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केंद्रीय चुनाव आयोग के ऊपर विश्वास क्यों नहीं

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सनत जैन

आम नागरिकों और राजनीतिक दलों को, केंद्रीय चुनाव आयोग के ऊपर विश्वास क्यों नहीं रहा है। इसके बहुत सारे कारण हैं चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को देखते हुए, अब आम वोटर चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है। मतदाताओं को ऐसा लग रहा है। चुनाव के परिणाम वैसे ही अपेक्षित हैं, जैसा सरकार दावा कर रही है। चुनाव आयोग की भूमिका भी सरकार के पक्ष में है। जिसके कारण मतदाताओं में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर कोई उत्साह नहीं रहा है। गोदी मीडिया और राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों की सभाओं में जरूर भीड़ देखने को मिल रही है। अधिकांश सभाओं की भीड़ लाई गई होती है। इसमें मतदाताओं की संख्या कम, बेरोजगारों की संख्या जो अपनी दिहाड़ी कमाने के लिए पहुंचते हैं। भारतीय लोकतंत्र का संकट इस चुनाव में पहिले की तुलना में बढ़ गया है। मतदाताओं को राजनीतिक दलों और राजनेताओं के ऊपर विश्वास नहीं रहा। रही-सही कसर चुनाव आयोग ने पूरी कर दी है। भाजपा ने कई महीने पहले से 400 पार का नारा लगाना शुरू कर दिया था। चुनाव आयोग के दो आयुक्तों की नियुक्ति लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के 1 दिन पहले जल्दबाजी में की गई। प्रधानमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री की अनुशंसा पर 2 चुनाव आयुक्त बनाए गए। विपक्ष को समय पर अपना पक्ष रखने का मौका सरकार ने नहीं दिया। जिसके कारण चुनाव आयुक्तों को लेकर आमजन के मन में यह धारणा बन गई है। यह सरकार द्वारा नियुक्त चुनाव आयोग है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जिसमें चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली, ईवीएम मशीन और वीवीपीएटी मशीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकायें खारिज करते हुए कहा, नागरिकों को चुनाव आयोग पर विश्वास रखना चाहिए। चुनाव आयोग की वर्तमान कार्य प्रणाली मैं निष्पक्ष चुनाव कराने की दिशा में कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। सत्ता पक्ष की शिकायत पर विपक्षी दलों के ऊपर चुनाव आयोग तुरन्त एक्शन लेता है। लेकिन सत्ता पक्ष के ऊपर जो शिकायतें विपक्षी दलों द्वारा की जाती है। उन मामलों पर चुनाव आयोग चुप्पी मारकर बैठ जाता है। विपक्षी दल बार-बार चुनाव आयोग को शिकायत करते हैं। चुनाव आयोग ना तो कोई जवाब देता है, ना कार्रवाई करता है। लोकसभा चुनाव के दो चरणों का मतदान हो चुका है। पहले चरण के मतदान मैं जिन सीटों पर मतदान हुआ। उन सीटों के मतदाताओं का आंकड़ा और कितना मतदान हुआ है। भारी दबाव के बाद 11 दिन बाद इसका आंकड़ा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर केवल प्रतिशत के रूप में दर्ज किया गया है। ना तो कुल मतदाताओं की संख्या बताई गई। कितने मतदाताओं ने मतदान में भाग लिया है। इसकी संख्या भी नहीं है। प्रारंभिक रूप से जो मतदान का परसेंटेज बताया गया था। उससे 6 फ़ीसदी ज़्यादा का आंकड़ा चुनाव आयोग ने आधी अधूरी जानकारी के साथ 11 दिन बाद बताया है। दूसरे चरण के मतदान की भी जानकारी केवल प्रतिशत के रूप में दी गई है। मतदाताओं और मतदान करने वालों की संख्या का कोई विवरण नहीं दिया गया। चुनाव आयोग जब इस तरह से काम करेगा, तो इस पर कौन विश्वास करेगा। आम जनता को लग रहा है, सरकार जो चाहती है, वहीं चुनाव आयोग कर रहा है। ऐसी स्थिति में चुनाव परिणाम भी वही होंगे, जो सरकार और चुनाव आयोग द्वारा तय किए जाएंगे। चुनाव प्रचार में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेता दुष्प्रचार प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों द्वारा सप्रमाण चुनाव आयोग को शिकायत की गई। चुनाव आयोग ने कोई कार्यवाही नहीं की। दो चरणों के मतदान की जानकारी भी 24 घंटे के अंदर चुनाव आयोग के पोर्टल पर नहीं डाली गई। किस संसदीय क्षेत्र में कितने मतदाता हैं, यह भी चुनाव आयोग ने अभी तक नहीं बताया है। ईवीएम और वीवीपेट की मशीनें बिना राजनीतिक दलों को बताएं यहां से वहां ले जाई जा रही हैं। जगह-जगह पर उन्हें पकड़ा जा रहा है। चुनाव आयोग उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। कम मतदान होने के बाद भी 11 दिन बाद 6 फ़ीसदी मतदान बढाकर चुनाव आयोग द्वारा केवल प्रतिशत में बताया गया है। जिसके कारण मतदाताओं की उदासीनता चुनाव को लेकर बढ़ रही है। चुनावों को लेकर जो डर और भय अभी तक राजनीतिक दलों और राजनेताओं पर देखा जाता था। वही डर और वह भय मतदाताओं के दिलों और दिमाग में भी देखने को मिल रहा है। प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी कई राजनैतिक दलों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा आधी-अधूरी जानकारी देने, चेनाव आयोग द्वारा अपने ही बनाये गए नियमों का पालन नहीं करने पर आपत्ति दर्ज कराई है। लोकसभा 2024 के चुनाव में जीत किसी की भी हो, मतदाता और लोकतंत्र की हार निश्चित रूप से होती हुई दिख रही है। अब लोग न्यायपालिका को लेकर भी चर्चा करने लगे हैं। 2014 की न्यायपालिका और 2024 की न्यायपालिका की तुलना की जाने लगी है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। यदि उसके अधिकारी नियमानुसार काम नहीं कर रहे हैं। अपने ही बनाए हुए कानूनो की अनदेखी कर रहे है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को लेकर अपनी आंख बंद कर ली है। नागरिकों को कह दिया है, कि उसे चुनाव आयोग पर विश्वास रखना चाहिए। ऐसी स्थिति में मतदाताओं में उदासीनता आना स्वाभाविक है। इसका असर मतदान के पहले और दूसरे चरण में देखने मिला है। आगे भी शायद यही स्थिति बनी रहेगी।

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