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संघ क्या हिन्दुस्तानी तहज़ीब को ले डूबेगा

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सुसंस्कृति परिहार
बढ़ता संघवाद हिंदुत्व के नाम पर जिस तरह की कोशिशें अपने अनुशंसी संगठनों के ज़रिए कर रहा है और अपना दामन हिंदु मुस्लिम का डी एन ए एक है कहकर सुरक्षित रखने की कोशिश में लगा है । भारतीय संस्कृति जिसे हिंदुस्तानी तहज़ीब कहा जाता को गहरी चोट पहुंचाने में लगा है हालांकि अल्लामा इक़बाल की कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी की सदाएं बराबर सारे जहां से अच्छे हिंदुस्तान में गूंजती हुई उसे सलामत रखे हुए हैं। वास्तव में हिंदु कोई धर्म नहीं हम सब सनातन धर्म को मानने वाले लोग हैं।हिंदु हमारी संस्कृति है।जिसे हम भारतीय हिंदुस्तानी संस्कृति के नाम से जानते हैं।


पिछले कई दशकों पूर्व आज़ादी के तुरंत बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को जिस तरह वध कहा गया संघ ने खुशी जाहिर की गई आज वही लोग सत्ता पर काबिज़ हैं।जब गांधी जी की हत्या की गई तभी संघ ने यह सोचा था कि अब बाजी उनके हाथ में रहेगी ।वधिक हिंदु महासभा का था ।संघ अपने को दोषमुक्त मानता है ।लेकिन इस हत्या ने गांधी के कद को और बढ़ा दिया यही वजह है हिंदुत्व का नशा तो बराबर जारी रहा पर गांधी-नेहरु के तिलस्म को जनता के अपार प्यार को 2013 तक तोड़ नहीं पाए।इस पराजय के बावजूद संघ ने ग्रामीण स्तर तक  अपने कदम सरस्वती शिशु मंदिर के ज़रिए  पसार लिए। हालांकि हिंदू समाज में आज भी संघ अल्पसंख्यक हैसियत रखता है।आम लोग इन्हें बापू का हत्यारा मानते हैं।इनसे घृणा करते हैं।कितनी भी गाली बक लो बापू का कद सतत बढ़ता ही जाएगा।
इसके बाद प्रायोजित तौर पर बाबरी मस्जिद का ढहाना और जय श्री राम के उत्तेजक नारे से दलित और पिछड़े वर्ग में भाजपा के प्रति अंधश्रद्धा जन्मी। कांग्रेस के लंबे शासनकाल नाराज़ जनता का मोहभंग हुआ और भाजपा की ओर फिसलन शुरू हो गई। लेकिन पटापेक्ष हुआ गुजरात नरसंहार के बाद जब बहुसंख्यक वर्ग को हिंदुत्व का गरलपान करने का मंत्र संघ ने दिया साथ ही इस नरसंहार के जिम्मेदार मोदी और अमित शाह को लोकसभा चुनाव में हीरो बतौर पेश किया। मोदी जी के विध्वंसक कपोल कल्पित भाषण और जुझारू शैली ने लोगों को आकर्षित किया अंबानी अडानी ने जमकर धन वर्षा की।इसका  भारतीय समाज के मात्र 31%लोगों पर असर हुआ लेकिन सरकार बनाने में भाजपा सफल रही।इससे पहले भी अटल जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार थी लेकिन अटल जी सौजन्यता और नेहरू के साथ ने उन्हें लोकतांत्रिक पटरी से उतरने नहीं दिया लेकिन मोदी के आते ही मानो संघ की अवधारणाओं के पर लगने शुरू हो गए ।
