प्रकाश महावर कोली
कमलनाथ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही उम्मीद थी कि प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी कांग्रेस संगठन को मजबूत करेगी और भाजपा जैसे सांप्रदायिक विचारधारा वाले राजनीतिक संगठन को हर मोर्चे पर करारा जवाब देगी.कमलनाथ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कार्यकर्ताओं ने भी जोश के साथ काम किया तथा कांग्रेस ने चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा दिखाकर प्रदेश की सत्ता हासिल भी कर ली। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस को बहूमत मिलते ही प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री बनाकर सिंधिया को हाशिये कर दिया गया.
अतिश्योक्ति नहीं है कि सिंधिया समर्थकों को सत्ता में उम्मीद से ज्यादा भागीदारी भी मिली थी. कमलनाथ ने सीएम की कुर्सी संभालते ही किसानों के कर्ज माफी के साथ ही प्रदेश के विकास में अनेकों योजनाएं भी बनाई और उन्हें धरातल पर लाने का प्रयास भी किया.इसी कारण कमलनाथ एक सशक्त व सफल प्रशासक (मुख्यमंत्री) साबित होकर जनप्रिय नेता बन गए। लेकिन वे कुशल संगठक साबित नहीं हो सके, यही कारण है कि प्रदेश में कांग्रेस की 15 महीने की सरकार बड़े नेताओं की खींचतान व एक दूसरे को निपटाने के नीति के कारण गिर गई. कमलनाथ अगर सत्ता के साथ संगठन की ओर भी ध्यान देते और मुख्यमंत्री बनने के बाद संगठन की कमान सिंधिया के हाथों में सौंप देते तो शायद कांग्रेस की सरकार नहीं गिरती। क्योंकि उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया ही एकमात्र ऐसा युवा व लोकप्रिय चेहरा थे जो अपनी कार्यकुशलता से संगठन में जान फूंक सकते थे।
कमलनाथ ने सत्ता के मद में चूर होकर अपने समर्थकों को खुली छूट दे दी, जिसके कारण नाथ के गणों ने सिंधिया समर्थकों को तवज्जो देना बंद कर दिया था। कांग्रेस में आज भी कई सिंधिया समर्थक हैं जो पार्टी के प्रति समर्पित भी हैं, लेकिन संगठन पर नाथ समर्थकों का कब्जा होने के कारण उन्हें महत्व नहीं दिया जाता है। इसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है।
अब फिर चेत जाने की जरूरत*
समय निकल गया, सत्ता हाथ से चली गई। अब समय है, संगठन को मजबूत करने का और ढाई साल बाद फिर सत्ता हासिल करने का। मार्च 2020 में कोरोना महामारी ने पूरे देश में दस्तक दे दी थी, और कांग्रेस – भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता, सामाजिक एवं व्यापारिक संगठन के लोग संक्रमण के डर से घरों में ही दुबके रहे.
कोरोना की दूसरी लहर में भी यही देखने को मिला। पिछले साल सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस संगठन बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक निष्क्रिय ही नजर आ रहा है। अचरज की बात है कि शहर कांग्रेस अध्यक्ष कुछ ऐसे छुट भैये नेताओं से घिरे रहते हैं, जिनका शहर में कोई वजूद नहीं है।
दूसरी लहर के दौरान विधायक संजय शुक्ला की सक्रियता के कारण जरूर शहर अध्यक्ष विनय बाकलीवाल को लोग थोड़ा ज्यादा पहचानने लगे हैं।
*साधौ की नियुक्ति से सक्रिय होगा संगठन*
हाल ही में विजयलक्ष्मी साधौ को इंदौर शहर कांग्रेस का प्रभारी बनाए जाने के बाद उम्मीद है कि मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस में कुछ सक्रियता आएगी।
गौरतलब है कि बाकलीवाल को शहर अध्यक्ष बनाए जाने से पहले इंदौर में शहर कांग्रेस कमेटी का पुनर्गठन तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के कार्यकाल में हुआ था, तब शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन थे।
टण्डन ने सभी गुटों के नेताओं के समर्थकों को कार्यकारिणी में जगह दी थी। यह कार्यकारिणी कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षीय कार्यकाल में भी यथावत रही। सक्रियता से काम करते रहने पर भी कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शहर कांग्रेस में विनय बाकलीवाल को कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया। इसी दौरान टण्डन को कैंसर की बीमारी ने चपेट में ले लिया और शहर कांग्रेस की कमान कार्यवाहक अध्यक्ष बाकलीवाल के हाथों में आ गई। टंडन के अध्यक्ष रहते चापलूसों से घिरे होने के कारण बाकलीवाल उनसे समन्वय नहीं बना पाए।
*कार्यकारिणी का गठन तक नहीं हुआ*
कमलनाथ सरकार गिरने के एक साल से ज्यादा समय होने के बाद भी शहर कांग्रेस अध्यक्ष बाकलीवाल अब तक कार्यकारिणी नहीं बना पाए। आगामी नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए पूर्व मंत्री एवं विधायक विजयलक्ष्मी साधो को इंदौर शहर एवं विधायक रवि जोशी को ग्रामीण क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है। अब यह उम्मीद की जा रही है कि इंदौर शहर कांग्रेस कमेटी का गठन भी शीघ्र ही होगा और उसमें सभी गुटों को बिना किसी भेदभाव के प्रतिनिधित्व मिल पाएगा.
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