मुनेश त्यागी
आज हमारी सरकार और अधिकांश गोदी मीडिया लगातार दिन-रात विकास विकास की बातें करते रहते हैं। उनका कहना है कि हमारे देश में हमारी सरकार सबका साथ और सबका विकास कर रही है। मगर जब हम पिछले नौ साल के सरकार के तथाकथित विकास पर एक नजर डालते हैं तो जनता की बुनियादी समस्याओं को लेकर कहीं भी विकास नजर नहीं आता। चारों तरफ नजर दौड़ाने के बाद, विकास नहीं सिर्फ विनाश ही नजर आता है। आइए देखते हैं उनके विकास की कुछ झलकियां,,,,,
,,,,बच्चों के यौनिक अपराध 2020 में एक लाख में 10.6 थे जो 2021 में बढ़कर 12.1 हो गए हैं।
महिलाओं पर हो रहे अपराध पिछले साल में 15.3 प्रतिशत बढ़े हैं जो 2020 में 3,71,503 थे, वे 2021 में बढ़कर 4,28,278 हो गए हैं।
,,,,दैनिक रूप से खाने कमाने वालों में आत्महत्या 2014 से लेकर 2021 तक लगातार बढ़ती रही है जो 2014 में 12% से बढ़कर 2021 में 25.06 परसेंट हो गई है यानी यहां पर आत्महत्या की रफ्तार दुगनी से भी ज्यादा हो गई है।
,,,,राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या की दरें जो 2019 में 1.39 लाख थीं वे 1921 में बढ़कर 1,64,033 हो गई हैं।
दिहाड़ी मजदूर, छात्र, पेशेवर, ग्रहणियां, खेतीबाड़ी से जुड़े लोग और बेरोजगारों में खुदकुशी की दर 2019 से 2021 तक काफी बढ़ गई है। आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या गरीबों की है। आत्महत्या करने वालों में दो तिहाई लोग कम आय वाले यानी गरीब लोग हैं। यहां पर यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इन हत्याओं का कारण क्या है?
जब इन आत्महत्या करने वाले लोगों की जिंदगी पर एक सरसरी नजर डालते हैं तो हम पाते हैं कि इन अधिकांश अभागे लोगों के पास जीविकोपार्जन का कोई स्थाई जरिया नहीं है। इनके पास धन दौलत नहीं है, जमीन नहीं है, इनके पास शिक्षा और रोजगार नहीं है, स्वास्थ्य की समस्याएं हैं। आमतौर से इन लोगों की जिंदगी, आज भी सबसे ज्यादा असुरक्षित और अभावग्रस्त है और सरकार के विकास के शोरगुल से कोसों दूर है।
पिछले दिनों रानीपोखरी, उत्तराखंड के 47 वर्षीय महेश कुमार ने पूजा में खलल डालने की बात कहकर अपनी पत्नी नीतू देवी, मां बेतन देवी और तीन बेटियों अपर्णा, स्वर्णा और अन्नपूर्णा की चाकू से गला काटकर हत्या कर दी है। बताया जाता है कि वह पिछले काफी समय से बेरोजगार था और अपना ज्यादा समय पूजा-पाठ में लगा रहता था। वाह जी वाह! कमाल की पूजा पाठ करता था वह और अंधविश्वास, धर्मांधता, अज्ञानता और पाखंड के बल पर उसने कितना विकास कर लिया था?
एक ओर देश के चंद पूंजीपतियों की संपत्ति में लगातार दिन दुगनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर 85% परिवारों की आय पिछले सालों में घटी है। सरकार की पूंजीपति समर्थक नीतियों के कारण गौतम अडानी दुनिया का तीसरे नंबर का और एशिया का सबसे बड़ा धनी व्यक्ति बन गया है। उसके पास 11 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति है। अभी-अभी अंबानी ने अपने बेटे के लिए दुबई में 460 करोड रूपए का शानदार और आलीशान मकान खरीदा है। वहीं दूसरी ओर 18 करोड़ लोगों के पास आज भी सर ढकने के लिए छत नहीं है, अपने छोटे छोटे मकान तक नहीं हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हमारे देश के इतिहास में पिछले नौ सालों में चंद पूंजीपतियों अमीरों की संख्या में कुछ मित्र अरबपतियों की संख्या ही बढ़ी है।
अखबारी रिपोर्टों के अनुसार हमारे देश के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है, अधिकांश मजदूर को 12-12 घंटे काम करना पड़ रहा है और उन्हें कानूनी वेतन 28, 000 मिलने के स्थान पर आठ आठ,नौ नौ हजार तनख्वा ही मिल रही है। उनकी स्थाई नौकरियां खत्म कर दी गई हैं, पुरानी पेंशन व्यवस्था खत्म कर दी गई है, अधिकांश लोगों को ठेके की नौकरियों पर रखा जा रहा है और भारत के अधिकांश पूंजीपतियों और कारखानेदारों ने श्रम कानूनों का पालन करना लगभग बंद कर दिया है और अधिकांश मजदूर बाध्य होकर गुलामी की शर्तों पर नौकरी करने को मजबूर हैं।
अभी हमने देखा की हमारे देश में मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है और आज हमारे देश में 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमें अदालतों में लंबित हैं। इन मुकदमों को निपटाने के लिए पर्याप्त संख्या में जज नहीं हैं, कर्मचारी नहीं हैं, स्टेनो नहीं हैं, बाबू नहीं हैं और पर्याप्त संख्या में न्यायालय और दूसरी जरूरी चीजें नहीं हैं और यह संख्या और समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। लगातार कहने सुनने और प्रयास करने के बाद भी वह गूंगी, बहरी और निष्क्रिय बनी हुई है। जनता को संविधान के प्रावधानों के अनुसार सस्ता और सुलभ न्याय देने का सरकार का ना तो कोई इरादा है और ना ही उसके पास कोई रोड मैप है। उत्तर प्रदेश की हालत तो यहां तक खराब है कि यहां के 50% श्रम न्यायालयों में कई कई सालों जज ही नहीं हैं, वर्षों वर्षों से स्टेनो नहीं हैं जिस कारण न्यायाधीश चाह कर भी कोई निर्णय पास नहीं कर पाते हैं और लाखों वादकारी लगातार अन्याय का शिकार हो रहे हैं।
