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*क्या मध्यप्रदेश में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने तक बचेंगे खोजी पत्रकार ?*

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देश के चौथे स्तंभ को कुचलते राजनेता और अधिकारियों पर कब चलेगा बुलडोजर ? 

*मध्यप्रदेश में पीटते और गाली खाते पत्रकारों का कोई नही रक्षक !*

पत्रकार सुरक्षा कानून के संबंध में तीन महीने से ज्यादा होने पर भी क्या हुआ ज्यादातर को नही मालूम ? 

*जब पत्रकार कट जाए, पिट जाए तब कुम्भकर्णी नीद से अपनी रोटी सेकने जागते है पत्रकार संगठन ?*

मनीष कुमार राठौर / भोपाल 

8109571743

*लोकतांत्रिक देश में पीटते और गाली खाते पत्रकारों के लिए पत्रकार संगठन और स्थानीय सरकार ? क्या कर रही है यह एक चिंतनीय प्रश्न है*  पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करता है तो हिंसा और धमकी का सामना करना पड़ता है, आम जनता के हक और शासन प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकार के लिए आज अपनी सुरक्षा करना हिमालय पहाड़ चढ़ने जैसा हो गया है । 

*मध्यप्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश क्रमांक 19-45/2023/1/4 – 20 सितंबर 2023 में पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए बनी समिति आज भी सीमित है, वरिष्ठ पत्रकार से लेकर, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव और जनसंपर्क जैसे विभाग के अधिकारी आज भी प्रतिवेदन को मूर्त रूप क्यों नही दे पाए ?* आखिर क्या कारण है की जब पत्रकारों की सुरक्षा की बात आती है तो देश में सिर्फ दो ही राज्य महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ कुछ हद तक कार्य कर पाए है जबकि आज भी इन राज्य में बने कानून अपनी कमियों के कारण पत्रकार के लिए लाभप्रद नही हो  पाए है, जबकि देश में वोट बैंक को साधना हो तो नियम कानून सहित अनेक योजना यूंही बन जाती है ।  वही देश के चौथे स्तंभ को अपने हक के लिए दर दर की ठोकरें खानी पढ़ती है, यही देश का दुर्भाग्य है कि पत्रकारों की सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को 2012 से अपनाया गया, यूनेस्को की विश्व रुझान रिपोर्ट भी आ गई उसके बाद भी भारत में आज तक कलमकारों के लिए कोई भी सरकार ठोस कदम नहीं उठा पाई है । 

देश सहित प्रदेश में जन्में पत्रकार और उनकी आड़ में राजनीति करने वाले पत्रकार संगठन चिल्ला चिल्ला बोल रहे देश का चौथा स्तंभ खतरे में है,  एक पत्रकार आम जनता के हित के लिए खबर लिखता है परंतु जनता भी उसका सहयोग तब नही करती जब उनके ऊपर विपत्ति अति है । *पत्रकार सिर्फ ज्ञापन देता है इससे क्या होगा, न कल कुछ हुआ न आज कुछ होगा ऐसे ज्ञापन जिम्मेदार ले कर रद्दी की टोकरी में डाल देते है । यदि इतने ही संगठन वाले संगठित होते तो आज शक्ति कि तस्वीर कुछ और होती ।*  उस पत्रकार की कोई चिंता नहीं करता जो जान जोखिम में डाल कर खबर के संकलन से लेकर प्रसारण तक जोखिम उठाता है । 

लिखने का उद्देश्य, पिछले 3 महीनों में एक अधिमान्य पत्रकार, एक भोपाल में पत्रकार, एक खंडवा में पत्रकार एक बैतूल में पत्रकार, एक नरसिंहपुर में पत्रकार के साथ घटना हुई जिसमें संगठन और मध्यप्रदेश सरकार चुप ! इसलिए अच्छे, ईमानदार, जाबाज, निड़र, निष्पक्ष, पत्रकार की उम्मीद सरकार के कैसे कर सकती है जब उनको सुरक्षा तक प्रदान नही की जा रही हो ?  

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