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महिला दिवस और होलिका दहन की त्रासदी

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सुसंस्कृति परिहार

 8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर बार की तरह धूमधाम से मनेगा यह 1975 से एक रस्म बतौर मनाया जा रहा है कुछ उपलब्धियों के बावजूद जिस देश में आज भी होलिका दहन की परिपाटी है,भले ही प्रतीक स्वरूप हो पर महिलाओं का मौन यह साबित करता है कि वह आज भी इस कृत्य के प्रति उदार है और बढ़ चढ़ कर उसके किस्से अपने बच्चों को सुनाती हैं ताकि यह सिलसिला बना रहे। अंग्रेज़ याद आते हैं जिन्होंने सती प्रथा को खत्म करने का दुस्साहस किया वरना आज भी पति परमेश्वर के साथ पत्नियों की होली जलती रहती।आज जब हम बालविवाह, विधवा विवाह,बेमेल विवाह और दहेज के विरोध में खड़े हो चुके हैं तो इस वीभत्स सदियों से प्रचलित परम्परा का विरोध क्यों नहीं कर पाते।यह विचारणीय है।इन आडम्बरों का विरोध ज़रुरी है क्योंकि यह हमारी दोहरी कमजोर मानसिकता और बेचारगी को दर्शाता है।

बहरहाल आज धर्मध्वजियों ने फिर पुरातन पताका फहराने का संकल्प लिया है वे अपने प्रवचनों के जरिए नारीशक्ति को जो पाठ पढ़ा रहे हैं वह उनकी प्रगति में बाधक है वे कथित चमत्कारों के ज़रिए उन्हें एकजुट कर रहे हैं जहां निरंतर प्रगतिशीलता की ओर अग्रसर स्त्री के पर कतरने की कोशिशें जारी हैं जिन्हें अप्रत्यक्ष रुप से सत्ता का वरदहस्त प्राप्त है।वे इन दुखहरण बाबाओं के जाल में फंसती जा रही हैं।डर और भय से आतंकित वे झूठ में शामिल हो जाती हैं। इससे उन्हें निज़ात दिलाने की आवश्यकता है।एक डरी सहमी औरत को उसकी आंतरिक शक्ति से जब तक बल नहीं मिलेगा वह पिछड़ती चली जायेगी।सुहानी शाह इस बीच एक मात्र ऐसी स्त्री हमारे सामने आती हैं जो बाबाजी के चमत्कारों की तरह ही बिना किसी भगवान का आव्हान किए वह सब कर दिखाती हैं जिसको जानना हम सब को ज़रुरी है उन्होंने हालांकि सिर्फ कक्षा 2तक ही व्यवस्थित पढ़ाई की है लेकिन अपने गहन और तार्किक अध्ययन से मन पढ़ने की कला पाई है।वे यह ज्ञान और लोगों तक पहुंचा रही हैं।सुहानी शाह को जानना इन डरी महिलाओं को  बहुत ज़रूरी है।

हाल ही में आए नागालैंड के चुनाव में इस बार दो महिलाओं का जीतना भी वहां की परम्परा के मुख पर एक तमाचा है।विदित हो नागालैंड में पितृसत्तात्मक समाज नहीं मातृसत्तात्मक समाज है घर से लेकर बाजार हाट तक उनकी सत्ता है किंतु राजनैतिक सत्ता पर अब तक पुरुष ही काबिज़ रहे हैं। महिलाओं का वहां प्रवेश निषेध था।इस बार दीमापुर तृतीय विधानसभा से हेकानी जखालू ने जीत दर्ज की है। हेकानी को भाजपा और एनडीपीपी गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरी थीं। उन्होंने लोजपा (रामविलास) की अजेतो जिमोमी को 1536 वोटों से मात दी। इसके अलावा एनडीपीपी और भाजपा गठबंधन की एक अन्य महिला उम्मीदवार सलहूतुनू क्रुसे ने पश्चिमी अंगामी सीट से जीत दर्ज की है। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार केनेजाखो नखरो को 12 वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया। यह अभिनंदनीय कदम है इनका स्वागत होना चाहिए।

