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 इनके ही ख़ून – पसीने से भिलाई की धमन भट्टी मे लोहा पिघलता हैं !*

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शेख अनसार

ये हैं, फागूरामजी गीतकार, रचनाकार, लोक – कलाकार हमारे आन्दोलन की आवाज़, छत्तीसगढ़ की आवाज़, इनके गीत ऐसे होते है जिसे साधारण जन बिना सूर – ताल की परवाह किये बगैर गाने लगते है, फिर वह स्थान खेत – खलियान हो, डोंगरी की डगर हो, कलकारखाने हो, या लोहे की खदान हो, इसी आवाज़ के कद़मताल साथ खदान मज़दूरो ने 19 दिसम्बर 1979 को रायपुर के गांधी मैदान से छत्तीसगढ़ के जननायक वीरनारायणसिंह को छत्तीसगढ़ के जन – जन तक पहुंचाया *- शहीद शंकरगुहानियोगी*

*फागूराम लोगों के सांसो में लय बनकर बसते थे, हौसला का गीत बनकर संघर्ष के मैदान में गुंजते थे। संघर्ष का कोई एक दिन निश्चित नही होता, जीवन का हर दिन संघर्ष का होता हैं !*

आज जनकवि फागूराम का जन्मदिन नहीं हैं। उनकी जन्मतिथी 10 अक्टूबर 1945  हैं। आज फागूराम का हमसे बिछुडने का भी दिन नहीं है। फागूरामजी अपने साथियों को जब अलविदा कहा था वह तारीख थी 7 मई 2015 ,  फागूराम का जन्म हुआ था महानदी के लहरों के किनारे बसे गांव चंवर में, दाई सनमत की कोख़ से फागूराम पुत्र थे पिता सोनउ यादव के और प्यारा सपूत थे छत्तीसगढ़ महतारी के ……

अन्यायपूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध परिवर्तन की लड़ाई मे क्रान्तिकारी एकल, युगल एवं समूहगानों की शानदार भूमिका और समृद्ध विरासत, इतिहास रही है। छत्तीसगढ़  जनगीतों, जननाट्यो का संघर्षपूर्ण मंच रहा है। आजादी के पहले इप्टा के दौर से लेकर अब तक देशभर मे सैकड़ों टोलियों द्वारा अलग-अलग जगहों पर गाये जाने वाले हज़ारों ऐसे गीत हैं जो कुचल दिये गये दिलों के तारों को झनझनाकर, लोहे के दीवार के बीच क़ैद लोगों की सोई हुई आत्माओं को झकझोरकर जगा देते हैं, और संघर्षरत लोगों मे आशा और उत्साह का संचार कर देते हैं। ऐसे ही एक जनकवि, जनगायक, जननाट्यकार हुए हैं, फागूराम यादव जो आज से ठीक सात साल पहले 7 मई  2015 को हमसे जुदा हो गये। छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ – छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा द्वारा आयोजित रैलियों मे लाल हरा पोशाक पहने मज़दूरो के साथ-साथ क़दमताल करते हुए ….. *चल मज़दूर चल किसान* गीत को अपनी मोहक पहाड़ी आवाज़ मे जब फागूराम गाते तो समूचा वातावरण उद्वेलित हो उठता। उनके गीतों मे जहाँ अकाल की छाया का मार्मिक चित्रण होता  वहीं नवाँ व सुन्दर छत्तीसगढ़ बनाने के सपने होते। *सुनलें हमर पुकार ला करिया बादर जैसे गीत* के मुखड़े मे किसानों की पीड़ा दिखाई देती। *कोख ले तोर हमन जनम धरे हन , अचरा मा झुलेन तोर कोरा मा पलेहन* जैसे गीत के बोल से छत्तीसगढ़ महतारी के प्रति अप्रितम प्रेम उनके दिल मे  हमेशा महानदी-शिवनाथ की निर्मल धारा की तरह बहते थे । खनिज सम्पदा, वन सम्पदा, जीवनदायिनी नदियाँ, उर्वरक भूमि,  मेहनती लोग के बावजूद फिर यह भूखमरी क्यों ? यह प्रश्न उनके मन मे थी। यही चिंतन गीत बनकर निकलते थे … *भारत के माटी हा, हीरा मोती अऊ सोना उगलथे गा धान के आवे कटोरा रे सँगी तबले लोगन भूख मरथे गा* इन परिस्थितियों के मद्देनजर उन्हें यह समझते देर नही लगी कि भूखमरी का असली कारण पूँजीवादी व्यवस्था हैं इस पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ उनका रचनात्मक मन जीवन पर्यंत सँघर्ष के  गीत गाता रहा हैं …..*उठ मज़दूर जाग किसान रात हा पहागे रे कदम-कदम बढ़ो चलो लड़े के बेरा आगे रे …*

