभी भी 50 से 60 प्रतिषत लोग अपना जीवन यापन के लिए आश्रित है। सारी उद्योगिक क्रांति और सेवा क्षेत्र के प्रोत्साहन के बाद भी सबसे ज्यादा रोजगार देने की क्षमता कृर्षि क्षेत्र में ही है। इतना होते हुए भी सरकार कृर्षि क्षेत्र की अनदेखी क्यों कर रही है यह समझ के बाहर है? किसानों की मूल दो ही मांगें है। पहली सभी उपज एम.एस.पी. पर खरीदी जाय इसका कानून बने। दूसरा सभी कर्जे माफ हो। जब उद्योगपतियों के 10 लाख करोड के कर्जे सरकार माफ कर सकती है तो किसानों के कर्जे माफ क्यों नहीं कर सकती है?

महाराष्ट्र में एक विशेष परिस्थिति पैदा हुई है जिसमें प्याज की आवक बहुत बढ़ गई है और दाम नीचे गिर गये हैं किसानों का कहना है कि लागत से भी कम दाम मिल रहा है। मौसम के अचानक खराब होने से जो स्थिति बनी है उसमें सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिये तथा किसानों को मुआवजा और सबसिडी देकर भरपाई करनी चाहिये। यह समस्या तात्कालिक है लेकिन किसानों की एम.एस.पी. की मांग से जुड़ी हुई भी है। इसलिए सरकार को सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिये। 20 मार्च को किसान संयुक्त मोर्चा ने भी दिल्ली के राम लीला मैदान पर एक बार कि सरकार को आग्रह किया है कि हमारी मांगे मांग ले नहीं तो पिछले साल से भी बड़ा व उग्र आन्दोलन होगा।

Exit mobile version