राम मंदिर का निर्माण ,कश्मीर से 370 धारा हटाना जैसे महत्वपूर्ण कार्य गलत सलत तरीके अपनाकर, संविधान का उल्लंघन कर किया गया।एन आर सी से अल्पसंख्यकों को कुचलने और वतन से बाहर भेजने का कानून बनाने में दुनिया के देशों का दबाव ना होता तो कुछ भी हो सकता था।इन सबके बाद चुनाव आयोग से मिलकर धांधली, दल-बदलने को प्रोत्साहन और पूर्ण बहुमत की सरकार गिराना एक शगल बन गया है। कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना के साथ आने वाले लोग विपक्ष का महत्व कैसे स्वीकार कर सकते हैं। दलितों को कुचलने के साथ समरसता भोज, आदिवासी समाज को वनवासी कहकर उनका अपमान । वनवासी कुंभ का आयोजन,राशन घर पहुंचाने और उनके पूर्वजों जो आज़ादी के संग्राम में अपनी जान खोए ,का अचानक स्मरण ,संग्रहालय और अन्य सुविधाओं की घोषणा चुनावी हथकंडे जारी है। सबसे बड़ा दारोमदार पिछड़े वर्ग का है जिसे साधने 27%की घोषणा हो चुकी है लेकिन वे जनसंख्या के आधार पर आरक्षण चाहते हैं।जातिवार जनगणना भी जिसमें इस बार कोरोना के कारण विलंब हो रहा है।अब तो संघ के महापुरुष भागवत जी हिंदू मुस्लिम डी एन ए एक बता रहे हैं जबकि उनके आनुषंगिक संगठन गौहत्या, लव-जिहाद,  धर्मांतरण,जय श्री राम जैसे मामलों में मुसलमानों में दहशत फैला रहे हैं। अब तो सीधे कत्लेआम की सरे आम घोषणाएं हो रही हैं जबकि मुस्लिम, ईसाई ,दलित और आदिवासी उनके हिंदुत्व वाले ढांचे में बिल्कुल फिट नहीं है।सबको अपने पसंद का धर्म चुनने का अधिकार हमारा संविधान देता है। आदिवासियों को सुप्रीम कोर्ट भी मान चुका है वे हिंदू नहीं है।दलित आज भी स्वर्ण जातियों के बीच क्या हैसियत रखते हैं वे और हम सब इसे बख़ूबी जानते हैं। उत्तराखंड के एक गांव की शाला में सुनीता देवी भोजनमाता के साथ स्थानीय लोगों और फिर सरकार ने क्या सुलूक किया?सुनीता देवी के दृढ़ निश्चय के कारण उसे सफलता ज़रूर मिलेगी?किंतु उसके साथ क्या वही गरिमामय व्यवहार होगा जिसके विरुद्ध वह अकेले लड़ने खड़ी हो गई।बामन ठाकुरों के बर्चस्व वाले इस पहाड़ी प्रदेश में सुनीता का विरोध दर्ज कराना बदलाव की आवाज़ आज नहीं तो कल ज़रूर बनेगा।
कहा जा रहा है जब तक भारत में चुनाव हो रहे हैं तभी तक संघ का ये लिपापुता चेहरा देखने मिल रहा है एक बार फिर यानि 2024 यदि उनके पाले में आ जाता है तो यकीन मानिए संविधान की जगह मनुसंहिता होगी और तिरंगे की जगह भगवा झंडा ले लेगा यानि भारत अपने सामंती स्वरुप में नज़र आएगा । लेकिन घबराने की ज़रूरत नहीं भाजपा और संघ के सभी संगठनों के चाल ,चरित और चेहरे 2014के बाद से लोगों ने भली-भांति पहचान लिए हैं वह जाग गई हैं और फिर ऐसी गलती नहीं करेंगे। बंगाल से उठी लहर ने किसान आंदोलन को जो राष्ट्रीय पहचान दी है उसकी चुनावी दस्तक से तथाकथित राष्ट्र वादियों की नींदें उड़ी हुई  है, बेरोजगारी और मंहगाई के आलम में कोरोना ने भी जनता का हाल बेहाल कर रखा है। बहरुपिया सरकार की अब कहीं दाल नहीं गलने वाली। दूसरे संगठनों के ज़रिए राष्ट्र में अराजक माहौल बनाने वाले संघ का आवरण उतर चुका है वह एक बार फिर परास्त होगी । भारतीय संस्कृति अजर अमर है और रहेगी।

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