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क्यों नहीं यूज करना चाहिए मृतक के सामान

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 डॉ. गीता 

    _जब कोई आत्मा अपना शरीर त्याग देती है तब वह नए शरीर में नई जन्म लेती है, लेकिन इसकी पहली शर्त है उसका शरीर मुक्त होना।_

     अगर आत्मतत्व शरीर से मुक्त ही नहीं हो पाए तो? अगर वह मर जाए तो भी अपने परिवार से मोह का त्याग ना ​​कर पाए तो? यदि कोई एक डोर से भी उसे गिरवी रखता है तो वह अपने परिवार के बीच बना रहेगा.

       मेडिकली मृत व्यक्ति भी उसी क्षण अपना प्राण त्याग देता है, लेकिन उसके शरीर में अभी भी कुछ सांसें शेष रह जाती हैं. वह शायद अभी भी जन्म और मरण के चक्र के बीच एक जंग लड़ रहा है। वह शायद ही अभी भी मरने की कोशिश कर रहा है.

   जब एक बार आत्मा शरीर को त्याग देता है, तब परिवार के लोगों को उस शरीर से जुड़े वस्त्र और अन्य दिखावे चीजों को या तो जला देना चाहिए या फिर उन्हें दान दे देना चाहिए.

    उनका उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए,  क्योंकि यह आत्मा को कभी मुक्त नहीं होने देता है. आत्मा उन कपड़ों के उपयोग के कारण यह समझ नहीं पाता है कि उसे अब इस धरती पर नहीं जाना है।

     वह मृत्यु को छोड़ना चाहता है लेकिन एक बंधन में बंधक बना रहता है. वह अपने कपड़ों की गंध से अपने परिवार और अपने घर की पहचान रखता है।

     जब किसी योगी को उसकी मृत्यु का अंदेशा लग जाता है तब वह अपना पूरा कुटिया को ही जलाकर भस्म कर देता है,  क्योंकि वह ये नहीं चाहता कि उसके शरीर का एक अंश या उसके द्वारा प्रयोग की हुई कोई भी वस्तु मौजूद है रहे. अगर ऐसा होता है तो वह कभी जीवन-मरण के चक्र से मुक्त नहीं होगा।

जन्म और मृत्यु… ये एक धरना सत्य है, जिसने जन्म लिया है उसका अंत तय है और जिसका अंत हुआ है उसे इस धरती पर वापस जन्म भी ले लेता है। तलाक के अनुसार मृत्यु हो जाने के बाद भी आत्मा कहीं ना कहीं अपने परिवार के बीच रहती है.

     वह सब आग्रह करती है लेकिन किसी से कुछ कह नहीं सकती. वह सब सुनती है और महसूस करती है. जब तक शरीर को अग्नि के निशान ना कर दिया जाए, जब तक शरीर का दाह-संस्कार ना हो जाए तब तक वह आत्मा अपने शरीर को वापस पाने की पूरी कोशिश करती है. वह अपने शरीर के बंधन से मुक्त हो जाती है।

   आत्मा अपने शरीर से तो दुश्मन है लेकिन साथ ही साथ उसे अपने कुछ लक्ष्यों से भी बहुत प्यार होता है. जैसे कपड़े, पेन, कोई महंगा सामान, कोई ऐसी चीज जो उसके शरीर के हमेशा करीब रहती है।

    अगर ये सामान परिवार के पास रहेगा और परिवार के लोग इन सभी समझौते का भी उपयोग करेंगे तो कहीं ना कहीं यह उस आत्मा की मुक्ति की राह में बाधा बनता है।

    इसलिए यह माना जाता है कि जब भी कोई व्यक्ति अपना प्राण त्याग देता है तब उसके द्वारा उपयोग किए गए कपड़ों को कभी नहीं पहनना चाहिए।   

      शरीर त्यागने के बाद वह आत्मा केवल एक संबंध रहता है, जो सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी. उस आत्मा की नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाने के लिए उससे संबंधों को किसी निर्धन और ट्वीट को दान देना ही एक बेहतर विकल्प है है।

        हालांकि इस बाबत एक अन्य विचारधारा भी है जो कुछ तक आपको प्रैक्टिकल लग सकती है। दरअसल मृत्यु से कुछ समय पहले से ही व्यक्ति की इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है। इतना ही नहीं अगर किसी व्यक्ति का देहांत किसी बीमारी की वजह से हुआ है तब भी यह बहुत हद तक संभव है कि उन वस्त्रों में कोई बैक्टीरिया या माइक्रो ऑरगैनिज्म रह गए हों, जिन्हें नग्न आंखों से देख पाना लगभग असंभव है।

      जो व्यक्ति उन कपड़ों को धारण करता है मुमकिन है ये बैक्टीरिया उसके शरीर तक पहुंच जाएं इसलिए काफी हद तक सही यही है कि मृत व्यक्ति के कपड़ों का पुन: उपयोग ना किया जाए।

जब हमारा कोई प्रिय अपने प्राण त्यागता है तब उसके साथ जुड़े रहने के लिए हमारे पास केवल उसकी यादें शेष बच जाती हैं…जिसमें कुछ उनका सामान भी है। अगर हम मृत व्यक्ति का सामान अपने पास रखते हैं और उसका उपयोग भी करते हैं तब यह हमें मानसिक रूप से कमजोर कर सकता है, हमें उस दुखद क्षण को भूलने नहीं देता, अपने आप को जीवन की गति के साथ आगे बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि उन वस्तुओं को दान कर दिया जाए जो आपको अतीत की यादों में बांधकर रख सकती है।

       आप हर स्थिति में, हर किसी व्यक्ति से व्यवहारिक होने की अपेक्षा नहीं कर सकते.

   मेरे एक परिचित हैं, वे जब भी किसी शुभ कार्य के लिए जाते हैं अपने पिता का कोट पहन लेते हैं। उन्होंने अपने पिता के अधिकांश कपड़े तो गरीबों में बांट दिए हैं, लेकिन एक निशानी के तौर पर वह कोट उन्होंने अपने पास सहेजकर रखा है। अगर उनसे कभी भी ये कहा जाए कि इस कोट को किसी गरीब को दान में दे देना चहिए तो वे काफी भावुक हो जाते हैं।

अगर आप इस बात में विश्वास करते हैं कि मृत्यु के बाद भी जीवन है. मृत्यु अंत नहीं बल्कि उस आत्मा की एक नई शुरुआत है तब आपको यही कोशिश करनी चाहिए कि सिर्फ उन कपड़ों या अन्य किसी सामान की वजह से, मुक्त हो चुकी आत्मा की यात्रा को बाधित ना करें।

     आत्मा स्वच्छंद है, शायद वह एक शरीर की तलाश में जुटने जा रही है… उसे रोकें नहीं, आगे बढ़ने दें, एक नया आगाज करने दें। (चेतना विकास मिशन).

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