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क्या विकलांग केंद्रीय चुनाव आयोग लोकसभा चुनावों को कराएगा

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राकेश अचल

केंद्रीय चुनाव आयोग अर्थात केंचुआ के बारे में हमने दो दिन पहले ही विमर्श किया था। केंचुआ यानि भूमि नाग अब एकदम विकलांग हो गया है । केंचुआ के तीन भाग होते है । यानि एक मुख्य और दो सहायक। केंचुआ के एक और अंग को अचानक काट दिया गया है। एक लोकसभा चुनाव में अब कुछ सप्ताह का समय बचा है। भारत का निर्वाचन आयोग इस महीने किसी भी वक्त चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा करना है। उससे पहले निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने अपने पद से इस्तीफा दे कर देश को चौंका दिया है। उनके पद छोड़ने के बाद भारतीय निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार अकेले बचे हैं। तीन सदस्यीय इस आयोग में निर्वाचन आयुक्तों के दोनों पद खाली हो गए हैं। अरुण गोयल के अलावा, दूसरे निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडे इस साल फरवरी में सेवानिवृत्त हुए थे। तबसे उनकी जगह किसी की नियुक्ति नहीं हुई है। अब सवाल यह है कि क्या मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार अकेले आगामी लोकसभा चुनावों को संपन्न कराएंगे ?
आपको याद दिला दूँ कि पिछले चार साल में अशोक लवासा के बाद ये दूसरे निर्वाचन आयुक्त हैं, जिन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया है। हालांकि, अशोक लवासा के पद पर रहते मुख्य निर्वाचन आयुक्त और साथी निर्वाचन आयुक्त के साथ उनके मतभेदों के किस्से सार्वजनिक थे। अगस्त 2020 में लवासा ने चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा दे दिया था,बाद में उन्हें एशियन डेवलपमेंट बैंक के उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। अरुण गोयल 1985 बैच, पंजाब कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी रहे हैं। उन्होंने 18 नवंबर, 2022 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और इसके अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था, जिस पर विवाद छिड़ गया था। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था।
आपको ये बताना आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल तलब की थी और सरकार से पूछा था कि उनकी नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई ? अरुण गोयल 37 वर्षों से अधिक की सेवा के बाद भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। अरुण गोयल का कार्यकाल 2027 तक था, लेकिन वे अचानक ये पद छोड़ गए है। उनका त्यागपत्र राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू ने आनन-फानन में स्वीकार कर लिया है ।अब कहा जा रहा है कि गोयल को अपने खिलाफ फैसला आने की आशंका th। कुछ लोग कह रहे हैं कि वे भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले हैं ,लेकिन कांग्रेस कहती है कि अगर हम स्वतंत्र संस्थानों के व्यवस्थित विनाश को नहीं रोकते तो हमारे लोकतंत्र पर तानाशाही हावी हो जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि अब केंचुआ गिरने वाली अंतिम संवैधानिक संस्थाओं में से एक होगी। चुनाव आयुक्तों के चयन की नई प्रक्रिया अब प्रभावी रूप से सत्तारूढ़ दल और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के पास चली गईं हैं। कार्यकाल पूरा होने के 23 दिन बाद भी नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति क्यों नहीं की गई। मोदी सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए।
कांग्रेस महासचिव संगठन के सी वेणुगोपाल ने कहा कि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए बेहद चिंताजनक है। उनका आरोप है कि सरकार उस पर किस तरह दबाव डालती है, इस बारे में कोई पारदर्शिता नहीं है। यह रवैया दर्शाता है कि शासन लोकतांत्रिक परंपराओं को नष्ट करने पर तुला हुआ है। वेणुगोपाल का कहना है कि केंचुआ को हर समय पूरी तरह से गैर-पक्षपातपूर्ण होना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने कहा कि यह चिंताजनक है। आम चुनाव से पहले पैनल में दो नियुक्तियां की जानी चाहिए।
गोयल ने अपना इस्तीफा क्यों दिया ये अभी तक स्पष्ट नहीं है। अपने इस्तीफे के बारे में या तो गोयल साहब खुद बता सकते हैं या फिर ईश्वर को इस बारे में पता होगा। मुमकिन है कि गोयल से इस्तीफा दिलाया गया ह। मुमकिन है कि इसके पीछे कोई सोची-समझी साजिश हो ? अन्यथा ऐसा अचानक क्या हुआ कि आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले गोयल ने इस्तीफा दे दिय। क्या इसे राष्ट्रद्रोह नहीं माना जाना चाहिए ?उन्हें इस्तीफा देना था तो पहले ही दे सकते थे ? यदि गोयल के इस्तीफे के पीछे कोई सियासी वजह है तो ये बेहद गंभीर मामला है और यदि कोई डर-भय या दबाब है तो भी इसे गंभीर ही माना जाना चाहिए। गोयल का इस्तीफा लोकतंत्र के साथ मजाक ह। उस संविधान के साथ मजाक है जिसकी शपथ लेकर उन्होंने सेवा की शपथ ली थी।
गोयल गणित से एम.एससी. हैं। सारा गुना-भाग समझते हैं। उन्होंने पंजाबी विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाओं में प्रथम श्रेणियां हासिल करने और कीर्तिमान ध्वस्त करनेके लिए चांसलर मेडल ऑफ एक्सीलेंस से सम्मानित किया गया था। वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के चर्चिल कॉलेज से डेवलपमेंटल इकोनॉमी में डिस्टिंक्शन के साथ पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उनकी ट्रेनिंग हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जॉन एफ कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट से हुई है। अरुण गोयल ने फिर से एक कीर्तिमान ध्वस्त किया है साथ ही उन परम्पराओं को भी ध्वस्त किया है जो तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन जैसे लोगों ने बनाईं थीं। बहरहाल अरुण गोयल के इस्तीफे का सच आज नहीं तो कल सबके सामने आएगा ही ,लेकिन एक बात जरूर है कि इस देश में इन दिनों जो कुछ हो रहा है ,वो शुभ नहीं है। न देश के लिए और न लोकतंत्र के लिए। इस अशुभ के लिए कौन जिम्मेदार है ये बताने कि जरूरत नहीं है।
गोयल के इस्तीफे से केंचुआ का काम प्रभावित होगा या नहीं ये तो विशेषज्ञ जानते होंगे ,लेकिन आम जनता ये जानती है कि इस घटनाक्रम से केंचुआ के काम पर असर तो पड़ेगा ह। अब अकेले मुख्य चुनाव आयुक्त कितनी भाग-दौड़ कर पाएंगे ,चुनावों की निष्पक्षता की कितनी गारंटी दे पाएंगे ये कहना कठिन ह। हमारे यहां तो कहते हैं कि -अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त को अब अकेले ही सब कुछ करना होगा ,क्योंकि मान लीइजीए कि केंद्र सरकार आनन-फोन में नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर भी दे तो तो भी रातों-रात वे आयोग के लिए उपयोगी नहीं होंगे और उनके ऊपर सरकार का पिठ्ठू होने के आरोप लगेंगे सो अलग। दरअसल ये सब देश में विपक्ष के कमजोर होने की वजह से हो रहा ह। आज देश में निरंकुशता के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ने वाले हैं तो तमाम किन्तु सबके सब बिखरे हुए हैं ,इसीलिए अराजकता और निरंकुशता कुलांचे भरते हुए आगे बढ़ रही है।

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