अग्नि आलोक

क्या इस बार महाराष्ट्र  विचित्र मल्लखम्ब से बचेगा

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वर्षा मिर्जा 

महाराष्ट्र के एक शहर में गुजराती परिवार रहता था। लगभग तीन दशक से वहां रहते हुए परिवार अपने व्यवसाय को खासा जमा चुका था। इस काम में   वहां पहले से बसे गुजराती उद्योगपति ने उनकी काफ़ी मदद की थी। मन ही मन परिवार के मुखिया उनका बहुत एहसान मानते थे। पहले पहल तो सबकुछ व्यवसाय तक ही सीमित रहा लेकिन फिर उद्योगपति ने उनके घर के फ़ैसलों में दखल देना शुरू कर दिया। मुखिया अपने रुतबे को बरक़रार रखना चाहते थे इसलिए सब स्वीकारते गए लेकिन तक़लीफ़ तब शुरू हुई जब उद्योगपति ने बच्चों के ब्याह-शादियों में भी बोलना शुरू कर दिया। रिश्तों में यह दखल नई पीढ़ी को बर्दाश्त नहीं हुआ। दादाजी के आगे जब आवाज़ ऊंची हुई तो घर में कोहराम मच गया। “इस घर की आन-बान में आग मत लगाओ ” दादाजी का सख़्त वाक्य पूरे घर में चेतावनी की तरह गूँज गया। एक पोता अपनी ज़िद में घर छोड़ गया। उसका हश्र देखकर शेष परिवार की फिर कभी हिम्मत नहीं हुई कि कुछ बोले। बाहरी शान यूं ही बनी रही और उस उद्योगपति की हर मर्ज़ी का पालन उस घर में होने लगा  अक्सर बच्चे कसमसाते कि हम पर कुछ ज़्यादा समझोते लादे जा रहे हैं लेकिन बोलता कोई कुछ नहीं था। कभी-कभार हल्कि आह उभरती लेकिन फिर वह भी दबा दी जाती थी। 

अभी जो आवाज़ महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार की आई है जिसकी तस्दीक फिर शरद पवार ने भी की है,वह भी इसी कतार में रखी जा सकती है। सच तो यह है कि अपनी सुविधाओं और ऊंची महत्वाकांक्षाओं को कोई छोड़ना नहीं चाहता। वह बलि देता चलता है अपनी और अपने से जुड़े लोगों की। जब ऐसा सियासत में होता है, शिकार  पूरा देश होता है। एक विशाल देश का भविष्य उसके चुने हुए नेता की बजाय चंद उद्योगपतियों की मुट्ठी में कैद हो जाता है। बेशक शुरुआत में अर्थव्यवस्था को कुछ गति मिलती है लेकिन यह आशंका हमेशा बनी रहती है कि उनके व्यापार–घाटे के बढ़ते ही देश की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बदले में सरकारी नीतियों में दख़ल और अपने हित  ऊपर रखते हुए पर्यावरण और जनहित को ताक पर रखना कोई छिपी बात नहीं है। हाल ही में अजित पवार ने एक इंटरव्यू में कहा -“पांच साल पहले क्या हुआ सब जानते हैं.. सब जानते हैं बैठक कहां हुई ..मैं फिर से चेता देता हूं वहां अमित शाह ,गौतम अडाणी ,देवेंद्र फडणवीस,प्रफुल्ल पटेल और मैं था ,पवार साहब भी थे। “इस ख़ुलासे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में चुनाव से ठीक पहले और भूचाल ला दिया है । यूं तो यह प्रदेश बीते चार-पांच  सालों में कई फूट और युतियां देख चुका है लेकिन किसी व्यवसाई के हाथ सत्ता की कुंजियां देना नया है। प्रदेश में सत्ताधारी दल महायुति के एक घटक का ऐसा कहना चिंताजनक है। स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के उस हास्य को सच करना है कि हमें नेताओं को चुनने की क्या ज़रूरत है, सीधे अडाणी और अंबानी को ही वोट दे देते हैं। 

