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समझदानी?बेबस बस?

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शशिकांत गुप्ते

प्रख्यात हास्यव्यंग्य के कवि स्व.काका हाथरसीजी ने उनके साथ घटित एक वाकया सुनाया था। “एक बार एक मिलिट्री के परिसर में कवि सम्मेलन आयोजित हुआ था। यह साठ के दशक की बात है। इस कवि सम्मेलन में एक हास्य के कवि ने हास्य की कविता सुनाई। श्रोताओं
की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। कवि सोच में पड़ गया। उसी समय मिलिट्री का एक अधिकारी खड़ा हुआ और उसने आदेश देते हुए कहा एक साथ सब ताली बजाएंगे ताली बजाओ। आदेश सुनकर सभी ने तालियां बजाई।
ठीक इसीतरह का एक किस्सा है। एक फ़िल्म में हास्य कलाकार वकील की भूमिका अदा करता है। उसके यहाँ एक और हास्य कलाकार रसोइये का किरदार निभाता है। वकील का अभिनय करने वाला व्यक्ति अपने रसोइये से कहता है कि जरा अपने घर की खिड़की का दरवाजा बंद कर दो।
रसोइये का किरदार निभाने वाला कलाकार कहता है। यह मेरा काम नहीं है। मेरा काम सिर्फ रसोई बनाने का है। वकील कहता है। शाबास, वकील के घर का नौकर भी कायदे कानून से ही चलता है।
उपर्युक्त किस्से सुनाने का मकसद है। लोगों के सोचने समझने का दायरा कितना संकुचित है।
ये लोग लकीर के फ़कीर हैं।
सोचने के दायरे को समझने के लिए प्रत्यक्ष उदाहरण है।
सड़क के फुटपाथ पर बैठा वह ज्योतिषी है। जिसके पास पिंजरे में बंद एक तोता होता है,और लोगों के भविष्य को बताने के लिए बीस या पच्चीस कार्ड होतें हैं।
सभी कार्डो में चार या पाँच लाइनों में लोगों का भविष्य कथन लिखा होता है।
एक हास्यास्पद बात तो यह है कि, स्वयं पिंजरे में कैद तोता इंसानों का भविष्य बताता है?
दूसरी विचारणीय बात यह है कि, मात्र बीस या पच्चीस कार्डो में दुनिया भर के लोगों का भविष्य सीमित है। दुनिया का कोई भी व्यक्ति उस ज्योतिषी के पास जाएगा, वह फुटपाथ पर बैठा, ज्योतिषी मात्र बीस या पच्चीस कार्डों में से उसका भविष्य बताएगा।
यह किस्से लिखने के पीछे मुख्य कारण है। जब भी समाचार पढ़ने और देखने में आता है कि, फलाँ स्कूल या कॉलेज की बस इसलिए जप्त की गई कि,बस बगैर परमिट के चल रही थी। या बस का ड्राइवर नशे में था। या बस के ड्राइवर के पास वाहन चलाने का लाइसेंस नहीं था।
बस में बैठे विद्यार्थी निश्चित ही देश के भावी कर्णधार हैं। बस में छात्रों के साथ अध्यापक एवं अध्यापिकाएं भी विराजमान होती है।
इस लोगों को उक्त समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है?
बस में सफर करने वाले छात्र निश्चित ही समाजशास्त्र के, विज्ञान के,कानूनी पढाई के, भौतिक और रसायन विज्ञान के,मनोविज्ञान के और अन्य विषयों के विद्यार्थी भी होंगे ही? और निश्चित ही बस में विराजमान अध्यापक और अध्यापिकाएं भी उपर्युक्त विषयों को पढातें होंगे ही?
लेकिन बस के बारे में जानकारी रखने के लिए विद्यालय या महा विद्यालय में निश्चित ही कोई विभाग होगा, जिस विभाग की उक्त समस्याओं के प्रति जवाबदेही होगी?
तो फिर और लोग क्यों इसमें दखलंदाजी करेंगे?
अहम प्रश्न है? हमारी समझदानी कब बड़ी होगी? हमारा सोचने समझने का दायरा कब व्यापक होगा?
समझ की कमी होने का मुख्य कारण, समाज में संवादहीनता है।
संवादहीनता ही संवेदनहीनता के लिए कारण बनता है।
उपर्युक्त समस्याएं भी संवेदनहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
फ़िल्म शोले के इस संवाद का स्मरण होता है। जब हम नहीं सुधरे हैं तो तुम क्या सुधरोगे?
इसके उपरांत भी हम निरंतर गातें हैं, और गातें रहेंगे।
हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास

वैसे भी मन की बात का महत्व ही हमने पिछले आठ वर्षों में ही जाना है?
मन ही मन गुनगुनातें रहो।
संवाददाताओं से भी संवाद मत करों?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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