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*पत्नी अर्द्धागिनी क्यों?* 

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          ~ नीलम ज्योति 

पत्नी पति के शरीर का आधा हिस्सा होती है और साथ ही लक्ष्मी स्वरूप भी होती है। कई शास्त्रों में इसको लेकर अलग-अलग वर्णन किए गये हैं।

    पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। इसका कारण ये है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है, जिसका प्रतीक शिव का अर्धनारीश्वर शरीर है। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।

     शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है। इसलिए सोते समय और सभा में आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री को पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती। ऐसा शास्त्रों में वर्णित किया गया है।

वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने की बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान विवाह यज्ञकर्म, जातकर्म नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।

     पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क ये है कि जो कर्म सांसारिक होते हैं। उसमें पत्नी पति के दायीं ओर बैठती है। क्योंकि ये कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।

      यज्ञ कन्यादान विवाह ये सभी पारलौकिक कार्य माने जाते हैं। इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।

*स्त्री को अर्धांगिनी कहने की वज़ह :* 

     पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा. इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है पत्नी पति के शरीर का आधा अंग।

     दोनों शब्दों का सार एक ही है। जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है। पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है। उसे खुशहाली प्रदान करती है। उसके परिवार का ख्याल रखती है। और उसे सभी सुख प्रदान करती है जिसके वो योग्य है. पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है। 

महाभारत में भी पति पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है। भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये, क्योंकि उसी से वंश की वृद्धि होती है। वो घर की लक्ष्मी है। यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेंगी।

     इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।

       गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों। उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये। कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में इंद्र अति भाग्यशाली थे.

   सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा। सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।

      यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है। जो प्रियवादिनी है। जिसके पति ही प्राण हैं। जो पतिपरायणा है वास्तव में वही पत्नी है। प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी।

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