महाराष्ट्र में एक तरफ़ महायुति है जिसमें भारतीय जनता पार्टी ,शिवसेना शिंदे गुट और अजित पवार गुट शामिल है। अघाड़ी में कांग्रेस,शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी है। चाचा शरद पवार से अलग होकर भतीजे अजित ने लोकसभा चुनाव लड़ा तो उन्हें समझ आ गया कि जनता को उनका यह रुख पसंद नहीं आया है।अजित अपनी पत्नी को ही बारामती से चुनाव नहीं जितवा सके। वहां से शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले चुनाव जीतीं। भाजपा के सामने भी उनकी स्थिति कमज़ोर हुई औरअब वे जैसे अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे 56 सीटों पर मैदान में हैं और अधिकांश में उनके उम्मीदवार शरद पवार (87 सीटों पर मैदान में) से सीधे टकरा रहे हैं। फ़िलहाल उनकी पार्टी के सदस्य उन्हें किंग मेकर मान रहे हैं और वे रास्ते खुले रखना चाहते हैं।अजित पवार का यह भी कहना है कि महाराष्ट्र की सियासत में अब कोई आदर्श नहीं बचा है ,येन-केन सबको सत्ता चाहिए ,ताकत के लिए आइडियोलॉजी किनारे कर दी गई है। भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नारे से भी अजित गुट ने खुद को अलग कर लिया है। इस नारे से तो भाजपा के दिवंगत नेता गोपीनाथ की बेटी पंकजा मुंडे ने भी खुद को अलग किया है। अडाणी की बैठक में मौजूदगी से जुड़े सवाल पर भाजपा ने चुप्पी साध ली है और शरद पवार ने सफाई दी है ” मैं काम के सिलसिले में कई उद्योगपतियों से मिलता हूं ,शाह से भी कई बार मिला हूं लेकिन किसी उद्योगपति की कृपा से राजनीति नहीं की जा सकती।” नहीं भूलना चाहिए कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट उजागर होने के बाद शरद पवार ने जांच के लिए जेपीसी के गठन का विरोध किया था। पवार सियासी दांव-पेच के बड़े खिलाड़ी हैं ,भतीजे की इस बात पर क्या कहेंगे कि उनके ही कहने पर 2019 में मैंने ताबड़-तोड़ जाकर शपथ ली थी। तब देवेंद्र फडणवीस सीएम और वे डिप्टी सीएम बने थे। वैसे भीषण उथल-पुथल के बाद आज भी दोनों उपमुख्यमंत्री बने हुए हैं । 

क्या एक मतदाता को इस बात पर विचार नहीं करना चाहिए कि लोकतंत्र के नाम पर उसका वोट लेने के बाद में नेता किस तरह जनादेश से खिलवाड़ करते हैं। पूंजीपतियों को ही लेकर बैठकों में शामिल होते हैं। कोई एक दल नहीं लगभग सभी इसी नाव में सवार हैं। यह कैसी घृणित सेटिंग हैं। पूंजीपति का प्रशिक्षण लाभ से जुड़ा है जबकि नेता का जनता की सेवा से। वह उसी रूट पर बस चलाता है जहां सवारी हो, पैसा हो जबकि नेता के लिए हर गांव, हर ढाणी से कनेक्टिविटी ज़रूरी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह कहकर हमले तेज़ कर दिए कि यही तो हम तो कब से कह रहे हैं कि मोदी सरकार केवल चंद उद्योगपतियों की सुन रही है, जिसके चलते छोटे उद्योग और व्यापारी तबाह हुए हैं। एक तरफ़ ये समूह देश को लूट रहे हैं और दूसरी तरफ़ सरकारें बनवा रहे हैं। अब हंगामे के बाद अजित पवार ने  यू टर्न लेते हुए कह दिया है कि उनकी बात को ग़लत समझा गया। 

महाराष्ट्र और झारखंड राज्य के साथ देश में कई विधानसभा और लोकसभा सीटों पर भी उपचुनाव हो रहे हैं । राजस्थान की सात सीटों के अलावा प्रियंका गांधी भी वायनाड से चुनाव मैदान में हैं लेकिन सबका फोकस महाराष्ट्र पर है। यहां  विधायकों की कूद-फांद 2019 के विधानसभा चुनावों से ही जारी  है। शिवसेना और भाजपा मिलकर सरकार बनाएंगे यही लग रहा था। ढाई-ढाई साल तक दोनों सीएम पद पर रहेंगे लेकिन भारतीय जनता पार्टी को बात नहीं जमी। अजीत पवार ने सुबह-सुबह देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर शपथ ले ली। भ्रष्टाचार के कुछ केस भी अजित पवार पर से वापस ले लिए गए। फिर ऐसा प्रतीत कराया गया कि चाचा शरद पवार भतीजे को मना कर वापस पार्टी में ले आए। तब तो एनसीपी टूटने से बच गई और महाविकास अघाड़ी का गठबंधन अस्तित्व में आया। भाजपा ने इसे ‘अनहोली अलायन्स ‘कहा था लेकिन यह चलने लगा। वह शांति से इसके टूटने की राह देखने लगी। जब ऐसा नहीं हुआ तब उसने शिवसेना को तोड़कर विधायक एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया गया और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को  डिप्टी सीएम बनाकर सरकार बना ली। क्या इस बार महाराष्ट्र  विचित्र मल्लखम्ब से बचेगा। अगर 23 नवंबर को महाराष्ट्र में स्पष्ट नतीजे नहीं मिले तो क्या फिर जोड़ तोड़ की बैठक होगी और गौतम अडानी ही इनकी मेज़बानी करेंगे? काश ऐसा न हो। वैसे विश्वगुरु तो भारत ही हैकार्टूनिस्ट उन्नी ने कार्टून बनाया है कि  दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपति  इलोन मस्क ने तो 2024 में खुलकर ट्रम्प का साथ दिया , हम तो इसका प्रीक्वल 2019 में ही लांच कर चुके हैं। 

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