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अद्भुत समन्वय झाड़ू कीचड़ और वाशिंग मशीन?

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी पूर्णतया दार्शनिक मानसिकता में दिखाई दे रहे हैं।
आज सुबह से सन 1963 में प्रदर्शित फिल्म कण कण में भगवान का यह गीत गा रहें हैं।
गीत लिखा है गीतकार भरत व्यासजी ने।
दिया ना पीए कभी अपना जल
वृक्ष ना खाएँ कभी अपने फल
अपने तन का, मन का, धन का
दूजों को दें जो दान, है वो सच्चा इंसान
अरे, इस धरती का भगवान
है”
मैने सीतारामजी से पूछा एक व्यंग्यकार की मानसिकता यकायक दार्शनिक होने की कोई खास वजह?
सीतारामजी ने कहा वर्तमान समय में उक्त गीत की पंक्तियों में समाहित दार्शनिक आदर्श रूपी उपदेश के विपरित सियासतदानों का आचरण दिखाई दे रहा है।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन के बाद हाथों में झाड़ू थामे जन्मी राजनीति की झाड़ू “हाला” में सराबोर हो गई। “हाला” की Dimand मतलब लोगों में “हाला” को क्रय करने की मांग बढ़ाने की योजना को साकार रूप देने के लिए जो Strategy मतलब रणनीति बनाई। वही रणनीति राजनैतिक रण में तब्दील हो गई।
“हाला” का सेवन करने वालों के लिए “हाला” सुलभ रीति से प्राप्त करवाने की योजना को कार्यरूप देने के चक्कर में स्वयं ही हवालात में पहुंच गए?
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए देश में जन लोकपाल कानून बनाने का ढिंढोरा पीटकर कोलाहल मचाने वालों पर ही भ्रष्टाचार का कीचड़ उछाला गया है।
समझदार व्यक्ति कभी भी कीचड़ में पत्थर फेंकता ही नहीं है।
यह भी समझना जरूरी है कि, इनदिनों कीचड़ छोटे सी जगह किसी नन्हे से खड्डे में सीमित नहीं है,अब तो कीचड़ सर्वत्र फैला हुआ है।
लोगों को इंतजार है कि, कीचड़ दलदल में कब परिवर्तित होता है?
यकायक एक फिल्म के संवाद का स्मरण हुआ, एक भाई के पास सारी दौलत है,दूसरा भाई कहता है मेरे पास माँ है।
राजनीति में यही संवाद इसतरह बोला जाता है। एक और लगभग सत्तर प्रतिशत वोट प्राप्त करने वाले हैं,दूसरी ओर लगभग तीस प्रतिशत मात्र लेकिन संवाद यूं बोला जाता है, हमारे पास अदृश्य चमत्कारिक वाशिंग मशीन है।
पहली बार कोई वाशिंग मशीन कीचड़ के ईंधन से चलती हुई ईजाद हुई है और ईविम मशीन के सहयोग से अनवरत चल रही है।
अद्भुत समन्वय है कीचड़ के साथ वाशिंग मशीन। न भूतो न भविष्यति।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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