आज के दिन नेहा सिंह राठौड़ को भी याद करना चाहिए जिन्होंने लोकगीतों के माध्यम से राजसत्ता से टक्कर ली उन्होंने कानपुर में ज़िंदा जला दी गई मां बेटी पर जो लोकगीत गाया उतनी पुरजोर ताकत से किसी महिला संगठन ने आवाज नहीं उठाई।उनको नोटिस भी सरकार ने भेजा पर निडर होकर वे लगातार सरकार की ग़लत नीतियों को लेकर लिख रही हैं। उन्हें तमाम महिलाओं का तहेदिल से समर्थन मिलना चाहिए। भोजपुरी में बिहार, यू पी में काबा के बाद वे अब भारत में काबा उजागर करने में लगीं हैं।यह दुस्साहस हम सब कब जुटायेंगे विचार करें।

इसी कड़ी में भोपाल की चेष्टा और निष्ठा ”पुष्पा जिज्जी’ कार्यक्रम के तहत बुंदेली में जिस तरह देश और समाज की ख़बर ले रहीं हैं उनको सुनना भी हर महिला को चाहिए।वे चुनौतियों से घबराती नहीं है बल्कि मजे लेकर चुटीले व्यंग्य के साथ जो परोसती हैं वह हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। सबसे खूबसूरत  बात ये है दोनों गृहणियां घर की तमाम जिम्मेदारी निभाते हुए वक्त निकालकर ये जागरुकता अभियान चला रही हैं।नेहा हो या चेष्टा और निष्ठा अपने यू ट्यूब पर पर हैं और सरकार के आंखों की किरकिरी बनी हुई हैं तब भी यह अभियान जारी है।वे दाद के काबिल हैं।
इसी कड़ी में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी लिया जा सकता है जिन्होंने प्रधानमंत्री जैसे पद को ठुकरा कर एक मिसाल पेश की।जैसा दुनिया में कहीं नहीं हुआ।पहले विपक्षी हमलों और अब सत्ता सामंतों के हमले से वे डिगी नहीं। वे सच्ची देशसेवा और देशभक्ति की एक अनूठी मिसाल हैं। राजनीति में आने वाली महिलाओं को उनके संघर्षों से सबक लेने की ज़रुरत है।हाल ही में म प्र के मुख्यमंत्री के सामने पत्रकार नैना यादव की साड़ी खींची जाती है अन्य के साथ दुर्व्यवहार होता है तो मुख्यमंत्री की पत्नी उन्हें तसल्ली देते हुए कहती हैं कि ऐसा तो  होता रहता है लेकिन नैना साहस का परिचय देते हुए सारा सच उजागर कर देती है।वह द्रौपदी की तरह मौन नहीं रहती।इस निर्भीक पत्रकार को सलाम करने का दिन भी है द वायर प्रमुख आरफा खानम की साहसी पत्रकारिता भी हमारा संबल है महिला दिवस पर उन्हें भी सलाम।
जरा मनुवादी व्यवस्था को भी आज याद कीजिए सन् 1924 तक शूद्र महिलाओं को स्तन ढकने के लिए मूलाकर नाम का टैक्स देना पड़ता था। मतलब छाती पर कपड़ा दिखा तो चाकू से फाड़ देते थे मनुवादी लोग। स्तन का साइज देखकर टैक्स तय होता था।

19 वीं सताब्दी की शरुआत में चेरथला में नगेली नाम की एक महिला थी स्वभिमानी एवं क्रांतिकारी। उसने तय किया कि ब्रेस्ट (स्तन) भी ढकुंगी और टैक्स भी नही दूँगी। नागेली का यह कदम सामंतवादी लोगों के मुंह पर तमाचा था। औरतों को समाज मे हेय दृष्टि से देखे जाने, उन्हें बेइज्जत करने, उनकी अस्मत का मजाक उड़ाने, उनके स्तन पर टैक्स लगाने के खिलाफ नागेली ने अभूतपूर्व और साहसिक कदम उठाते हुए मनुवादियों को टैक्स ना देकर स्वयं अपना स्तन ही काटकर दे दीं थीं और अपनी जान देकर मनुवादियों की कुप्रथा मिटा दी।               आज फिर मनुवादी सोच बढ़ाई जा रही है इसलिए 

 महिला दिवस पर एक दिन की धूमधाम और चोचलेबाजी से दूर रहकर आज के इस धूर्त और चालाक समय  में निर्भय होकर आगे आने की महती आवश्यकता है उपर्युक्त जुझारू ये चंद महिलाएं हमारे बंद द्वार खोलने का हौसला देती हैं। आइए रोजाना बढ़ाएं कदम और अपने खिलाफ हो रहे षड्यंत्रों से दूरी बनाएं। उम्मीद है महिलाओं की ऐसी ही जाग से ही सही सबेरा होगा।

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