रंजीत राय
नेपाल में फिर सरकार बदल गई है। यह पिछले दो साल में वहां बनी तीसरी सरकार है। 2015 में नया संविधान लागू होने के बाद से नेपाल में राजनीतिक स्थिरता कायम होने की जो उम्मीद थी, वह गलत साबित हुई। राजनीतिक गठबंधन के सारे संभव स्वरूप आजमाए जा चुके हैं – कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (UML) और माओवादी, नेपाली कांग्रेस और माओवादी और अब नेपाली कांग्रेस व CPN (UML)।
बदल गए समीकरण: पुष्प कमल दाहाल उर्फ प्रचंड के नेतृत्व वाली माओवादी पार्टी के पास सिर्फ 32 सीटें हैं और वह तीनों में सबसे छोटी पार्टी है। इसके बावजूद सत्ता का संतुलन बनाए रखने में वह सबसे आगे है। प्रचंड कभी एक तो कभी दूसरे बड़े दल के साथ मिलकर ज्यादातर समय प्रधानमंत्री बने रहे हैं। हालांकि अब नेपाली कांग्रेस और CPN (UML) के साथ आने के बाद समीकरण बदले नजर आते हैं। नेपाल में यह ऐसा ही है जैसे भारत में BJP और कांग्रेस एक साथ आ जाएं। इससे प्रचंड के पांवों तले जमीन खिसक गई है। किसी बड़े जनाधार के अभाव में माओवादियों के लिए अकेले चुनाव लड़ना मुश्किल होगा।
ओली सबसे मजबूत: देखा जाए तो CPN (UML) के केपी शर्मा ओली नेपाल के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं। बुजुर्ग नेता शेर बहादुर देउबा की अगुआई वाली नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बंटी हुई है। युवा नेतृत्व के अभाव में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी जैसी ताकतों से मिल रही चुनौतियों से निपटना उसके लिए मुश्किल साबित हो रहा है।
देउबा का अगला नंबर: माना जा रहा है कि डेढ़ साल बाद ओली की जगह देउबा को पीएम बनाने की बात तय हुई है। लेकिन नेपाल में इस तरह के वादे अक्सर तोड़े जाते रहे हैं। अगर ओली छोटे-छोटे वाम दलों के सांसदों को अपनी ओर मिला लें तो UML नेपाल की सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी। वैसे भी नेपाली कांग्रेस और UML में दस सांसदों का ही अंतर है। नेपाल का संविधान कहता है कि अगर कोई सरकार बहुमत खो देती है और कोई नया गठबंधन संभव नहीं होता है तो राष्ट्रपति सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे।
भारत विरोधी भावना: भारत के लिए जरूरी है कि नेपाल में चाहे जिसकी भी और जैसी भी सरकार बने, उसके साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे जाएं। लेकिन अतीत में ओली के प्रधानमंत्रित्व काल का अनुभव हमारे लिए अच्छा नहीं रहा है। ओली ने नेपाल में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भारत विरोधी भावनाओं का इस्तेमाल किया। ओली की पिछली सरकार के कार्यकाल में चीन के साथ ट्रेड, ट्रांजिट और कनेक्टिविटी से जुड़े कई समझौते हुए। भारत के साथ सीमा संबंधी विवाद को भी असामान्य रूप से तूल दे दिया गया।
BRI पर नजर: देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार ओली सरकार चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशटिव (BRI) प्रॉजेक्ट की ओर बढ़ती है। इससे पहले की माओवादी और नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाली सरकारों ने इसके साथ रियायती दर पर लोन की शर्त लगा दी थी, जिस पर चीन राजी नहीं था।
अटके प्रॉजेक्ट आगे बढ़ें: वैसे भारत के नजरिए से वाम दलों के गठबंधन वाली सरकार के मुकाबले नेपाली कांग्रेस की मौजूदगी वाली सरकार बेहतर है। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में नेपाली कांग्रेस ओली के मनमाने रवैये और एकतरफा फैसलों पर थोड़ा अंकुश लगा सकती है। भारत के लिए सबसे अहम है नेपाल में हाइड्रो पावर और कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स पर काम आगे बढ़ता रहे। इनमें से कुछ ने तो अच्छी प्रगति की है, लेकिन 6000+ मेगावॉट के पंचेश्वर प्रॉजेक्ट जैसे कुछ और प्रॉजेक्ट हैं जो अटक गए हैं। मजबूत नेता वाले दो बड़े परस्पर विरोधी विरोधी दलों की सरकार ऐसे मामलों को आगे बढ़ाने के लिहाज से बहुत कारगर साबित हो सकती है। भारत को यह भी देखना होगा कि नई सरकार नेपाल में बढ़ती अमेरिकी-चीनी प्रतिद्वंद्विता से कैसे निपटती है।
आर्थिक चुनौतियां: बहरहाल, नेपाल सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश की आर्थिक स्थिति सुधारने की है। यह आज भी अल्पविकसित देश (LDC) की श्रेणी में आता है। उसे विकासशील देशों की श्रेणी में लाने का लक्ष्य आगे खिसकता जा रहा है। जाहिर है, नेपाल की नई सरकार के लिए यह सबसे अहम मोर्चा है और यहां उसे भारत का पूरा समर्थन मिलना चाहिए।