हमारे देश में पिछले लगातार कई सालों से स्कूलों की संख्या कम की जा रही है, पर्याप्त संख्या में अध्यापक नियुक्त नहीं किए जा रहे हैं। सरकार ने उनके पद ही खत्म कर दिए हैं। सरकारी स्कूलों को बंद किया जा रहा है। इस प्रकार बहुत सारे गरीब छात्रों को पढ़ने के अधिकार से एक साजिश के तहत वंचित किया जा रहा है और सरकार की ये नीतियां लगातार विनाशकारी विकास की ओर जारी हैं। शहरी क्षेत्र में तो शिक्षा का स्तर इतना गिर गया है कि वहां पर मोहल्ले में एक-एक, दो-दो कमरों के मकान में एक-एक टीचर कई कई कक्षाओं के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे गरीबों के हैं, क्योंकि गरीब अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में पढ़ने की स्थिति में नहीं रह गये हैं।
यही हाल स्वास्थ्य क्षेत्र का है, जहां लगातार स्वास्थ्य बजट में केंद्र सरकार द्वारा कमी की जा रही है। नये सरकारी अस्पताल नहीं बनाए जा रहे हैं, नए डॉक्टरों की, स्टाफ नर्सिज की, वार्ड बॉय की, तकनीशियनों की नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं, यहां आधुनिक मशीनें नही हैं और मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में लुटने पिटने के लिए छोड़ दिया गया है यहां बहुत सारे गरीब, निर्धन और बुजुर्ग बीमार पैसे के अभाव में और दवाइयों के अभाव में दम तोड़ रहे हैं और सरकार की नीतियां इसी तरह से, बिना रुके और निर्बाध रूप से जारी हैं।
नौ साल पहले सरकार दो करोड़ नौकरियां प्रति वर्ष देने का वादा करके आई थी, मगर आज हम देख रहे हैं कि हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा बेरोजगार हैं, सबसे ज्यादा अर्थ बेरोजगार हैं। अब तो सरकार ने बेरोजगारी के ऊपर कुछ कहना ही बंद कर दिया है और आज हालात यह है कि हमारे अधिकांश बेरोजगार नौजवान गुलामी और नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
पिछले दिनों हमने देखा है की किसान आंदोलन में को वापस लेने के लिए सरकार ने किसानों से समझौते किए थे। अब उनकी अधिकांश शर्तों को सरकार मानने से इंकार कर रही है। अधिकांश किसानों को आज भी उनकी अधिकांश फसलों का वाजिद दाम नहीं दिया जा रहा है। महंगाई ने किसानी और खेती को नुकसान का सौदा बना दिया है और बहुत सारे किसान सरकारी नीतियों के कारण कुछ लोगों के हाथों लूटने पिटने को मजबूर हैं।
उपरोक्त के आलोक में हम देखते हैं कि पिछले नौ सालों में जो विकास हुआ है, वह आत्महत्याओं में विकास हुआ है, महिला और बच्चों के साथ होने वाले अपराध बढ़े हैं, दिहाड़ी मजदूरों, खेतिहर मजदूरों, छात्रों, पेशेवरों, छोटे छोटे दुकानदारों, खेतीबाड़ी से जुड़े लोगों और बेरोजगार लोगों में खुदकुशी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, पूजा-पाठ, अंधविश्वास, पाखंडों, जातिवादी और धर्मांध मुद्दों को लेकर लगातार आत्महत्याएं, झगड़े और हिंसा हो रही है और इन मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, ये सब के सब लगातार नकारात्मक विकास के मार्ग पर आरूढ़ हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार कटौती की जा रही है और वहां पर उपलब्ध सुविधाओं को एक साजिश के तहत लगातार खत्म किया जा रहा है।
इस प्रकार हम देख रहे हैं कि यह किसका विकास है, कैसा विकास है, कौनसा विकास है? हम लगातार देख रहे हैं कि यहां गरीबों, शोषितों, अभावग्रस्तों, मजदूरों, किसानों, खेतिहर मजदूरों बेरोजगारों की आय में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। उनका किसी भी तरह का कोई विकास नहीं हो रहा है। वे विकास से कोसों दूर हैं। अब तो हालत यहां तक खराब हो गए हैं कि विकास के कि वे विकास के नहीं बल्कि महाविनाश के मार्ग पर आरूढ होने को विवश हो गए हैं।
उपरोक्त परिस्थितियों को भली-भांति देखकर यहां पर हम पूरे इत्मीनान के साथ कह रहे हैं कि मोदी सरकार आने के बाद इस देश के चंद पूंजीपति घरानों की आय में बेतहाशा वृद्धि हुई है, वे देश और दुनिया के चंद गिने चुने पूंजीपतियों में शामिल हो गए हैं, वे चंद धन्ना सेठों की श्रेणी में आ गए हैं। हमारे देश में पिछले नौ सालों में सिर्फ और सिर्फ चंद अरबपतियों और खराबपतियों का ही विकास हुआ है। इस प्रकार हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या यानी 80% से भी ज्यादा जनता बुनियादी विकास के मापदंडों से बहुत बहुत दूर है। यहां पर हमें आश्चर्य के साथ विवश होकर कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि कैसा विकास, किसका साथ और किसका विकास?