शशिकांत गुप्ते
बांध टूट फुट गया। जाँच होगी। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
सख्त से सख्त सज़ा दी जाएगी।
उक्त संवाद सुनने और पढ़ने में बहुत कर्णप्रिय लगतें हैं।
अहम प्रश्न तो यह है कि,दोषी कौन?
इस संदर्भ में सन 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म ऊंचे लोग के गीत की इन पँक्तियों का स्मरण हुआ। इस गीत को लिखा है,
शायर मजरूह सुल्तानपुरीजी ने
अजब तेरी दुनिया गज़ब इंसान
दोष तो है अंधियारे का
हाथ ने सूझे हाथों को
सच रोये और झूठ हँसें
कैसी तूने रीत रची भगवान
पाप करें पापी भरें पुण्यवान
इनदिनों पापी कौन और पुण्यवान कौन ये परखना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन है।
यदि कोई Social activist मतलब सामाजिक कार्यकर्ता यदि किसी व्यक्ति पर भ्रष्ट्राचार का कोई आरोप लगा भी दे, तो उन आरोपों को सिद्ध करना असंभव है/
हमारे यहाँ पुण्यकर्म करने जितने अवसर उपलब्ध हैं, उससे कईं गुणा अधिक पाप धोने के तरीके मौजूद हैं।
पाप धोने के लिए विभिन्न टोटकों के अलावा असंख्य अनुष्ठान हैं।
इनके अतिरिक्त पाप धोने के लिए पवित्र नदियाँ हैं ही।
हाल ही के दिनों में मतलब लगभग छियानवें माह पूर्व एक अदृश्य धुलाई करने वाली मशीन उपलब्ध हो गई है। इस मशीन को बहुत से लोग वाशिंग मशीन कहतें हैं।लेखक इस तर्क से सहमत नहीं है,कारण वाशिंग मशीन तो सिर्फ कपड़ों को धोती और सुखाती है।यह अदृश्य चमत्कारिक मशीन करोड़ो अरबों रुपयों के भ्रष्ट्राचार के आरोपों ना सिर्फ धोती है बल्कि आरोपी को बेदाग़ कर देती है।
इस नायाब मशीन का विज्ञापन नहीं होता है।इसका उपयोग बहुत ही अजब तरीके किया जाता है। गोपनीय तरीक़े से साउंड प्रूफ जगह वार्तालाप होकर आरोपियों पर लगे आरोपों की फाइलें नदारद हो जाती हैं।
ना रहें न बांस न बजे बांसुरी वाली कहावत चरितार्थ होती है।
वर्तमान में आमजन स्थिति ऐसी है कि,
दिखला के किनारा हमें मल्लाह ने लूटा
कश्ती भी गई हाथ से पतवार भी छूटा
बहरहाल मुद्दा है। बांध का टूटना और फूटना। बांध के टूटने से जानमाल का नुकसान होता है। तादाद में आमजनों की स्थिति साँसत आ जाती है।
सवाल यही उपस्थित होता है दोषी कौन?
इस समूर्ण लेख को पढ़कर लेखक के व्यंग्यकार मित्र सीतारामजी ने अपनी टिप्पणी इस तरह प्रकट की।
दोषियों का इलाज़ तब संभव होगा जब आमजन के धैर्य का बांध टूटेगा।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है,
इतना भी मेरे सब्र का इम्तिहान ना ले, ऐ जिन्दगी,
जलजला जब भी आता है, सबकुछ बहा ले जाता है
एक मशवरा है कि बिल्ली की आदत की नकल नहीं करना चाहिए।
बिल्ली की आदत होती है, जब वह दूध पीती है, तब बिल्ली स्वयं की आँखें बंद कर लेती है। यह समझकर की उसे चोरी छिपे दूध पीते हुए कोई भी देख नहीं रह है।
भ्रम कभी भी यथार्थ नहीं होता है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर