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क्या चाह की दुकान पर निःशुल्क अखबार पढ़ाना होगा अपराध ?

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-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

एक प्रतिष्ठित अखबार समूह ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर वाट्सएप ग्रुप्स पर उसके अखबार डाउनलोड किये जाने पर व आदान प्रदान करने को अवैद्य करार करते हुए उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है जिसे माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई तक के लिए मान्य कर लिया है। उन 85 वाट्सएप ग्रुपों के एडमिन्स को समन जारी किया गया है जिनके ग्रुपों को अखबार समूह ने चिह्नित किया है। अखबार समूह का का कहना है कि उन्होंने अपना अखबार प्रिंट मीडिया के अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक रूप में सदस्यता आधारित मॉडल पर अपनी वेबसाइटों के माध्यम से प्रसारित करना शुरू किया। प्रकाशन के डिजिटलीकरण की उक्त प्रक्रिया में गुणवत्तापूर्ण सेवा प्रदान करने के साथ-साथ समाचार पत्रों की पाठक संख्या बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास और अन्य संसाधनों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। इसके संदर्भ में, एक पाठक सदस्यता शुल्क का भुगतान करके  समाचार पत्र की सदस्यता ले सकता है। सदस्यता एक एकल उपयोगकर्ता के लिए वेबसाइट पर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए सामग्री ब्राउज़ करने के लिए है, और ग्राहक के पास ई-समाचार पत्र डाउनलोड करने का विकल्प नहीं है। समाचार पत्र के अनुसार जो सदस्यता का पैसा चुकाये केवल वही इनका समाचार पत्र पढ़ने का अधिकारी है।        
समाचार पत्र की इस याचिका से कई प्रश्न उठ खड़े हो जाते हैं। यदि माननीय हाई कोर्ट इनकी बात मान लेता है तो इनके समाचार पत्र की हार्ड कॉपी पर भी यही नियम लागू होगा और 
अब तक जो समाचार चाय की दुकान पर सभी ग्रहक निशुल्क पढ़ सकते थेे, अब केवल वह अखबार खरीदने वाला ही पढ़ सकेगा, वाचनालय के अन्य सदस्यों द्वारा वह अखबार पढ़ा जाना अवैद्य होगा, इस कारण उस चाय दुकान के मालिक/व्यवस्थापक पर कार्यवाही की जा सकेगी है। इसी तरह जिन सर्वाजनिक स्थानों- वाचनालय, पुस्तकालय, होटल का रिसेप्शन, अस्पताल आदि में सर्वजन के अवलोकनार्थ अखबार रख दिया जाता है उन पर भी वही नियम लागू हो सकेगा। क्योंकि वाट्सएप ग्रुप में अधिकतम 256 सदस्य रखे जा सकते हैं, औसतन सौ सवा सौ सदस्य एक ग्रुप में रहते हैं, इसकी अपेक्षा एक सामान्य सी चाय की दुकान पर दिन भर में आठ-नौ सौ ग्राहक आते हैं। वाचनालय के तो वाकायदा सशुल्क सदस्य होते हैं।
याचिकाकर्ता अखबार ने 85 वाट्सएप ग्रुप्स के एडमिन के खिलाफ रिट दाखिल की है, उनके स्क्रीन शॉट भी न्यायालय में प्रस्तुत किये हैं और यह स्वीकार किया है कि ‘वह अखबार वाट्सएप ग्रुप को ट्रैक करने में सक्षम है।’ इस आधार पर इन्होंन कई हजार वाट्सएप ग्रुप्स में सेंधमारी की होगी जिनमें से 85 ग्रुप्स में इनका अखबार डाउनलोड किया हुआ मिला।
यहॉ दो प्रश्न बहुत बड़े हैं। एक यह कि इस अखबार समूह ने वाट्सएप ग्रुप में सेंधमारी कर के व्यक्ति समूह की निजता का हनन किया है। दूसरा यह कि भारत सरकार को तत्काल प्रभाव से इस अखबार पर प्रतिबंध लगाकर यह जांच करानी चाहिए कि भारत के महत्वपूर्ण वाट्सएप ग्रुपों में सेंधमारी कर इस अखबार के तक्नीशियन देश की महत्वपूर्ण सूचनाओं का विक्रय या दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हैं।
जब अखबर की एक कॉपी को वाचनालय, चाय-दुकान, अस्पताल, होटल आदि में हाजारों लोग पढ़ सकते हैं तो उसकी डिजिटल कॉपी को एक ग्रुप के सौ-सवा सौ सदस्य भी पढ़ सकते हैं। हॉ, यदि कोई उस प्रति को पैसे लेकर बेच रहा हो तब आपत्ति बनती है। फिर जब आप कहते हैं कि डाउनलोड की सुबिधा नहीं है तो अखबार डाउनलोड कैसे हो गया। आपको ही डाउनलोड की सुविधा नहीं रखना चाहिए, या एक व्यक्ति ही केवल उसे पढ़ सके ऐसी सुविधा रखें अन्य पढ़े तो उसे मूल्य चुकाना पड़े।

-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

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