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मॉनसून की एंट्री के साथ ही शहरों में जलभराव ?वजह क्या है? कौन है जिम्मेदार ? 

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दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में मॉनसून के दौरान जलभराव की समस्या सामने आती है। इसके प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने की जरुरत है। जलभराव नहीं हो और पानी की निकासी के लिए नालियों का पुनर्निर्माण करें। फुटपाथों, सड़कों से अतिक्रमण हटाएं। सभी एजेंसियों को शहरी स्थानीय निकाय के प्रति जवाबदेह बनाएं।

दिल्ली में कल मॉनसून आ गया और उसके साथ ही जलभराव, ट्रैफिक जाम और आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। ऐसा हर साल होता है और भारत के हर बड़े शहर में होता है। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि समस्या से निपटने का हमारा तरीका ठीक नहीं है। हर साल, हम शहर के ठप्प होने के बाद इससे निपटते हैं। नियमित मरम्मत, जल निकासी/सीवेज सिस्टम को बदलना, सार्वजनिक स्थानों (सड़कों, गलियों, फुटपाथों) को अतिक्रमणों से मुक्त रखना जैसे मुद्दों को पीछे धकेल दिया जाता है, जबकि योजना और प्रबंधन के लिए अभी भी समय होता है। भारत की 416 मिलियन (2019) की शहरी आबादी 2047 तक 461 मिलियन तक पहुंच जाएगी। इसका मतलब है कि सभी स्टेकहोल्डर्स की समय पर और ठोस कार्रवाई के बिना, आने वाले वर्षों में ये समस्या और भी बदतर होती जाएगी।

इस अव्यवस्था की वजह क्या है?

हमारे शहरों में जलभराव की समस्या बिना प्लानिंग शहरीकरण के कारण है। यहां योजनाबद्ध सर्कुलेशन के लिए जगह को ध्यान में रखे अनियोजित शहरी क्षेत्रों का विस्तार किया जाता है। निर्माण और विध्वंस कचरे को डंप करने के कारण झीलों, तालाबों और जल निकायों का सूखना और इनका विनाश भी एक बड़ा कारण है। इसके अलावा, झीलों और अन्य जल निकायों के कब्जे वाले क्षेत्रों में घर बनाना वहां लोगों का रहना शुरू करना भी एक मुद्दा है। उदाहरण के लिए, गुरुग्राम में 519 जल निकायों में से आधे 40 वर्षों में गायब हो गए हैं। बेंगलुरु के लिए भी कहानी बिल्कुल ऐसी ही है।

इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

जल प्रबंधन तीन स्टेकहोल्डर्स की जिम्मेदारी है: योजना एजेंसियां, शहरी स्थानीय निकाय और पानी और सीवेज के लिए विशेष एजेंसियां। तीनों शायद ही कभी एक साथ काम करते हैं, और क्षेत्राधिकार के मुद्दे उनके प्रयासों को विफल कर देते हैं। वहीं ठोस अपशिष्ट शहरी स्थानीय निकायों के दायरे में आते हैं, पानी और सीवेज अक्सर नहीं आते हैं। यह बिखरा हुआ नियोजन एनसीआर जैसे विशाल शहरी स्थानों के समग्र प्रबंधन की अनुमति नहीं देता है। आप साइलो में काम करके पानी के मुद्दों, सीवेज या नालियों से नहीं निपट सकते हैं, जो कि एनडीएमसी और एमसीडी जैसे शहरी निकाय या गुरुग्राम और नोएडा जैसे सैटेलाइट शहरों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शहरी व्यवस्था कैसे चलाई जाती है, इसमें टाउन प्लानर्स की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन हमारे पास प्रति लाख आबादी पर एक भी नहीं है। इसकी तुलना करें तो यूके में 38 और ऑस्ट्रेलिया में 23 से करें। हमारे बड़े शहरों में भी, यह संख्या आधुनिक वैश्विक शहरों के मानदंड से काफी कम है। अगर योजना खराब है, तो कार्यान्वयन और भी बदतर है। हमारे शहरों में पानी की नालियां नहीं होना आम बात है। अधिकांश भारतीय शहरों में एक विशेष जल निकासी योजना भी नहीं है। भारी बारिश का एक दौर मौजूदा नालों के प्रवाह को बाधित करने और जलभराव का कारण बनने के लिए काफी है। नगर निकाय जिस ठोस कचरे को इकट्ठा करने में फेल नजर आते हैं, उसके कारण मामले और भी बदतर हो जाते हैं। यह कचरा हमारे शहरों में नालों को जाम कर देता है।

क्यों होती है जलभराव की समस्या?

