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इंकलाब की मांग करते मुट्ठी भींचे हुए मेहनतकशों में मिलेंगे 

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मुनेश त्यागी

सवालों में मिलेंगे
जवाबों में मिलेंगे,
मूर्तियों में तो नहीं
हम किताबों में मिलेंगे।

खेतों में मिलेंगे
खलिहानों में मिलेंगे,
खेती-किसानी को बचाते हुए
हम किसानों में मिलेंगे।

अदालतों में मिलेंगे
पुस्तकालयों में मिलेंगे,
सस्ते और सुलभ न्याय के लिए
लड़ते हुए वकीलों में मिलेंगे।

विद्यालयों में मिलेंगे
महाविद्यालयों में मिलेंगे,
इस देश को विकास की राह दिखाते
शिक्षण संस्थानों में मिलेंगे।

सबको शिक्षा और
सबको काम की मांग करते हुए,
करोड़ों छात्रों में मिलेंगे
करोड़ों नौजवानों में मिलेंगे।

संघर्षों में मिलेंगे
आंदोलनों में मिलेंगे,
मुट्ठी भींचे हुए मजदूरों के
कारखानों में मिलेंगे।

सवालों में मिलेंगे
जवाबों में मिलेंगे,
संघर्षों के मैदानों में
खेतों और कारखानों में मिलेंगे।

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