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वैदिक दर्शन में नारी

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~ज्योतिषाचार्य पवन कुमार 

    _वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं| वेदों में स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं है।वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं।_

       वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय। वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख – समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं।

        _वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है – उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है। वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं।_

        अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि ।

       तथापि, जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन बुद्धिवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने का जो अभियान चला रखा है – उसके तहत वेदों में नारी की अवमानना का ढ़ोल पीटते रहते हैं।

*वेदों में नारी का स्वरुप :*

अथर्ववेद ११.५.१८

  ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है।

     यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है।

     कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें।

अथर्ववेद १४.१.६

   माता पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें।

जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे।अथर्ववेद १४.१.२०

       हे पत्नी ! हमें ज्ञान का उपदेश कर 

वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को प्रसन्न कर दे।अथर्ववेद ७.४६.३

     पति को संपत्ति कमाने के तरीके बता।

संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान वाली, सह्त्रों स्तुति वाली और चारों ओर प्रभाव डालने वाली स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो | हे सुयोग्य पति की पत्नी, अपने पति को संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ।

अथर्ववेद ७.४७.१

      हे स्त्री ! तुम सभी कर्मों को जानती हो। हे स्त्री ! तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो। अथर्ववेद ७.४७.२

     तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन – धान्य से समर्थ कर दो।

हे स्त्री ! तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ।

अथर्ववेद ७.४८.२

        तुम हमें बुद्धि से धन दो।

विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है।

अथर्ववेद १४.१.६४

     हे स्त्री ! तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म अर्थात् वैदिक ज्ञान का प्रयोग करो।

हे वधू ! विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और सुखदायिनी होकर तुम विराजमान हो।

अथर्ववेद २.३६.५

      हे वधू ! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने पति को जो कि तुमने स्वयं पसंद किया है, संसार – सागर के पार पहुंचा दो।  

     हे वधू ! ऐश्वर्य कि अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट पर ले चल।

अथर्ववेद १.१४.३

हे वर ! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है।

      हे वर ! यह कन्या तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है । यह बहुत काल तक तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता के बीज बोये।

अथर्ववेद २.३६.३

यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो।

अथर्ववेद ११.१.१७

      ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय ( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न देतीं हैं।

      यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं | यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़ पहुँचाती हैं।

अथर्ववेद १२.१.२५

      हे मातृभूमि ! कन्याओं में जो तेज होता है, वह हमें दो. स्त्रियों में जो सेवनीय ऐश्वर्य और कांति है, हे भूमि ! उस के साथ हमें भी मिला।

अथर्ववेद १२.२.३१

      स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण इत्यादि पहनने को दिए जाएं।

अथर्ववेद १४.१.२०

      हे वधू ! तुम पति के घर में जा कर गृहपत्नी और सब को वश में रखने वाली बनों।

अथर्ववेद १४.१.५०

     हे पत्नी ! अपने सौभाग्य के लिए मैं तेरा हाथ पकड़ता हूं।

अथर्ववेद १४.२ .२६

      हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक पहुंचाने वाली हो।

अथर्ववेद १४.२.७१

     हे पत्नी ! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है, मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है।

अथर्ववेद १४.२.७४

     यह वधू विराट अर्थात् चमकने वाली है, इस ने सब को जीत लिया है ।

यह वधू बड़े ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो।

अथर्ववेद ७.३८.४ और १२.३.५२

सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने विचार प्रकट करें।

ऋग्वेद १०.८५.७

      माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें | माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो।

ऋग्वेद ३.३१.१

      पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है।

ऋग्वेद १० .१ .५९

      ऐसे निर्मल मन वाली स्त्री जिसका मन एक पारदर्शी स्फटिक जैसे परिशुद्ध जल की तरह हो वह एक वेद, दो वेद या चार वेद , आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद , अर्थवेद इत्यादि के साथ ही छ : वेदांगों – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद : को प्राप्त करे और इस वैविध्यपूर्ण ज्ञान को अन्यों को भी दे।

   हे स्त्री पुरुषों ! जो एक वेद का अभ्यास करने वाली वा दो वेद जिसने अभ्यास किए वा चार वेदों की पढ़ने वाली वा चार वेद और चार उपवेदों की शिक्षा से युक्त वा चार वेद, चार उपवेद और व्याकरण आदि शिक्षा युक्त, अतिशय कर के विद्याओं में प्रसिद्ध होती और असंख्यात अक्षरों वाली होती हुई सब से उत्तम, आकाश के समान व्याप्त निश्चल परमात्मा के निमित्त प्रयत्न करती है और गौ स्वर्ण युक्त विदुषी स्त्रियों को शब्द कराती अर्थात् जल के समान निर्मल वचनों को छांटती अर्थात् अविद्यादी दोषों को अलग करती हुई वह संसार के लिए अत्यंत सुख करने वाली होती है।

ऋग्वेद १०.८५.४६

      स्त्री को परिवार और पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका में चित्रित किया गया है । इसी तरह, वेद स्त्री की सामाजिक, प्रशासकीय और राष्ट्र की सम्राज्ञी के रूप का वर्णन भी करते हैं।

ऋग्वेद के कई सूक्त उषा का देवता के रूप में वर्णन करते हैं और इस उषा को एक आदर्श स्त्री के रूप में माना गया है।

      स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है।

यजुर्वेद १७.४५

   स्त्रियों की भी सेना हो स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।

यजुर्वेद १०.२६

   _शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें। जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों।_

   [चेतना विकास मिशन)

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