शहरी प्लानिंग फ्यूचर की भविष्यवाणी करने के बारे में है। अग्रिम योजना होने पर भी, चीजें इतनी धीमी गति से चलती हैं कि जब तक कार्रवाई की जाती है, तब तक योजना फेल हो जाती है। एक उदाहरण देखें कि पिछली बार दिल्ली का मास्टर प्लान 8 से 10 साल की तैयारी के बाद नोटिफाई किया गया था। वहीं 2041 वाला समय पर तैयार किया गया था, इसे पिछले चार वर्षों से प्रोसेस किया जा रहा। हालांकि, हर इनकम ग्रेड के नागरिक भी जलभराव की समस्या के लिए नागरिक भी उतने ही जिम्मेदार हैं। क्या हाई और मीडियम इनकम ग्रुप वाली कॉलोनियों में शिक्षित लोगों को अपने घरों के बाहर फुटपाथों पर अवैध रूप से कब्जा करते हुए देखना आम बात नहीं है? या अपनी गाड़ियों को सड़कों पर पार्क करना, जिससे ट्रैफिक आवाजाही के लिए बहुत कम जगह बचती है? लोअर-इनकम वाले क्षेत्रों की हालत देखें तो वे पूरी तरह से घिरे हुए होते हैं जिसकी वजह से सर्कुलेशन के लिए बहुत कम जगह बचती है।

आगे क्या रास्ता है?

पहला, योजनाओं को कैसे लागू किया जाता है, इस पर पूरी तरह से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, एमपीडी-2041, नीले-हरे विकास और कचरे को अलग करने के लिए ढलावों के इस्तेमाल का प्रावधान करता है। इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। दूसरा, हमें उचित जल निकासी योजनाएं तैयार करनी चाहिए, या अगर वे अपर्याप्त साबित हुई हैं तो उन पर पुनर्विचार करना चाहिए। दिल्ली के आईटीओ पर जलभराव को ही लीजिए। सीवेज नेटवर्क के विस्तृत पुनर्गठन से इसे हल किया जा सकता है। ये इसे यमुना के जल स्तर के साथ जोड़ता है। तीसरा, 1115 शहरी स्थानीय निकायों को कवर करते हुए 44 शहरी समूहों के लिए 15वें वित्त आयोग के डिवोल्यूशन पैकेज के अनुसार पानी और स्वच्छता योजनाएं तैयार की जानी चाहिए। चौथा, सड़कों/गलियों और फुटपाथों का सुरक्षा ऑडिट नियमित रूप से किया जाना चाहिए। इस तरह के ऑडिट से पानी, सामान और लोगों की आवाजाही के लिए जगह खाली करने के लिए जरूरी कार्रवाई की पहचान होती है। खास तौर से अवैध कब्जे और बैरियर का पता चलता है।

पांचवां, अधिकारियों को फुटपाथों और सड़कों से अतिक्रमण हटाने के लिए समुदायों के साथ जुड़ने की जरूरत है। साथ ही सरकारी विभागों की ओर से अपने इस्तेमाल के लिए कब्जा की गई जगहों को भी खाली कराया जाए। छठवां, पानी और स्वच्छता को संभालने वाली एजेंसियों को यूएलबी के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शहरी रखरखाव के लिए जिम्मेदार सभी एजेंसियों पर यूएलबी का व्यापक अधिकार होना चाहिए। अंत में, एक अप्रत्याशित घटना से शहरी जीवन को पटरी से उतारने की संभावना को कम करने के लिए जल निकासी और सीवेज नेटवर्क का नियमित रखरखाव होना चाहिए।

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