अग्नि आलोक

तैयारी के बावजूद क्यों हो जाती है हिंसा ?

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नीरजा चौधरी

रामनवमी के दिन देश के कुछ इलाकों में हिंसा की घटनाएं नई चीज नहीं हैं। पिछले साल भी जब रामनवमी के जुलूस निकले थे, तब तकरीबन 10 प्रदेशों में हिंसा हुई थी। लेकिन यह हर बार होता है तो हर बार क्या तैयारी नहीं की जाती या तैयारी के बावजूद यह हिंसा हो जाती है? यह सवाल है, जिसका जवाब नहीं मिला है। जब यह इतनी बार हो चुका है तो प्रशासन को मुस्तैद रहना चाहिए। मगर जिस तरह से यह इतने सारे राज्यों में हुआ है और एक ही दिन हुआ है तो इसके पीछे क्या चीज है, इसे समझने की जरूरत है।

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रामनवी पर हिंसा के बाद सुरक्षा बलों का मार्च

ध्रुवीकरण का पैटर्न

सांप्रदायिक हिंसा से ध्रुवीकरण बढ़ता है, जिसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जाती है। आइए, इसे इन घटनाओं के जरिये समझते हैं:

किसे होता है फायदा

इस पर गहन अध्ययन की जरूरत है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। लेकिन कुछ बातों से अंदाजा मिल सकता है।

बिहार के नालंदा में भी उपद्रव

RSS से आगे

एक चीज और है कि पहले ऐसा कोई जुलूस किसी ऐसे संवेदनशील इलाके से गुजर रहा होता था तो लोग उस ओर जाने से बचते थे क्योंकि वे शांति भंग नहीं करना चाहते थे। आज हिंदू कहता है कि हम जहां जाना चाहें वहां क्यों नहीं जा सकते? सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में भी यही सवाल किया गया है। दूसरी ओर दक्षिणपंथी हिंदू संगठन खुद ही खड़े हो गए हैं, जो RSS से भी आगे चले गए हैं। RSS के ही किसी ने 2015 में मुझसे कहा था कि बीजेपी को चुनौती बाहर से नहीं बल्कि अंदर के दक्षिणपंथी संगठनों से ही है। बहरहाल, बंगाल में हिंसा बीजेपी को ध्रुवीकरण में मदद कर सकता है, लेकिन तृणमूल भी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी। आपको याद होगा कि पिछले चुनाव में ममता बनर्जी ने बंगाली बनाम बाहरी का मुद्दा उठाया था, जो उनकी जीत का बड़ा कारण बना था। चूंकि रामनवमी सीधे तौर पर बंगाली संस्कृति से नहीं जुड़ी है, यह मामला ममता बनर्जी के लिए ज्यादा मददगार साबित हो सकता है।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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