फागू भईया के अनेक स्वरचित गीतों के अलावा उन्‍होंने दूसरे कवियों के सैकड़ों गीतों को भी गाया। मज़दूरों की सभाओं-रैलियों में उनके कण्‍ठ से गूँजते ये क्रान्तिकारी गीत पूँजीपतियों के दिलों में सिहरन पैदा कर देते थे और जनता पर ज़ुल्‍म ढाने वाले उनके चाकर थर्रा उठते थे।

 अस्सी के दशक में रचा उनका यह गीत छत्‍तीसगढ़ के आम जनो के दिलों में उतर जाने वाले इस गीत को कॉमरेड फागूराम जब खुलकर गाते थे तो उनके साथ सैकड़ों कण्‍ठों से समवेत स्वर फूट पड़ता था।

गाँव के गली-गली

खोर-खोर नवाँ अँजोर

गाँव के गली-गली

खोर-खोर नवाँ अँजोर

बगरागो रे सँगी हो नवाँ अँजोर

नवाँ अँजोर के लाल किरण

सब जगाह बगरही

आँखी सबके खुल जाही

अँधियारी रात ह तरही

हो जाही बिहान

जागही मज़दूर किसान

सबके भाग जाग जाही तोर मोर

नवाँ अँजोर …

छुत अऊ छुआ के सँगी भेद ला मिटाबो

गाँव के विकास हमन मिलजूल के करबो

भेदभाव मिट जाही

गाँव हमर चमक जाही

सपना सबके पूरा होही सँगी मोर

नवाँ अँजोर …

छत्तीसगढ़ के शहीद मन

ये रस्ता ला बतायेहे

वीरनारायणसिंह के सँगी

सुरता हमला आये हे

बन जाही नवाँ समाज

छत्तीसगढ़ के हे गोहार

ये भुँइया के शहीद मन के होही सोर

नवाँ अँजोर …

साथियों को याद होगा, हिन्दी के प्रख्यात *जनकवि ब्रजमोहन* का यह गीत प्रस्तुत हैं जिसे साथी फागूराम इसमें रमकर –  डूबकर गाते थे …..

धरती को सोना

बनाने वाले भाई रे

माटी में हीरा उगाने वाले भाई रे

अपना पसीना बहाने वाले भाई रे

उठ तेरी मेहनत को लूटे हैं कसाई रे ।

मिल कोठी कारे ये सड़कें ये इँजन

इन सब मे तेरी ही मेहनत की धड़कन

तेरे ही हाथों ने दुनिया बनाई

तूने ही भरपेट रोटी ना खाई

ठलुओ ने दुनिया तेरी

लूट – लूट खाई रे

मिल – कारखानों मे

कोयला खदानों मे

बहता है तेरा ही खून पसीना

ज़ालिम लूटेरों का पत्थर का सीना

सेठो के पेटो मे है तेरी कमाई रे

धरती भी तेरी ये अम्बर भी तेरा

तुझको ही लाना हैं अपना सबेरा

तू ही अँधेरों मे सूरज है भाई

तू ही लड़ेगा सूबह की लड़ाई

तब सारी दुनिया ये लेगी अँगड़ाई रे …

*फागूराम मयूरपानी माइंस के परिवहन मज़दूर थे, समाज मे बिखरे वस्तुगत तत्वो को समेटते थे, आमजनों के दुख – तकलीफ, उल्लास को गीत बनाकर लय में पिरोकर लोगों तक पहुंचाते थे।*

साथी फागूराम आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के लाखों मेहनतकशों के दिलों में वे आज भी जीवित हैं।

*प्रस्तुतकर्ता – शेख अनसार*

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